Wednesday, March 13, 2013

बिल्ली का बच्चा-

एक ऊंची ईमारत के लोग अपनी -अपनी बालकनियों से नीचे वाचमैन पर चिल्ला रहे थे कि“’उनके घरों में पानी क्यों नहीं आ रहा था . वाचमैन चिल्ला रहा था“”पानी की टंकी तो भरी पड़ी है . उसे नहीं पता कि पानी क्यों नहीं आ रहा है . बिल्डिंग का सैक्रेटरी हाथ में डंडा ले कर नीचे आया तो टंकी में घुमा  कर देखा  तो कुछ कपड़े का टुकड़ा पाईप के आगे फंसा हुआ लगा . वाचमैन ने उसे डंडे से बाहर खींचा. तो पाया कि वह कपड़े का टुकड़ा न था बल्कि एक बिल्ली का बच्चा था जो दो दिनों से लापता था . उसे एक बच्चे ने टैंकी में फैंक दिया था . अब तो सब लोग वहां इकट्ठा हो  गए .
 सोचने लगे कि अब उनका क्या होगा ?वे दो दिन से उस टैंकी  का पानी पी  रहे थे .किसी ने कहा पेट की सफाई के लिए जुलाब की गोलियां खानी पड़ेंगी . किसी ने कहा आत्म्शुध्धी  के लिए उपवास रखने पड़ेंगे इत्यादी . लेकिन सभी बच्चे एक दूसरे को गुस्से की निगाहों से देख रहे थे . मानो पूछ  रहे हों कि यह बिल्ली का बच्चा टैंकी  में कैसे चला गया  ?
            बात यह थी कि यह बिल्ली का बच्चा किसी कार के नीचे आ जाने से ज़ख़्मी हो गया था जिसके कारन वह चलने में असमर्थ था .दिन रात रो रहा था . बच्चों से यह देखा न गया . कोई बच्चा उसके लिए दूध लाया तो कोई रोटी का टुकड़ा . किसी ने उसके लिए मुलायम बिस्तर बनाया तो किसी ने उसे अपनी गोदी में बिठाया . बच्चों में होड़ लग गयी“”यह मेरा है . कोई दूसरा इसको हाथ न लगाये“”.कोई न कोई बच्चा उसकी देखभाल कर रहा था . अब बच्चों में झगड़ा होने लगा .“’तूने क्यों उठाया ,ज़रा मुझे दो “”बस इसी तरह झगड़ा बड़ने लगा . बस एक रात अँधेरे में एक बच्चे ने उसकी पूँछ घुमाते क्योंकि अब उसकी जगह किसी को मालूम नहीं .हुए उसे पानी की टैंकी में फेंक दिया . और सोचने लगा कि वह जब चाहे उसे निकालेगा और खेलेगा
 लेकिन उसे इतनी समझ नहीं थी कि इस आपसी झगडे का परिणाम इतना बुरा हो सकता है . वह नन्हा बालक आगे आया और फफक  कर रोने लगा . अपने बाल नोचने लगा . उनकी आखों के सामने वाचमैन ने बिल्ली को कचरे की ढेरी में फेंक दिया . सभी बच्चे सिसकते -सिसकते अपने घरों को चले गए . बाद में उस टैंकी को साफ़ करवा दिया गया और ताला लगा दिया कि कोई दूसरा ऐसा काम न करें या कोई बच्चा भी  उसमें न गिर  जाए………







Tuesday, March 12, 2013

कन्धों का बोझ

कन्धों का बोझ
            चौराहे पर लाल बत्ती का सिग्नल हुआ और सभी वाहन चालकों ने अपने -अपने वाहन की  ब्रेक लगाई और वहीं के वहीं रूक गए॥पैदल आने-जाने वालों ने रास्ता पार करना शुरु किया॥उनमें एक  ऐसा पिता था जो अपने युवा बेटे को अपने कन्धों पर बैठा कर सड़क पार कर रहा था॥उसके बेटे की दोनो टाँगे एक लम्बी डंडी की तरह पोलियो का शिकार हो चुकी थी॥पिता ने फुटपाथ पर पहुँच कर बेटे को नीचे उतारा और हाथ में दो वैसाखियां थमा दी॥अब वैसाखियां ही उसकी टाँगे बन चुकी थीं॥उनके सहारे वह धीरे-धीरे चलने की कोशिश करने लगा॥
    पिता को अपने बेटे के जन्म पर बहुत प्रसन्नता हुई थी॥ धूमधाम से उत्सव मनाया गया॥ उसकी चिन्ता दूर हुई कि एक दिन उसका बेटा उसके कन्धों का बोझ सम्हालेगा॥उसका दादा अति प्रसन्न हुआ था कि बुढ़ापे में उसका हाथ पकड़ने वाला घर में गया है॥उसे लकड़ी पकड़ने की आवश्यकता नहीं होगी॥
    लेकिन एक युवक जिसे हिमालय को छूने की तमन्ना थी अब निराश हो चुका था॥उसको जीवन में कुछ भी कर पाने की आशा समाप्त हो चुकी थी॥जीवन निर्रथक लगने लगा था॥कब तक पिता के कन्धों का बोझ बना रहेगा॥उसके मित्रों ने प्रोत्साहित किया कि जीवन एक संर्घष है,चुनौती है॥डट कर सामना करो॥उसे धुंधला-धुंधला याद है कि जब वह स्कूल में दूसरी या तीसरी कक्षा में था उसे बहुत तेज़ बुखार आया था॥बुखार उतर जाने पर उसे बहुत कमज़ोरी हो गई थी और वह चलने में असमर्थ था॥एक दिन उसने अपनी माँ को रोते हुए देखा तो पूछा कि वह क्यों रो रही थी॥वह उसे गले लगा कर फूट-फूट कर रोने लगी॥जब  वह स्कूल जाने की बात कहता तो उत्तर देती कि अभी वह बहुत कमज़ोर है॥लेकिन वह दिन कभी नहीं आया॥माँ-बाप कोशिश करते रहे कि वह चलने लायक हो जाए॥पर समय बीतता गया और वह भूल गया कि वह भी दूसरे बच्चों की तरह कभी उछल-कूद करता था॥
    उसके पिता ने उसे एक दुकान पर नौकरी ढूंढ दी॥वह उसे कन्धों पर बैठा कर सुबह छोड़ आता है और शाम को उसी तरह वापिस ले आता है॥ताकि वह आत्मनिर्भरता महसूस कर सके॥लेकिन ऐसा कब तक चलता रहेगा॥पिता भी उदास  रहने लगा है॥जिसे वह अपने कन्धों का बोझ देना चाहता था वह उसी के ही कन्धों का बोझ बन चुका था॥
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अक्टोबर 2001