Monday, December 14, 2015

रिटायर्ड होने के बाद--संतोष गुलाटी


रिटायर्ड होने के बाद--संतोष गुलाटी

 

जब मै रिटायर्ड हो जाउँगा

कहीं खुशियाँ होंगी

कहीं मातम होगा

कई लोग खुश होंगे

कि उनकी पदोन्नति हो जाएगी

कई दुखी होंगे

उनको मेरी बिदाई के लिए

उपहार के लिए पैसे देने पड़ेंगे

जिनको काम में मेरी सहायता मिलती थी

उनका चेहरा मुरझाया हुआ दिखाई देगा

मेरी विदाई के समय

कई लोग मगरमच्छ के आँसू बहाएँगे

मैं धीरे-धीरे कदम बढ़ाता

हाथों में फूलगुच्छ और उपहार पकड़े हुए

घर लौट आउँगा

घर के सदस्य भी

कोई खुश होगा कोई उदास

पत्नी खुश होगी कि अब मुझे कुछ काम नहीं होगा

रसोई में उसकी सहायता करूँगा

उसको अब जल्दी नहीं उठना पड़ेगा

आराम से सुबह की चाय पीएगी

क्योंकि मैं अब जल्दी करो का

शोर नहीं मचाउँगा

वह भी समाचार पत्र आराम से पढ़ेगी

प्रतिदिन सब्ज़ी खरीदनो मुझे ही बाज़ार जाना पड़ेगा

जगह-जगह भाव पूछकर

खरीदारी करनी होगी

नहीं तो पत्नि की डाँट पड़ेगी

खैर कुछ भी होगा पत्नि हाथ पकड़ कर सैर करने जाएगी

पड़ोसी हमको देखकर हैरान हो जाएँगे

यह सूरज कहाँ से निकला ऐसा सोचेगें

आराम से टीवी देख पाउँगा

अपना समय अपने तरीके से बिताउँगा

बेटा और बहू सोचेंगे

उनको भी मेरी सहायता मिल जाएगी

बच्चों की देखभाल मुझ पर सौंप कर मज़े करेंगे

घर का दरवाज़ा मुझे ही खोलना पड़ेगा

क्योंकि अब सारा दिन मुझे कुछ काम तो नहीं होगा

बच्चों को स्कूल छोड़ना और वापिस लाना

मेरा काम हो जाएगा

मित्र भी कम हो जाएँगे

जो मिलेगा दूरसे हाय कहकर चला जाएगा

समाज में सम्मान भी कम हो जाएगा

उनको मैं अब इतना चुस्त नहीं लगूँगा

हालांकि मैं ऐसा कुछ नहीं होने दूँगा

क्योंकि मैने भी अपने भविष्य के बारे में सोच लिया है

ऩई नौकरी तलाश कर लूँगा

अपना रूतबा बिगड़ने नहीं दूँगा

मेरे इस निर्णय से कोई खुश हो या नाराज़

मैं सबको दिखा दूँगा

रिटायर होने के बाद नई ज़िंदगी शुरु होती है

मेरे निर्णय से कईयों को निराशा होगी

किसीकी योजनाओं पर पानी फिर जाएगा

लेकिन मैं आशावादी हूँ

अपना जीवन निर्रथक नहीं होने दूँगा ।।

--संतोष गुलाटी

 

 

 

 

 

 

 

Saturday, December 5, 2015

नारी और विश्व की प्रगति और नर चेतना--संतोष गुलाटी


नारी और विश्व की प्रगति और नर चेतना--संतोष गुलाटी

 

नर को मानना पड़ेगा

नारी दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी का रूप है

नारी की प्रगति के बिना

विश्व की प्रगति संभव नहीं

नारी बचपन से ही जागरूक है

सब कर्तव्यों को निभाती है

अपने अधिकारों की माँग करती है

वह कभी भी सोई नहीं

नर चेतना सोई रहती  है

क्षत्राणी कभी भी सोई नहीं

विदेशी ताकत से लड़ती रही

पुरुष को चेतना जागरण का संदेश देती है

धुरी के बिना पहिया चल नहीं सकता

नारी की प्रगति के बगैर

कोई राष्ट्र प्रगति कर नहीं सकता

ज़रूरत है नर को नारी को जानने की

वैसे नर को सब पता है

लेकिन वह अनजान बनता है

नारी जब विशेष कुछ करती है

नर में हीनता का भाव जाग पड़ता है

नारी शिखर पर न पहुँच जाए

नर ने ऐसी सौगधं खाई है

उसकी प्रगति में रोड़े अटकाना

अपना शान समझता है

जब परिस्थिती बेकाबू हो जाय

वह तब अपनी लगाम

नारी के हाथ थमा देता है

शिव जब महिषासुर को न मार सके

उसको मारने के अधिकार दुर्गा को दे दिए

पापी का नाश किया

नारी के साथ काम करना

उसकी शान के ख़िलाफ है

क्योंकि वह अधिक शक्तिशाली है

पत्नि उससे अधिक कमाए

या अपने कार्य सुचारू ढंग से करे

वह सर्वदा टाँग अड़ाता है

नारी कठपुतली बन कर रहे तो ठीक

शेरनी बन जाए तो वह उसके विपरीत

बराबरी का अधिकार स्वीकार नहीं

नारी में क्या-क्या शक्तियाँ हैं

अभी तक उस से अनभिज्ञ बनता है

नर की चेतना जागृत करना आवश्यक है

जब भी नारी आवाज़ उठाती है

नर की रूह काँप जाती है

नारी की कोख़ उसको कमज़ोर बना देती है

हे जननी ! धातृ ! नर की चेतना को जगाओ

अपने अधिकारों के लिए युद्ध जारी रखो

विश्वास रखो एक दिन कामयाबी ज़रूर मिलेगी

नर को नारी के कर्तव्य बताने की ज़रूरत नहीं

एक बार नर नारी की ज़िंदगी जी के तो देखे

अपने मर्द होने का घमंड लुप्त हो जाएगा

नारी केवल भोग की वस्तु नहीं

वह अबला नहीं चंडी, सहनशीलता की प्रतिमा है

नारी का सदा सम्मान होना चाहिए।

नारी भी नर के बिना अधूरी है 

संसार को चलाने के लिए

दोनो का साथ में चलना ज़रूरी है ।

नर की चेतना को जागृत करना ज़रूरी है ।।