Thursday, April 25, 2013

ऐतिहासिक काव्य - पन्ना धाय

ऐतिहासिक  काव्य    -    पन्ना धाय  
ऐसी  महिलाएं तो  बहुत  देखी हैं ,
परन्तु पन्ना धाय  जैसी कोई नहीं  ,  
बहुत लोग पैदा होते हैं पर पन्ना जैसी कोई नहीं,
ऐसी कुरबानी सुनी और   देखी कहीं |
ऐसी दुःखान्त गाथा कहीं ओर  नहीं,
ऐसी स्वामिभक्त्  त्याग की मूर्ति कहीं ओर नहीं ,
उदयसिंह छः वर्ष का था जब उसकी की माँ मर चुकी थी
पन्ना धाय  ही अब उसकी सरक्षक और माँ थी |
राणा सांगा ने पन्ना को उसकी सुरक्षा के लिए चुना था ,
तब उदयसिंह  केवल एक छोटा सा बालक था,
राणा सांगा भी युद्ध मे मारा जा चुका था,
                   चितौड़ में राजा विक्रमादित्य को राजा बना दिया था |
                    विक्रमादित्य बड़ा  दुष्ट राजा हुआ,
                    उसको हटाकर बनवीर को राजा बना दिया गया,
                    बनवीर भी बड़ा विलासी दुष्ट और क्रूर  था,
बनवीर  पहले से ही विक्रमादित्यकी हत्या कर चुका  था |
   अब वह उदयसिंह को भी अपने रास्ते से हटाना चाहता था,
    पन्ना का अपना बेटा चंदन और उदयसिंह बराबर की उम्र के थे,
    दोनो साथ-साथ खेलते,खाते और रात को  उसी कमरे में सोते थे,
रात को जब दोनो बच्चे सोते थे पन्ना पंखा करती रहती थी |
बनवारी ने गद्दी के अधिकारी उदयसिंह को मारने की योजना बनाई,
शहर में दीवाली मनाने का उत्सव रचाया,
सब लोग दीपदान कराने में मस्त हो गए,
लेकिन पन्ना को इसमें कोई चाल दिखाई दी |
पन्ना को उदयसिंह के प्राणों की रक्षाकी चिन्ता हुई,
पन्ना को बाहर कुछ हलचल  सी  महसूस  हुई,
इस में पन्ना को कोई चालाकी दिखी,
उसने भी उदयसिंह को बचाने का तरीका सोच लिया |
दोनो सोए हुए बच्चो के कपड़े अदला बदली कर दिए,
उदयसिंह को एक जूठे पतलों की टोकरी में छिपा दिया,
उस टोकरी को ऊपर से अच्छी तरह पतलों से ढक दिया,
और किसी विशवसनीय क्षत्रिय के यहां भेज दिया |
अपने बेटे चंदन को उदयसिंह की जगह पर लिटा दिया ,
और चंदन का चेहरा कपड़े से ढक दिया,
और स्वयं बाहर की ओर टकटकी लगाए बैठ गई,
ज़रा सी खटक होती तों वह सहम जाती,
बनवारी उदयसिंह को ढूंढते हुए वहां आया,
पन्ना को डराया,धमकाया और लालच दिया,
बनवारी ने पन्ना को कड़कती आवाज से उदयसिंह के बारे में पूछा,
पन्ना का हृदय  कांप गया और सहम  गया |
पन्ना   ने दूर से इशारा किया  जहाँ उसका बेटा सो रहा था,
बनवीर ने रक्त रंजित तलवार निकाली  और चंदन पर वार किया,
पन्ना के मुख से चीख निकली आँखों से आँसू,
इसी को कहते हैं देशभक्ति और स्वामिभक्ति |
उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया,
पन्ना धाय का हृदय तनिक भी विचलित हुआ,
पन्ना को हर्ष हुआ कि चित्तौड़ का उत्तराधिकारी  बच गया,
और  उसने अपने कर्तव्य को पूरी तरह निभाया  |
लेकिन वात्सल्यमयी माँ को कितना दुःख हुआ होगा,
कितना अपूर्व त्याग जिसने  अपने बेटे का बलिदान कर दिया,
अपने बेटे की लाश को एक नदी के किनारे संस्कार कर दिया,
और महल में यही सोचती रही |
उदयसिंह को चुपके से किसी क्षत्रिय के घर भिजवा दिया,
बहुत वर्षों तक उसका लालन-पालन वहीं हुआ,
थोड़े समय में उदयसिह सब प्रकार से योग्य हो गया,
उदयसिह वापिस महल में सुरक्षित गया |
जिन लोगों ने बनवारी को गद्दी पर बिठाया था,
उन्होंने ही उसे राज गद्दी से उतार दिया,
और उदयसिंह को चित्तौड़  का राजा बना दिया,
पन्ना अति प्रसन्न हुई कि उसके सामने उदयसिंह  राजा बन गया |
उदयसिंह ने पन्ना के पाँव छुए और सम्मान दिया,
वो इनसान क्या जो मुसीबत में घबराते नहीं,
वो इनसान क्या जो देश के लिए काम आते नहीं,
स्वामिभक्त पन्ना धाय कितनी पूजित हुई |
वह पन्ना धाय भारत की सच्ची नारी  थी,
वो नारी जिसने अपने बेटे का बलिदान किया,
पन्ना धाय का नाम मातृत्व,वातसल्य,करूणा, एवं बलिदान केलिए,
इतिहास में सर्वदा नारियों में पन्ना धाय का नाम सबसे ऊपर लिखा जाएगा ||
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25  एप्रिल  2013     संतोष गुलाटी