Friday, July 4, 2014

“आंटी गेंद पकड़ो और फेंको”

बच्चों की शरारत और उसकी सज़ा पर आधारित नाटक
“आंटी गेंद पकड़ो और फेंको”

पात्र परिचय

जतिन-10 वर्ष का लड़का |
जतिन के मित्र-पप्पू,विराज,रोहण,शिवानी,मीना,वनिता,नमिता |
आण्टी नंबर-1|
आण्टी नंबर-2-शारदा |
एक पड़ोसी |
(पर्दा खुलता है | स्थान-खेल का मैदान | जतिन और उसके मित्र गेंद खेल रहें है | खेलते-खेलते उनकी गेंद अचानक आण्टी नंबर 1 के घर की खिड़की से टकराती है |खिड़की का काँच टूट जाता है |गेंद खिड़की से अंदर चली जाती है |अंदर से आण्टी नंबर 1 के चिल्लाने की आवाज़ आती है)|
आण्टी नंबर 1-(काँच टूटने की आवाज़ के साथ |अंदर से)अरे,फिर तोड़ दिया काँच इन बदमाशों ने |यह तीसरा काँच है |(हाथ में बेलन पकड़े हुए प्रवेश | सब बच्चे चुप जाते हैं |काँच को देखती हुई) मैं तो परेशान हो गयी हूँ |रोज़-रोज़ इनको डांटने से कुछ फायदा नहीं |आने दी इनको गेंद मांगने |अब कभी भी वापिस नहीं करूँगी |चाहे हज़ार बार कहें सॉरी आण्टी | सॉरी के बच्चे |
(एक कोने में खड़े हुए बच्चे एक दूसरे को चुप रहने का इशारा करते हैं | आण्टी नंबर 1 अंदर चली जाती है )|
जतिन-आज कौन जायेगा गेंद लेने?
पप्पू-मैं तो नहीं जाऊँगा |
विराज-मैं भी क्यों जाऊँ |
शिवानी-मैं भी नहीं जाऊँगी
मीना-(जतिन से)तुम ही जाओ |गेंद इतनी ज़ोर से क्यों फेंकी |अपनी ताकत दिखाते हो |
विराज-हमेशा हम ही लेने जाते हैं |तुमने फेंकी है |तुमको ही जाना पड़ेगा |
जतिन-मैं नहीं जाऊँगा |
विराज-आज तो तुमको ही लानी पड़ेगी |डरपोक कहीं के |
जतिन-मैं डरपोक नहीं |अच्छा,आज मैं ही लेकर आऊँगा |
पप्पू-चैलेन्ज |
जतिन-चैलेन्ज |
(सब बच्चे एक कोने में खड़े हो कर देखते हैं |जतिन स्टेज पर रह जाता है |वह कभी मकान की तरफ जाता है कभी खिड़की के पास जाता है कभी अपने कान पकड़ता है(फिर एक तरफ बैठकर सोचने लगता है |पड़ोसी का प्रवेश)
पड़ोसी-अरे जतिन,तू अकेला यहाँ क्या कर रहा है ?
जतिन-आसमान में पतंगे देख रहा हूँ |
पड़ोसी-(आसमान की तरफ देखते हुए)पर मुझे तो एक भी पतंग दिखाई नहीं दे रही |
जतिन-अभी तो थी |
पड़ोसी-यह पतंगो का मौसम तो नहीं है |
जतिन-मैं एक पुरानी पतंग उड़ा रहा था |थोड़ा सा धागा था |वह सामने वाले मकान की छ्त पर अटक गयी है | मैं छोटा हूँ न इसलिये उतार नहीं सकता |आप उतार दीजिये प्‍लीज़ |
पड़ोसी-आओ मेरे साथ |मैं उतार देता हूँ |
जतिन-नहीं अंकल|आप अकेले जाकर ले आईए न|पतंग छ्त से उस खिड़की की तरफ आ गयी है|
जतिन-अभी तो थी |
पड़ोसी-तुम्हे कैसे पता कि पतंग छ्त से खिड़की के पास आ गयी है |
जतिन-यही तो रास्ता है खिड़की तक आने का |हाँ अंकल,आप जब खिड़की के पास जाएंगे तो वहां एक गेंद रखी होगी |वह भी लेते आईएगा|
पड़ोसी-चल बातेँ बनाता है |मुझे तो दाल में कुछ काला नज़र आता है |मैं कैसे अंदर जा सकता हूँ |घर के लोग मुझे चोर नहीं समझेंगे |तुझे मम्मी-डैडी ने डाँटा है और तुम यहाँ पर समय बिता रहे हो |मैं क्यों जाऊँ |मुझे बाज़ार से सामान लाना है |गेंद लेनी है तो अपने आप लेने जाओ(चला जाता है)
(जतिन फिर खिड़की के पास जाता है और डरकर वापिस आ जाता है)
(रोहण का प्रवेश)

जतिन-(रोहण को देखकर)रोहण,गेंद खेलेगा?
