Tuesday, December 13, 2011

Success and Happiness go hand in hand.

Success and Happiness go hand in hand.

What is success ? Success is the fulfilment of a desire. Success means attainment of a cherished goal or achievement of an aim through hard work.

What is Happiness ? Happiness is the result of Success. It comes from within through our deeds.We can never be happy by compulsion. It is the mental state of contentment which comes from success.

How Happiness is related to success ? It is rightly said that success and Happiness go hand in hand. A frustrated person cannot be successful in his work. He will collapse in the midway. How can a person achieve success if he is under some depression. Positive thinking or Happiness is an essential ingredient to be successful. It is a way to victory. Happiness does not mean to laugh all the time loudly  or say ha ha. A happy person keeps his presence of mind and courage in distress which is more than armies  gain the success. It controls the mind  to attain the  goal. It brings reward to life. Disappointment leads to failure.
How Success gives Happiness ?  Rich or Poor ,Young or Old can enjoy the fruits of hard work i.e. success.  When the students come out with flying colours after they get through their exams, they get Happiness. Even  smugglers, kidnappers , open the bottles of champaigne when they are succeeded in their plans. Doctors get happiness if they are succeded in some operations. Scientists and so many others get happiness  in their success. Happines is a running stream not a stagnant pool. It is not a reward of life but consequence or the result of success through hard work.
Happiness and Success are closely related or linked. If an unsucessful or a failed person laughs at his mistake or a successful  person does not feel happiness he is known as an abnormal person. Failure leads to disappointment and success leads to happiness.
           Thus we can say success and happiness go hand in hand. Happiness received through success lightens the burden of life and leave the sweet memories for the future.

NO SUCCESS  NO HAPPINESS
NO HAPPINESS NO SUCCESS









 

Wednesday, December 7, 2011

जीवन एक किताब




जीवन  एक  किताबजीवन एक किताब है. किसी की किताब  के पन्ने  कम तो  किसी की किताब के पन्ने अधिक . किसी की किताब हास्य से भरपूर  तो किसी की किताब सुखद तथा दुखद घटनाओं से परिपूर्ण अथवा  मिलने बिछुड़ने की परिस्थतियों से जुडी हुई या फिर उथल-पुथल  घटनायों से भरी हुई  .
नदी का उद्गम स्थान एक तरफ है तो अंतिम पड़ाव कहीं    बहुत  दूर दूसरी ओर. इस बीच वह रस्ते में कितने जंगल, शहर ,गावों से गुज़रती हुई तथा अपने साथ कितने कीमती कंकर,पत्थरों को एकत्रित करती हुई , कितने मीलों  का सफ़र तय करती हुई अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँच पाती है. नदी का इस तरह  बहना  उसका स्वभाव है . जब वह अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँचती है , तो उसकी  किताब पूरी हो जाती है . एक बार अंतिम पड़ाव पर पहुँच जाए तो फिर पीछे  लौटना असंभव है. परन्तु उसके अन्दर  इकठ्ठा किये हुए रत्नों का उपयोग भी  आवश्यक है , नहीं तो वे रत्न केवल पत्थर सामान वहीँ पड़े रहते हैं. अगर किस्सी जौहरी की दृष्टि उन पर पड़ जाए तो समझिये वह भाग्यय्वन ओर उसकी  किताब के पन्ने  भी सुनहरे हो गए
प्रत्येक व्यक्ति की किताब भिन्न है . उसका नाम ,काम , ज्ञान,  दिनचर्या ,स्वभाव तथा कार्यक्षेत्र भिन्न है . कुछ लोग उसके नियमों  को बहुत पसंद करते हैं और उसको भी कुछ लोग बहुत अच्छे लगते  हैं. काम करतेकरते उसका थक जाना स्वाभाविक है और उसे आराम  करने की आवश्यकता महसूस होने लगती है और वह अपने जीवन  के अंतिम पड़ाव की ओर जाने लगता है . कभी किस्से किताब का  आख़िरी पन्ना जब हम पढ़कर  उसे  बंद कर देते हैं तो उसे फिर  से पढने का मन नहीं होता या पढने  की ज़रुरत महसूस नहीं होती  या फिर से पढने का समय ही नहीं होता . लेकिन उपसंहार पढ़ना  भी आवश्यक  होता  है .
एक नौकरी पेशा वाले की किताब भी वैसी ही है . जब वह   अपने पेशे से निवृती पाकर उस कार्यक्षेत्र से बाहर आता है तब उसे पता लगता है  की उसकी किताब का आख़िरी अध्याय पूरा हो चुका है और अब पीछे मुड़कर  देखना असंभव है . अब वह नदी की भांति अपने पड़ाव की ओर पहुँचने वाला है . उसे ध्यान ही नहीं आता की उसकी किताब में कितने अध्याय लिखे जा चुके हैं  और वह इतना लम्बा सफ़र तय कर चुका है क़ि अब उसे आराम की आवश्यकता है . लेकिन अभी उसका  उपसंहार शेष  है जिसमें  वह  ढूंढ़ता है जीवन  के उन  मोतियों को  जो  उसकी  किताब  में  होंगे . इन  मोतियों से  अगर उसने एक सुंदर सी माला बना ली तो उसकी किताब बनेगी अति मन  मोहक तथा दूसरों के पढने योग्य अथवा यह मोती ऐसे ही बिखरे रहेंगे और  शायद उस किताब को कोई छूना भी पसंद न करे. और उपसंहार के बिना उसकी किताब अधूरी ही रह जाए .और उसके पन्ने उड़ते-उड़ते इधर-उधर बिखर कर रह जायेंगे और कोई उन्हें पैरों तले रौंद देगा या कहीं कोने में ही सड़ जायेंगे ..........










