Monday, April 1, 2013

खाली हाथ

खाली   हाथ

             रेवती पिछले चार वर्षों से लखनऊ से बम्बई कपड़ों का व्यापार करने के लिए रही थी॥
सालभर कपड़े सिलवा कर तैयार करवाती और फिर तीन दिनों में ही अपना सारा माल बेच कर लौट जाती॥जिन्दगी बड़ी उत्साहपूर्ण हो गयी थी॥जीवन सार्थक लग रहा था॥ इस बार भी सन्दूक कपड़ों से ठूँस दिया॥उसके साथियों ने भी अपने-अपने सन्दूक कपड़ों से भर दिए॥मन फूला नहीं समा रहा था॥वह सन्दूक नोटों से भर कर लौटेगी॥बम्बई ऐसा शहर है
कि जो खाली हाथ आता है, अपनी मुट्ठियां पैसों से भर कर ले जाता है॥इस शहर से इतना मोह हो जाता है कि व्यक्ति बार-बार व्यापार करने आता है॥केवल सतर्कता बरतने की आवश्यकता है॥गले में पहनी सोने की चेन  क्या ,शरीर के कपड़े तक उतार लिएा जाते हैं॥  
              स्टेशन पर गाड़ी गई॥रेवती ने अपना सारा सामान सीट के ऊपर-नीचे अच्छी तरह
जमा दिया॥चौबीस घंटे से ज़्यादा का सफर था॥गाड़ी में अंधेरा था॥रेवती ने अपने साथियों से कहा - सन्दूक जंजीर से बांध दे॥रात का समय है॥ खरार्टे लेने लग जाए॥मचिस जला कर सारा सामान चेक कर लें कहीं कुछ छूट जाए॥गार्ड ने हरी झंडी दिखाई और गाड़ी रेंगने लगी॥गाड़ी में रोशनी हो गई॥सभी यात्री अपनी-अपनी सीटों पर जम गए॥एक दूसरे से परिचय करने
लगे॥लेकिन रेवती अपने विचारों में खो गई॥बम्बई पहुँच कर वह किस तरह गैलरी में कपड़े सजाएगी॥कौन सी कमीज़, सलवार, कुर्ता कहां लटकाएगी ताकि ग्राहक जैसे ही अंदर आएउसकी दृष्टि उस पर टिक जाए॥यही तो है सेल्समैनशिप॥अपने ग्राहकों की सिफारिश केअनुसार वे नए डिज़ाइन के कपड़े बनवा कर लाती थी॥रेवती ने अपने आदमियों से पूछा-भाई साहब-नारियल,अगरबत्ती वगैरह रख लिए थे॥रेवती से वे बोले -बहन जी,आप आराम से सो जाईए॥वहां जा कर सब कुछ तोरण,नारियल आदि यहां तक कि उद्घाटन करनेवाले भी बड़ी आसानी से मिल जाएंगे॥भव्य सेल और दस प्रतिशत की छूट का इशतहार तो समाचार पत्रोंमें छप ही चुका है॥एक दूसरों को शुभकामनांए दी और सो गए॥
                                                 अगला पूरा दिन रेवती अपने विचारों में खोई रही॥अपनी डायरी निकाल कर ग्राहकों की
सूची पढ़ती॥कुछ हिसाब करती॥कितना लाभ होगा॥वापिस जाने पर किस-किस का हिसाब चुकता करना होगा आदि॥रात को गाड़ी बोरीबन्दर स्टेशन पर पहुँची तो वातावरण में एक घुटन सी महसूस हुई॥उनको लेने आए साथियों ने कहा-रेवतीजी, आप लौट जाइए॥कल सुबह साढे सात बजे एक गाड़ी जातीहै॥अयोध्या में बावरी मस्जिद गिरा दी गई है॥शहर में दंगा होने का डर है॥जगह-जगह पुलिस तैनात है॥डर है कि उन्नीस सौ सैतालिस के भारत-विभाजन का दृशय फिर से दिखाई दे॥किसी-किसी इलाके में कर्फ्यू भी लगा दिया गया है॥     रेवती का तीन दिन ठहरने का प्रोग्राम था॥उसने कहा वह एक दो दिन प्रतीक्षा करलेगी अगर स्थिति में सुधार आया तो वह माल बेच कर जाएगी॥उनके ग्राहक तो सभी हिन्दु,मुस्लिम,गुजराती, मराठी,पारसी आदि थे॥उसको किसी से डर नहीं॥सभी तो अपने सगे से लगते हैं॥कोई उनको हानि नहीं पहुँचा सकता॥वह अपने एक मित्र के घर ठहरी
                             स्थिति  सुधरने के बजाय बिगड़ती जा रही थी॥स्कूल,कॉलेज,कार्यालय सभी बंद कर दिए         गए थे॥कहीं  दूर आग की लपटें दिखाई पड़ रही थीं॥ पता नहीं किसने किसका घर जलाया होगा॥कौन किसका खून बहा रहा था॥वह खून जो एक गंभीर स्थिती में पड़े हुए अस्पताल में किसी के काम आ सकता है॥बाहर से आए हुए कारीगर अपने घरों को लौटने की शीघ्रता में थे॥रेवती ने लौट जाना ही उचित समझा॥मित्रों से कहा कि वह अपना सामान वहीं छोड़ जाएगी और कुछ महीनो बाद वापिस आकर माल बेच देगीं॥लेकिन उनके मित्रों को यह अनुचित लगा॥अगर लूट-मार हो गई तो इन लाखों का सामान कौन बचाएगा ॥कोई भी जिम्मेवारी लेने को तैयार नही था॥ मन मसोस कर रेवती आज खाली हाथ लौट रही थी॥गाड़ीके अंदर संदूक को ढकेल दिया॥स्टेशन पर भारी भीड़ थी॥जनसमूह बवडंर की तरह बढ़ता जा रहा था॥जिसको जहां जगह मिली कोने मेंदुबक कर बैठ गया॥कौन कहां जा रहा था पता नहीं॥सभी अपने सगे-सम्बधियों के पास पहुँच जाना चाहतेथे॥लोग ऐसे ठूँस कर भर गए जैसे रेवती ने सन्दूकों में कपड़े ठूँसे थे॥चौबीस घन्टे का समय पता नहीं कैसेकटेगा॥किसी ने कुछ खाया, कुछ पिया॥न कोई अपनी जगह से हिला॥दम घुटने लगा॥रेवती सोच रही थी कपड़ों का दम भी ऐसे ही घुट रहा  होगा॥गाड़ी चली तो राहत मिली॥कोई किसी से बात नहीं कर रहा था॥सभी तो पराए लग रहे थे॥सभी के चेहरे डर से पीले हो रहे थे॥एक दहश्त सी छाई हुई थी॥जैसे कोई युध्द हार कर आया हो और अपना सब कुछ लुटा कर खाली हाथ लौट रहा हो॥----


      

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