Saturday, July 27, 2013

केदार के नाथ--भगवान शिव के नाम

केदार के नाथ--भगवान शिव के नाम
हे केदार नाथ ! तूने यह क्या किया  
अपना तीसरा नेत्र खोल दिया
गंगा ने  रौद्र रूप धारण कर  लिया
चारों धामों को गंगा में डुबो दिया |
रात हुई घना अंधेरा छा गया
क्षण में चारोंओर तूफान मचा दिया
कोई समझा सैलाब कहाँ से गया
अपने भक्तों को भयभीत बना दिया |
इमारतें, घर , सड़कें ,पुल टूट गए   
 पथरीली चट्टानों के टुकड़े हो गए
चारों ओर हाहाकार मच गया
इन्सान हताश,असहाय हो गया |
सब कछ तहस-नहस हो गया
यह कैसा संकट गया
सब ढूँढ रहे सुरक्षित जगह
कोई सही स्थान मिला |
तूने अपने भक्तों को बुलाया
फिर उन्हें आफत मे फंसाया
फिर  उनको  गुमराह किया
हज़ारों श्रध्दालुओं ने दम तोड़ दिया  |
 कितने पत्थरों के नीचे दब गए
 कितने भूखे तड़पते गंगा मे समा गए
विवश माँबाप की ओर बच्चे देख रहे
बुजुर्ग अपने हाथों को जोड़ क्षमा मांग रहे |
मंदिर के अंदर लाशें ही लाशें
मंदिर के बाहर लाशें ही लाशें
तबाही को देख लोग सिहर उठे
विनाश से लोगों के दिल काँप उठे |
उपर से बादल बरस रहे थे
फिर भी लोग पानी के लिए तरस रहे थे
तन और मन से भीग रहे थे
त्रासदी से बचने का उपाय सोच रहे थे |
लेकिन सब मज़बूर थे
सलामती की दुआ मांग रहे थे
वह घड़ी कब आएगी
विष के बदले गंगा तेरे में समाएगी |
आए थे तेरा दर्शन करने
आए थे अपनी झोली भरने
सारे सपने चकना चूर हुए
तेरे भक्त क्यों बड़े बेबस हुए |
तेरे पिशाचों ने उत्पात मचाया
तू गंगा में बैठकर मुस्कराया
किसी ने सुनी उनकी पुकार
किसी देवता ने किया चमत्कार |
ज़िदंगी  हो गयी सहमी-सहमी
तबाही भी थी बड़ी बेरहमी
भक्तों को बेसहारा बना दिया
केदार को वीरान कर दिया |
क्यों ऐसा हो रहा था
कोई समझ पा रहा था
उनका क्या कसूर था
पता नहीं किसका शाप था |
इस स्वर्ग को नरक बना दिया
तीर्थस्थान को ध्वस्त कर दिया
लुटेरों ने भी लोगों को लूट लिया
लालची लोगों ने खूब व्यापार किया |
कितने बच्चे अनाथ हुए
कितनो की गोद खाली हुई
कितनो के सिन्दूर मिट गए
कितने अकेले रह गए |
क्या बिछुड़े कभी मिल पाएंगे
क्या वे कभी लौट आएंगे
आस्था की नींव हिल  गई
घर लौटने की आशा छूट गई |
कौन लाएगा उनके खोए लाडले
कौन खोलेगा उनके बंद घरों के ताले
कौन बिछुड़ों को मिला पाएगा
उनकी वेदना कौन समझ पाएगा |
तुझसे अब कौन प्रश्न करे
कि ऐसा क्यों कर दिया            
तेरे भक्तों ने क्या गुनाह किया
जो मदद  करने आए उनको भी फंसा दिया |
लापता  लोगों का इन्तजार रहेगा
कोई उन्हें आजीवन भुला  सकेगा
तुम कब आओगे की पुकार
होगी नहीं कभी समाप्त  |
चारों धामों से लौटे लोगों के आँसू थमते नहीं
इतनी बड़ी आपदा उन्होंने कभी देखी थी नहीं
उनका  भारी  मन,  निर्बल शरीर मानता नहीं
उनके अपनेअवश्य होंगे कहीं कहीं |
==============================
संतोष गुलाटी जुलाई 2013