Friday, November 18, 2011

महकते फूल

महकते फूल


बाग़  में खुशबू  फैल गई , 
बगिया  सारी  महक  गयी,
रंग-बिरंगे  फूल खिले, 
तितलियाँ  चकरा  गईं,
लाल ,पीले ,सफ़ेद  गुलाब ,
गेंदा  , जूही ,खिले  लाजवाब ,  
नई पंखुरियां  जाग   गयी,
बंद  कलियाँ झांक   रही . 
चम्पा , चमेली , सूर्यमुखी ,
सुखद  पवन गीत  सुना  रही, 
महकते फूलों  की क्यारी , 
सब के  मन को लुभा  रही,   
धीरे से छू कर देखो खुशबू ,  
तुम  पर खुश्बू  लुटा  रही,
महकते  फूलों की डाली,  
मन ही मन इतरा  रही ,  
हौले  -हौले  पाँव   धरो,  
भंवरों   की गुंजार    बड़ी,
ओस  की बूंदे  चमक  रहीं , 
पंखुरिया  हीरों  सी  जड़ी,
सब को सजाते  महकते फूल ,  
सब को रिझाते  महकते फूल,   
महकते फूलों से सजे  द्वार ,
महकते फूल बनते  उपहार ............      






Tuesday, November 15, 2011

मिस चुगलखोर

मिस   चुगलखोर
  
मिस  चुगलखोर  बनाम  मिस  चाकलेट  खोर.यह  इसका  असली  नाम  नहीं  है. नाम  तो  कुछ  ओर  है  परन्तु  सब  इसको  मिस  चुगलखोर  के  नाम  से  पहचानते  हैं.यह  नाम   कब  पड़ा,  किसने  रखा  यह  तो  पता  नहीं  पर  लोग  उसे  मिस  चुगलखोर  नाम  से  बुलाते  हैं  जहाँ  कहीं जाती  है  लोग  चुपचाप  अपना  काम  करना  शुरू  कर  देते  हैं  या  करने  का  बहाना   करते  हैं .
इसकी  आयु  होगी  कोई   नौ या  दस  वर्ष  की  चौथी  या  पांचवी  कक्षा  की  विद्यार्थी  है   इसके  घर  में   माता-पिता तथा  एक  बड़ा  भाई  और  एक  छोटा  सा  भाई  है . यह  इस  नाम से  बहुत   चिढ़ती  है . क्योंकि  यह  इसका  असली  नाम नहीं हैआप  उसका  असली  नाम  कुछ  भी  रख  सकते  हैं  जैसे  पिंकी , डाली  , बेबी  इत्यादी  .स्कूल  से  आते  ही  माता  से  सब  बच्चों  की  बातें  बतानी  शुरू  कर  देती  है. आज  क्लास  में  क्या  हुआ.