Wednesday, May 29, 2013

ऐतिहासिक काव्य - जलियाँवाले बाग में खूनी वैसाखी

ऐतिहासिक काव्य    -   जलियाँवाले बाग में खूनी वैसाखी

 जलियाँवाले बाग की सुनो सच्ची कहानी,
 यह एक बहुत बड़ा बगीचा था,
वैसाखी के दिन लगता वहाँ मेला था,
होता रहता गुरबानी का पाठ था | 

 अंगरेज़ों ने रौलेट एक्ट पास किया,
गांधीजी ने इसका विरोध किया,
  बाग में एक सभा का आयोजन हुआ,
   जनरल डायर ने इसका प्रतिरोध किया |
13 एप्रिल 1919 को वैसाखी का मेला था वहाँ ,
गाँव-गाँव से लोग आए थे वहाँ,
बच्चे,बूढ़े,औरतें सतसंग करते थे वहाँ,
अवसर देख कर ब्रिगेडियर डायर आया वहाँ |
कुछ सिपाहियों बन्दूकों को साथ ले कर आया,
बिना चेतावनी दिए संकरा रास्ता बंद करवाया ,
                     आते ही दनादन गोलियों की बौछार की  ,
किसी को जूते से मारा किसी को मारा लाठी से |
कोई इधर भागा कोई भागा उधर ,
छुपने के लिए गहरा कुआँ था वहाँ,
लोगों ने जान बचाने के लिए कुएँ में छलाँग लगाई,
उस गहरे कुएँ मे भी  लोगों ने जान गँवाई |
चिपक  गया दीवारों के साथ कोई,
लेट  गया  ज़मीन पर  कोई,
एक गिरा तो दस उसके ऊपर गिरे,
पता नहीं कौन कहाँ मरे |
और पीछे से चलती रही गोलियाँ ही गोलियाँ,
दस मिन्ट तक इधर-उधर चलती रहीं गोलियाँ,
बच्चे,बूढ़े,जवान,औरतें ज़मीन पर ढेर होते गए,
मानो हमेशा के लिए सोते गए |


यहाँ खेली डायर ने खूनी वैसाखी,
कितने कोमल बच्चे गोलयाँ खा कर मरे,
कितने बूढ़े तड़प-तड़प कर मरे,
यह एक जघन्य हत्या कांड था |
कोई सिसक रहा कोई  चिल्ला रहा,
हज़ारों मरे हज़ारों हताहत हुए,
जलियाँवाला बाग खून से लथपथ हो गया,
कोई ठीक गिनती नहीं कि कौन कहां  मरा |

इस बाग को अंगरे़ज़ों ने लूटा और बर्बाद किया,
  मेले के स्थान पर बाग को शमशान घाट बना दिया,
सारे शहर में कर्फयू लगा दिया,
दिल दहलाने वाला दृश्य बना दिया |
डायर अति प्रसन्न हुआ,ब्रिटिश सरकार ने उसे हीरो बना दिया,
उन शहीदों का ऊँचा स्मारक बड़ी दूर से ही दिखाई दे जाता है
वहाँ कोई आवाज़ नहीं केवल अब है शवों की कहानियां,
वहां के कई स्थल अभी भी देते हैं इसकी गवाहियाँ |
वहां की तंग गली अभी भी वैसी ही है,
वह कुआँ और दीवारें आज भी इसका प्रमाण हैं,
दीवारों पर अभी भी गोलियों के निशान हैं,
अमर ज्योति उनकी याद दिलाती है |
बदल गयी है अब इसकी कहानी,
लोग आते है यहाँ देखने कौन थे वो बलिदानी,
अनगिनत मासूम लोग मृत्यु के घाट उतर गए, 
लगते नहीं फूल अब है केवल उनके निशान रह गए,
यह अब खेलने कूदने की जगह नहीं,
य़ह अब केवल एक बलिदानों का स्मारक है,
खून खौल उठेगा आँखों में पानी सूख जाएगा,
नहीं सोच सकते  लोग वहाँ क्या हुआ |
यह किसी फिल्म की शूटिंग नहीं है,
परन्तु ऐतिहासिक आँखों देखी घटना है|
ऐसी दुःखद भरी कहानी सुन कर     
 आँसू बहाना भी उचित नहीं है |       
    भारत की स्वतन्त्रता के लिए कितने निहत्थे  बलिदान हुए,
उन स्मारकों के लिए किसी पुष्प की आवश्यकता नहीं,
जिन्होने कुर्बानी दी  केवल  उन्हे शत- शत नमन करो,
उन्हे याद करके आँखें  बन्द कर श्रद्धाजंली अर्पण करो ||
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25 एप्रिल  2013     संतोष गुलाटी