Wednesday, January 11, 2012


प्रिये   लौट  आओ

गया  था  किचन  में  खाना  बनाने -हाथ  जला   बैठा ,

ब्रैड  सेकता  रहा -आमलेट  जला  बैठा ,

दाल  गलती  रही -रोटी  सड़ा बैठा ,

माँ ने    क्यों  नहीं  सिखाया  पत्नी  बिन  कैसे  जिया  जाए .

धोबी  ले  गया  कपडे  तो  कमीज़  गुमा  बैठा ,

जूते  के  लेस  का  पता  नहीं -जुराब  का  जोड़ा  गुमा  दिया ,

छींक   आई  क्या  करूँ  रुमाल  किसी  ने  दिया  नहीं ,

बाल   कैसे   संवारूं -कंघी  तो  वे  ले   गयी ,

माँ ने  क्यों  नहीं  सिखाया  पत्नी  बिन  कैसे  जिया  जाए .

तेरे  बिन  कैसे  जियूं - एक  बार  लौट  आओ ,

  कर  सिखा  जाओ  अकेले  कैसे  जिया  जाए ,

आफिस  से  जैसे  लौटा -तो  किसी  ने   खोला न  द्वार ,

 क्यों  भूल  गया -अब  कोई  नहीं  करता  है  मेरा  इंतज़ार ,

पत्थर  का  घर  खाली  होगा -कैसे  वहां  रहा  जाए ,

माँ ने  क्यों  नहीं  सिखाया  पत्नी  बिन  कैसे  जिया  जाए

जूते  पहने  ही  सो  गया  बिस्तर  पर ,

झट  से  पाँव  नीछे  किये -याद   आई  तुम्हारी  फटकार ,

कि  अभी  चिल्लाओगी -धेले  की  अक्ल नहीं ,

माँ ने  कुछ   नहीं  सिखाया - कर  दिया  घर  गंदा  अंदर -बाहर ,

आँख  भीच  कर  सो  गया -लगा  तुमने  पकड़ा  हाथ ,

मैं  बोल  रहा  था  प्रिये  तुम  लौट  आई ,

मेरे  जीवन  में   फिर  से  रोशनी  आई ,

तुम  रहो  बस   मेरे  आस  पास ,

बस  अब  जियेंगें  मरेंगें साथ -साथ ………














भूख मिटाती रोटी गोल

भूख  मिटाती रोटी  गोल    

 बेटा- अम्मा , “भूख  लगी  खाने  को  दो  रोटी गोल ,     

 पेट  में   लगा  रहे   हैं  चूहे  दोड़ .

माँ- बेटा, देखो  आसमान  में  चंदा  गोल ,

बेटा- तो  फिर  ? "   

 माँ  “-ऊपर  चमके  सूरज  गोल, “

बेटा - तो  फिर  ?    

  माँ-नीचे  धरती   घूमे   गोल ".


बेटा- तेरे  हाथ  में आट्टा  गोल ,  और  तू  जल्दी  बना  रोटी गोल, "

 बस   मेरा  पेट   भर  जाए  दे  मुझ  को रोटी गोल, “……अम्मा


माँ- अभी  तो  नहीं  बनी  रोटी  गोल , तू  देख  घर  में  क्या-क्या है  गोल  .


बेटा - “”तेरे  पास  थाली  गोल , तेरे  पास  कटोरी  गोल , 

 मटर  का  दाना  भी  है  गोल , लाल  टमाटर  होता  गोल ,

दे  दे  मुझ  को  कुछ  सिक्के  गोल , लूंगा  मौसंबी  गोल ,

  लाऊंगा   हलवाई  से  लड्डू  गोल  ,कितने स्वादी  गप्पे  गोल ,

 अम्मा ? कब  बनेगी  रोटी गोल ? कहाँ  रखें  मेरे  मार्बल  गोल ,

गणपती  का पेट  गोल ,  मोटे  लाला  जी  की  तोंद  गोल ,

गान्धीबाबा का  चश्मा  गोल , मास्टर  जी  की   छड़ी गोल  .

अम्मा , स्कूल  बस  से  जाऊंगा ,  उसका   भी होता  पहिया  गोल ,

वहां  खेलेंगे  फुटबाल  गोल ,  जीत  गए  अगर  हो जाये  गोल ,

कुछ  अच्छा  नहीं लगता  अम्मा  जब  तक  मिले    रोटी गोल " .