टीचर  ने  किसको  सज़ा दी  . पिता के  घरआते  ही  उनसे  माँ की  शिकायत  अथवा  भाईओं के  किस्से  शुरू  कर  देती  है. जैसे  बड़े  भाई  ने  उसे  चाकलेट  नहीं  दी. छोटे  भाई  के  कारन उसको  माँ  से  डांट खानी पडी . उनके  घर  का  रेफ्रीजेरटर हमेशा  चाकलेट  से  भरा  होता  है . उसे  पता  है  ज्यादा  चाकलेट  खाने  से  दाँत सड़ जाते  हैं  उसको  चुप  कराने  के  लिए  चाकलेट  दिए  जाते  हैं .वह  फिर  चाकलेट  खाने  में  व्यस्त  हो  जाती  है .
क्लास  में  जैसे  ही  टीचर  आती  हैसब  से  पहले  खड़ी हो करबच्चों  की  चुगली  करने  लग  जाती  है.जिसकी  वजह  से  टीचर  को  कई  बार  उसे  सज़ा  भी  देनी  पड़ती हैउसे  कई  बार  क्लास  के  बाहर भी  निकाल  दिया  जाता  है .लेकिन  वह  दूसरों  को  अंगूठा  दिखाकर  चिढ़ाने  लगती  है . खेल   के  मैदान  में  खेलती  कम  है . दूसरों  की  गलतियाँ   अधिक  निकालती रहती  है. .पढाई लिखाई  में  कुछ  ख़ास  नहीं. अपना  होम  वर्क  दूसरे  बच्चों  से  करवाती  रहती  है  नहीं  तो  वह  उनकी  चुगलखोरी  कर  देती  है , कि वह  क्लास  में  एक  दूसरे  की  नक़ल  कर  रही  थी .बच्चे  भी  उसको  देखते  ही  अपना  काम  करने  लगते  हैंनहीं  तो  क्लास  का  नियम  खराब  हो  जाएगा  अथवा  सब  की  पढाईमें  नुकसान  होग. यहाँ  तक  कि  उसकी  शिकायत  प्रिंसिपल  से  भी  की गयी  लेकिन  उस  पर  इसका   कोई  प्रभाव  नहीं  पडा .अब  समस्या  यह  थी  कि  उसकी  इस  आदत  को  कैसे  दूर किया  जाए.बच्चों  को  कहा  गया  कि  वे  उस  पर  ध्यान  हटा  कर  अपना    समय पढाई में  लगाएं .
वैसे  वह  एकदम  साफ़  सुथरी  बाल अच्छी  तरह  सँवारे  हुए , जूते  खूब  चमकते  हुए,  पुस्तकों  को  भी  ठीक   तरह तरकीब से  रखती  है  लेकिन  पढाई  में  मन  नहीं  लगता क्योंकि  दिनभर  हर  समय  दूसरों  की  चुगलखोरी  की  बातें  ढूंढती  रहती  है .
आप  भी  उसकी  तरह  चुगलखोर    बन  जाएँक्योंकि  खाने  में  बहुत  से  चाकलेट  मिल  जाते  हैंया  कभीकभी उसकी  चुगलखोरी  सही  भी  हो  जाती  है  इस  कारन  उसकी  इस  आदत  को  नकारा  भी  नहीं  जा  सकता ……….