रोहण-थोड़ीदेर खेलूँगा |मुझे पढ़ाई करनी है |चल फेंक |रैडी |लेकिन गेंद कहाँ है?
जतिन-(हाथ से इशारा करते हुए) उस खिड़की के अंदर |
रोहण-तेरी गेंद उस खिड़की के अंदर?कैसे चली गयी?
जतिन-बस ऐसे खेल रहा था |अपने आप चली गयी |
रोहण-अपने आप कैसे चली गयी?
जतिन-काँच तोड़कर |
रोहण-तो तुम्हारा मतलब है मैं वहां से गेंद उठाकर लाऊँ|तू अपने आप क्यों नहीं जाता?
जतिन-मैं चल नहीं सकता |
रोहण-क्यों?
जतिन-मेरे पैर में काँच चुभ गया है |बहुत दर्द हो रहा है |
रोहण-दिखा,मैं काँच निकाल दूं |
जतिन–नहीं रहने दो |
रोहण-अजीब लड़का है |अरे यार सैप्टिक हो जायेगा |पाँव भी कटवाना पड़ सकता है |
जतिन–कोई बात नहीं |आजकल तो बनावटी पाँव भी लग सकता है |
रोहण-कुछ गड़बड़ी लगती है |अच्छा तू मेरे कंधों पर बैठ जा |मैं तुझे ले जाता हूँ |तू खिड़की में से कूद जाना और गेंद ले आ |
जतिन–यह नहीं हो सकता |मैं तुझे दो मार्बल दूंगा |
रोहण-मुझे नहीं चाहिए |
जतिन–अच्छा चार दूंगा |
रोहण-रहने दे |मैं इतना बेवकूफ नहीं हूँ|मैं तेरी बातों में नहीं आनेवाला |तेरी गेंद तुझे मुबारक |
तू ही जा |मैं तेरा नौकर नहीं |भगवान भी उसकी सहायता करते हैं जो अपना काम स्वयं करते हैं |मैं जा रहा हूँ | बॅाय, बॅाय |(चला जाता है)
(लड़के-लड़कियां दूरसे च़िढ़ातें हैं |)
पप्पू-नहीं मिलेगी |
शिवानी-जा,जा |ले आ |कर ले कोशिश |
(जतिन इधर-उधर चक्कर लगाता है |दूसरे बच्चों को मुट्ठी दिखाता है |इतने में शारदा आण्टी का प्रवेश |उसके हाथ में सब्ज़ियों से भरा थैला है |)
जतिन–आण्टी नमस्ते |
शारदा-नमस्ते बेटा |
जतिन–आप क्या खरीद कर लाई है?
शारदा-सब्ज़ी बेटा |
जतिन–आण्टी कौनसी ?
शारदा-भिन्डी,करेला,फूलगोभी,आलू |
जतिन–आलू क्या होता है?
शारदा-(आलू निकाल कर दिखाते हुए)यह देखो |इसे मुंबई की भाषा में बटाटा कहते हैं |और इंग्लिश में पोटैटो |
जतिन–(अपना सिर खुजलाते हुए)और भिन्डी को?
शारदा-लेडी फिंगर |लेकिन तू इतनी सारी बातेँ क्यों पूंछ रहा है?
जतिन–क्योंकि कल हमारा जनरल नालेज का टेस्ट है |टीचर ने कहा था सब्ज़िओं और फलों के नाम याद करके आना |
शारदा-अच्छा बेस्ट आफ लक |(थोड़ा आगे बढ़ती है)
जतिन–(पीछे से)आण्टी,यह सामने वाली आण्टी है न आपको बुला रही थी |
शारदा-मुझे?मैं तो उसे नहीं जानती |तुम्हे गलती लगी होगी |
जतिन–आपका नाम शारदा है न?