माँ - बेटा ,कुछ  पढ़  लो , नहीं  तो  आयेंगे  नंबर  गोल 

देखो  गली  में  घूमे कुत्ता  गोल , चोकीदार  भी चक्कर  लगाये  गोल ,

खेत  में  बैल  चले  गोल -गोल , बच्चे  भी  खेलें   गोल-गोल ,

गुड़िया नाचे  गोल-गोल , सर्कस  में  जोकर  घूमें  गोल-गोल ,

तोते  का  पिंजरा  गोल- गोल ,  तोता  चक्कर लगाता रहता  गोल-गोल ,

तू  भी तो चलाता था  चकरी गोल , कृष्ण  की बांसुरी  गोल ,

पहले  आँखें  धो  ले  उसकी  पुतली  है गोल , किसी  का  चेहरा  होता गोल मटोल .


बेटा - "अम्मा , बातें  मत  कर  पहले  दे  रोटी गोल , 

एक  बन  जाए  सौ उसके  आगे  लग  जाएँ   दो  गोल ,

 अम्मा , “शीशे  में देख  तेरी  बिंदी  गोल,  तेरी  खनक   रही  चूड़ी गोल ,

मेरा  सिर घूम  रहा  गोल-गोल , मुझे  किसी  की परवाह  नहीं ,

पहले  खिला  रोटी  गोल , मुझे  दिखे  सारी  दुनिया  गोल ही  गोल ,

भूखा  जाने  रोटी  का  मोल ,  माँ ,रोटी  नहीं  तो  दे  दे  बिस्किट  गोल , 

माँ -यह  ले  बेटा चिकनी-चुपड़ी  रोटी  गोल .

बेटा - वह ,क्या  गरमा -गरम रोटी गोल , घुमाता  जाऊं  रोटी गोल-गोल ,

 कहाँ  से  करूँ शुरू  नहीं  दिखता इसका  छोर,

अगर  बीच  से  तोडूँ तो  बन  जाए  सी  डी गोल ,

किधर  से  भी  शुरू करूँ , है तो आखिर  रोटी गोल ,

खाता जाऊं  बताता  जाऊं , क्या-क्या दिखता है गोल ,

मुझे  इतना  पता  है की   स्वादिष्ट  होती  रोटी  गोल ,

राजा हो  भिखारी  सब  को  अच्छी  लगती  है  रोटी गोल ,

सब  की  भूख  मिटाती  रोटी  गोल ……..
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आश्रम में एक अनाथ बच्चा

आश्रम में एक अनाथ बच्चा   ---SANTOSH GULATI
 एक अनाथ आश्रम से एक अनाथ बच्चे के माँ से प्रश्न : .
माँ, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया ?
क्या मैं काला था ? क्या मैं अपंग था ? क्या मैं भद्दा था मेरी तो आँखें बंद थी .
 फिर भी तूने माँ ,मुझे क्यों छोड़ दिया ? 1

क्या किसी ओर से तेरा रिश्ता था? क्या तेरे पास दूध नहीं था? क्या तू बस से कुचल  गई थी ? क्या किसी ने तेरा गला घोंट दिया ?   
बस एक बार बता दे ,   माँ, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया ?              
मुझे अनाथ आश्रम क्यों भेज दिया ?  2

मैं यहाँ सुखी या दुखी तुझे क्या पता ? भूखा  या प्यासा तुझे क्या पता ? कोई करता है क्या प्यार  तुझे पता मैं  कैसे सोता हूँ तुझे क्या पता ?
एक बार बता दे माँ, तूने मुझ को क्यों छोड़ दिया ?

हर औरत में ढूंढ रहा तेरा चेहरा ,हर औरत की आवाज़ लगती तेरी आवाज़, सोचता हूँ तेरा श्रृंगार कैसा होगा ?  एक बार सामने आ कर बता दे ,
माँ,  तूने मुझे क्यों छोड़ दिया ?

तुझे रुलाया होगा मेरी याद ने ?  मैं कितना रोया तेरी याद में ? एक बार अपनी छाती से लगा ले,  अपनी कोई निशानी बता दे , मुझे बता दे ,
माँ,  तूने मुझे क्यों छोड़ दिया ?

मैं क्या जानू माँ का प्यार,मुझे गोदी में किसी ने बिठाया ही नहीं,गालो को कभी चूमा ही नहीं, लोरी गा कर कभी सुलाया ही नहीं,मरने से पहले ज़रा बता दे ,
 माँ,  तूने मुझे क्यों छोड़ दिया ?

मैं सारा जीवन तुझे ढून्ढूगा , क्या होता है माँ का  प्यार  खोजूंगा , मेरा नाम एक बार पुकार ले, मेरे प्रश्नों के उत्तर दे दे, मैं चैन से जी पाऊंगा , बस इतना बता दे,
 माँ, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया ?
 और  अनाथ आश्रम भेज दिया .............संतोष गुलाटी 
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