भीड़ और मैं

भीड़   और    मैं
भीड़   का  मतलब  है  लोगों का  जमघट.  रेलगाड़ी  की  टिकिट   लेने  जाओ , राशन  की  दुकान  पर  जाओ,बच्चों  के  दाखिले  के  लिए  जाओ,  डाक्टर  के  पास  जाओ ,बस स्टाप पर जाओ , पानी की लाइन  में जाओ , मेले  में  जाओ , सत्संग  में  प्रवचन  सुनने  जाओ , सब  जगह  लोगों  का  जमघट .आजकल  भीड़ का  होना  भी  फैशन  हो  गया  है .शोक  सभा  हो या  संगीतकारों  की  सभा  ,जन्मदिन  की  पार्टी  हो  या  फिल्म  वालों  का  कोई  प्रोग्राम, बंदर  का  तमाशा  हो , या  मुंबई  की  लोकल  गाड़िओं   के  ठप्प  हो  जाने  से  लोकल  स्टेशनों  पर  अत्यधिक  भीड़ का  होना  आजकल  एक  आम  बात  हो  गयी  है   . अगर  जमघट    हो  तो  माना  जाता  है  कि  वहां  की  जनसँख्या  कम  है .
        इस  भीड़  में  कौन  लोग  होतें  है ? आप  और  मैं . इसके  बिना  भीड़  हो  ही  नहीं  हो  सकती . सड़क  के  चौराहे   पर  ट्रैफिक  पुलिसमैन  एक   हाथ  ऊपर  करता  है  तो  झट  से  लोगों  की  भीड़  वहीँ  की  वहीं  ठहर  जाती  है . और  जैसे  ही  दूसरा  हाथ  ऊपर  उठाता  है ,भीड़  आगे  बड़ने लगती  है . एक दूसरे  को  धक्का  देते  हुए  भीड़  तितरबितर  हो  जाती है . थोड़ी  देर  वहां  खड़े  हो  कर  दृश्य  का  मज़ा  लीजिये . कैसे  स्वचालित  मशीन  सिग्नल  की हरी   बत्ती  से सब लोग  चलने  लगते  हैं .लाल से  रुक  जाते  हैं . लोकल  गाडी  की  बात तो कुछ और  ही है . कुछ डिब्बेइतने खचाखच भरे होते हैं कि  जैसे गाड़ी     रुकी  कि  दरवाजे  के  पास  खड़े  लोग  उतरना  चाहें  या    उतरना  चाहें  भीड़  उनको  गाड़ी   से  नीचे  धकेल  ही   देती  है .
आप  और  मैं  चाहते  हैं  कि भीड़  कहीं  पर    हो . इसका  भी  हल  है .हम  जहाँ  भी  जाएँ  कतार  का  पालन  करना  सीखें . थोडा  सयंम  रखें . लेकिन  अगर  भीड़    हो तो ज़िंदगी में मज़ा या आनंद     ही  नहीं  आता . जैसे  कहीं  प्रवचन   हो  तो  वहां  शिष्यों  की  संख्या  का  पता  चलता  है , किसी  नेता  का  भाषण  हो  तो  वहां  वोटों   की  गिनती  करना  आसान  हो  जाता  है , कोई  रैली  हो  तो  पुलिस  की  लाठियों  का  प्रयोग  हो  जाता  है , चैरिटी   शो  हो  तो  कितना  चंदा  इकठ्ठा  हुआ  संस्था  को  इसका  अनुमान  हो  जाता  है आदि . खेल  के  मैदान  में  भीड़  का  अपना  अलग  ही  महत्व  है . अगर  वहां  जमघट    हो  तो  बल्लेबाज़  अपनी  जगह  से  ही    हिले . भीड़  की  तालियों  की  गढ़गढ़ाहट सुन  कर  ही  तो  वह  शतक  बना  पाता है .
 भीड़  किराए  पर  भी  मिलती  है . जिनको  नौकरी , कुछ  काम  धंधा  नहीं  मिलता , वे  कुछ  ऐसी  संस्थाएं  बना  लेते  हैं  जो  भिन्न - भिन्न  प्रकार  की  भीड़  प्रदान  करने  का  व्यापर  करते  हैं .शोक  सभा  के  लिए , या  कहीं  पत्थर  फैंकने  के  लिए , किसी  जुलूस  के  लिए , या  फिर   किसी  फिल्म  के  दृश्य  के  लिए . इस  तरह  दोनों  पार्टियों  से  कमीशन  ले  कर  अपनी  रोटी  रोजी  के  लिए  पैसा  जुटाते  हैं . भीड़  की  आवाज़  कितनी  प्रभावशाली  होती  hai  इसका  अनुमान  तो  स्टेज  पर  बैठा  हुआ  व्यक्ति   ही  बता  सकता  है . उसको  टमाटर  मिलते  हैं  या  फूलों  का  गुलदस्ता .
आप  और   मैं  अगर    हों  तो  सोचिए भीड़  नहीं  बन  सकती  क्योंकि   हम  ही  तो  भीड़  के  हिस्से  हैं ………….