शारदा-हाँ |
जतिन–फिर तो वे आपको ही बुला रही थी |
शारदा-मुझे क्यों बुला रही थी?
जतिन–आप जब मेरे साथ बातें कर रहीं थी उन्होने आपको आवाज़ लगाई थी|आपने शायद सुना नहीं |मैने सोचा मैं ही आपको बता दूँ |कोई ज़रूरी काम हो सकता है |
शारदा-ठीक है |मैं अपना थैला तुम्हारे पास छोड़ देती हूँ |
जतिन–नहीं,नहीं |उन्हे शायद कोई सब्ज़ी चाहिए होगी |( शारदा जाने लगती है) आण्टी,एक बात और|आप अन्दर जाकर इस खिड़की के पास आकर मेरी तरफ इशारा करना ताकि वह आण्टी समझ जाये कि मैने आपको भेजा है| वे मुझे अच्छी तरह जानती हैं |
शारदा-(जाते हुए)पता नहीं क्या काम होगा |थैंक्स बेटा |
जतिन–वेल्कम आण्टी |(ऊँची आवाज़ में)आण्टी,खिड़की के पास एक गेंद रखी है |उसे बाहर मेरी तरफ फेंक दीजिएगा |(प्रसन्न होते हुए)आण्टी आप बहुत अच्छी है|
शारदा-(ठहर जाती है,मुड़कर)अच्छा तो यह बात है |इसीलिए मेरी चापलूसी कर रहा था |गेंद लेने के बहाने इतना बड़ा नाटक कर रहा था |तुमने गेंद अन्दर फेंकी और अब  डर रहे हो |
(बच्चे फिर जतिन को अँगूठा दिखाते हैं तथा दूर से चिढ़ाते हैं)
शारदा-मुझे किसी आण्टी ने नहीं बुलाया |तुम खुद जाओ और लेकर आओ(चली जाती है)|
(बच्चे अंगूंठा दिखाते हैं |)
जतिन–धत्तेरे की|(मित्रों से)अंगूंठा क्यों दिखा रहे हो? मैं गेंद लाकर ही दिखाऊँगा |(खिड़की के पास जाता है और डरकर लौट आता है )
(नमिता का प्रवेश)
जतिन-नमिता,तुम कहीं से रही हो या कहीं जा रही हो ?
नमिता-अजीब प्रश्न | भी रही हूँ और कहीं जा भी रही हूँ |
जतिन-वह कैसे?
नमिता-सुनो एक सहेली के घर से आ रही हूँ और दूसरी सहेली के घर जा रही हूँ |
जतिन-दूसरी सहेली को फोन तो कर दिया होगा?
नमिता- हाँ|
जतिन-तो मोबाइल लेकर आयी होगी?
नमिता-हाँ|
जतिन-मेरा मोबाइल खो गया है,मम्मी नया लेकर नहीं देती |
नमिता-तेरी मम्मी ठीक कहती है|
जतिन-थोड़ी देर के लिए अपना मोबाइल दोगी?
नमिता- क्यों?
जतिन-मुझे अपने मित्र से बहुत ज़रूरी बात पूछनी है।
नमिता-यह लो।बात जल्दी खत्म करना वरना मुझे देर हो जाएगी।
जतिन-(मोबाइल लेता है और आण्टी का नम्बर लगाता है पर जल्दी बंद कर देता है)
नमिता-बात नहीं की?
जतिन-नम्बर व्यस्त है।यह लो।(मोबाइल नमिता को देता है)
नमिता-अच्छा तो मैं जाँऊ?
जतिन- थैंक्स|
नमिता- बॅाय |
जतिन- बॅाय । अच्छा हुआ आण्टी को फोन नहीं लगा,नहीं तो बाहर आकर मेरी पिटाई कर देती|
(वनिता का प्रवेश स्कूल का बैग लटकाए हुए)
जतिन–वनिता,स्कूल से अब आ रही हो?(उसके साथ-साथ चलने लगता है)ट्यूशन से आ रही लगती हो|
वनिता-हाँ|
जतिन–तुमने होमवर्क पूरा कर लिया?
वनिता-बाकी सब हो गया|एक मैथ्स बाकी है|ज़रा कठिन है|
जतिन–मैं तेरी मदद करूं?
वनिता-नहीं|मैं अपने आप कोशिश करूँगी|
जतिन–तुझे पता हैं मैं मैथ्स में कितना अच्छा हूँ|तेरा होमवर्क जल्दी खत्म हो जाएगा|फिर तू टी वी देख पाएगी |
वनिता-यह तो ठीक है|
जतिन–तू मेरा एक काम करेगी?