Tuesday, July 16, 2013

ऐतिहासिक काव्य - पन्ना धाय

              ऐतिहासिक  काव्य    -    पन्ना धाय  
ऐसी  महिलाएं तो  बहुत  देखी हैं
परन्तु पन्ना धाय  जैसी कोई नहीं
बहुत लोग पैदा होते हैं पर पन्ना जैसा  कोई नहीं
पन्ना जैसी कुरबानी सुनी और  देखी है कहीं
राणा सांगा चित्तौड़ का राजा था
उदयसिंह उसका  एक छोटा सा बालक था
रानी का स्वर्गवास हो गया
राणा ने पन्ना को धाय के लिए चुन लिया       
राणा सांगा भी युद्ध मे मारा गया
चितौड़ में विक्रमादित्य को राजा बना दिया
विक्रमादित्य बड़ा  दुष्ट राजा साबित हुआ
उसको हटाकर बनवीर को राजा बना दिया
बनवीर भी बड़ा विलासी दुष्ट और क्रूर हुआ
उसने  पहले से ही विक्रमादित्य को मार  दिया
अब उदयसिंह गद्दी का अधिकारी  हुआ
बनवीर ने उस को भी मारने का विचार किया
पन्ना का बेटा चंदन एक छोटा सा बालक था
चंदन और उदयसिंह खेलते और खाते थे  साथ-साथ 
रात को  सोते  भी  थे  कमरे में साथ-साथ
पन्ना करती रहती पंखा दोनो को साथ-साथ
बनवीर ने उदयसिंह को मारने की योजना बनाई
शहर में दीवाली मनाने  की धूम रचाई
लोगों को दीपदान में  व्यस्त कर दिया
सारे रास्तों को प्रकाशमय कर दिया
पन्ना को बनवीर की चालाकी दिखाई दी
उदयसिंह की रक्षा की उसको चिन्ता सतायी
                     उसने उदयसिंह को बचाने का उपाय सोच लिया
सोए हुए बच्चों के  कपड़ों को  अदला बदली कर दिया
अपने बेटे चंदन को उदयसिंह की जगह पर लिटा दिया
उदयसिंह को एक पतलों की टोकरी में छिपा दिया
                     टोकरी को ऊपर से अच्छी तरह पतलों से ढक दिया
                     और  किसी विश्वसनीय क्षत्रिय के यहां भेज दिया
चंदन का चेहरा भी कपड़े से ढक दिया
बाहर की ओर टकटकी लगाए आसन जमा दिया
पन्ना को बाहर कुछ हलचल  सी  महसूस  हुई
थोड़े से खटके से वह चौकन्नी हुई
ज़रा से खटके ने उसे कंपा दिया
                     उदयसिंह को ढूंढते हुए बनवीर वहां गया
                     पन्ना को, डराया, धमकाया और  लालच दिया
पन्ना ने चंदन की ओर  दूर से इशारा किया
बनवीर ने रक्त रंजित तलवार से चंदन पर वार किया
लेकिन पन्ना का हृदय तनिक भी विचलित हुआ
ऐसी दुःखान्त गाथा कहीं ओर  नहीं
ऐसी स्वामिभक्त्  त्याग की मूर्ति कहीं ओर नहीं
पन्ना धाय की आँखों से एक भी आँसू गिरा
                      वात्सल्यमयी नारी ने अपना हृदय कठोर किया
                      उसने अपने बेटे का बलिदान कर दिया
बेटे की लाश का एक नदी  किनारे संस्कार किया
महल में आकर कुछ शोक किया
लेकिन हर्ष हुआ कि चित्तौड़ का उत्तराधिकारी  बच गया 
 पन्ना  ने धाय ,सरक्षक और माँ  का कर्तव्य निभा दिया
                                                उदयसिंह का लालन-पालन वर्षों तक  क्षत्रिय के यहां हुआ
थोड़े समय में वह सब प्रकार से योग्य हुआ
और वह   वापिस महल में सुरक्षित गया 
लोगों ने बनवीर को राज गद्दी से उतार दिया
 उदयसिंह को चित्तौड़  का राजा बना दिया
पन्ना अति प्रसन्न हुई उदयसिंह  राजा बन गया
                      उदयसिंह ने पन्ना के पाँव छुए और सम्मान दिया
                                    वो इनसान क्या जो मुसीबत में घबराते नहीं
                     वो इनसान क्या जो देश के लिए काम आते नहीं
                     स्वामिभक्त पन्ना धाय बहुत पूजित  हुई
                                               लोगों के मन में अति प्रसन्नता हुई
पन्ना ने भारत की एक सच्ची नारी का उदाहरण दिया
पन्ना वो नारी जिसने अपने बेटे का बलिदान किया
उसका नाम बेटे के बलिदान के लिए याद रहेगा
उसका नाम स्वामिभक्ति के लिए याद रहेगा
पन्ना धाय का नाम इतिहास  से कभी नहीं मिटेगा
और नारियों में सर्वदा सबसे ऊपर लिखा जाएगा |
=======================================