वनिता-क्या?
जतिन–उस सामने वाली खिड़की के पास एक गेंद रखी है|बस,वह ले आ|
वनिता-यह तो बहुत आसान काम है|लेकिन तुम क्यों नहीं लेने जाते?
जतिन–मेरे पेट में दर्द है|मैं चल नहीं सकता|(नीचे बैठ जाता है पेट दर्द का नाटक करता है)
वनिता-चल नहीं सकता|अभी तो तुम मेरे साथ चल रहे थे|
जतिन–बस अभी-अभी शुरू हुआ है|देखो बढ़ता ही जा रहा है|बस तुम गेंद ले आओ|फिर मैं घर चला जाऊँगा |
वनिता-उस गेंद में पेट दर्द की दवा है?
जतिन–नहीं|
वनिता-तो फिर टाईम बम?
जतिन–नहीं|
वनिता-तुम्हे किसी ने बहकाया है?
जतिन–नहीं|
वनिता-तो फिर किसीने लालच दिया होगा?
जतिन–ऐसा कुछ भी नहीं | मेरी गेंद अंदर चली गयी |बस तुम गेंद ला दो|
वनिता-उस घर में कौन-कौन हैं|
जतिन-एक आण्टी है|बहुत गुस्से वाली है|लड़कों को हण्टर से मारती है |
वनिता-लड़कियों को नहीं मारती |
जतिन–नहीं |जल्दी जाओ न|
वनिता-क्यों?(वह लड़कों को चिढ़ाते हुए देख लेती है)अच्छा अब समझी|मुझे बलि का बकरा बनानेकी कोशिश कर रहे थे|ठीक है|मैं गेंद लेने जाऊँगी|पर गेंद तुम्हे नहीं  दूंगी|
जतिन-फिर मैं तुम्हारी मैथ्स में मदद भी नहीं करूंगा|
वनिता-मत करना| नहीं चाहिए तुम्हारी मदद| बॅाय,बैठे रहो गेंद की प्रतीक्षा में|(खिड़की के पास जाकर झांक कर देखती है|चली जाती है|सब बच्चे जतिन के पास आ जाते हैं|)
पप्पू-हार गया न चैलेन्ज|बच्चू,शरारत करोगे तो सज़ा भी भुगतनी पड़ेगी|
(सब बच्चे आपस में बातें करते हुए स्टेज की एक तरफ चले जाते हैं)
                        (आण्टी के घर का दृश्य)
आण्टी-(गेंद से खेल रही है)एक,दो,तीन,चार,पांच,छ:,सात,आठ,नौ और दस|आज मुझे अपना बचपन याद आ गया|कितना मज़ा आता था||(फिर से गेंद से खेलने लगती है|
(वनिता का धीरे-धीरे प्रवेश|)
वनिता-एक,दो,तीन,चार,पांच?
आण्टी-कौन? गेंद लेने आई हो?
वनिता-(डरते हुए)हाँ|
आण्टी-(डाँटते हुए)यह खिड़की का काँच तुमने तोडा था?
वनिता-नहीं |
आण्टी-जिसने काँच तोड़ा है उसे को आने दो|
वनिता-पहले हम खेल लें|(गेंद ले कर खेलने लगती है|)
आण्टी-तुम तो बहुत अच्छा खेलती हो|(गेंद वापिस ले लेती है)जाओ गेंद नहीं मिलेगी|
(धीरे-धीरे सब बच्चों का प्रवेश)
आण्टी-सब बच्चों की तरफ देखकर) जल्दी बोलो,काँच किसने तोड़ा?
बच्चे-हमने नहीं तोड़ा |
आण्टी-तो अपने आप टूट गया?तुम बच्चों ने कितने काँच तोड़े हैं?
पप्पू-मैं बताता हूँ कांच किसने तोडा|(जतिन की तरफ इशारा करते हुए)इसने|
आण्टी-और गेंद किसकी है?
जतिन-(अपने कान पकड़ते हुए) आण्टी सॉरी |
आण्टी-मैं सॉरी-वारी कुछ नहीं जानती|तुम्हे सज़ा तो मिलनी ही चाहिए |
जतिन-(उठक-बैठक करते हुए)आगे से ऐसा नहीं होगा|इस बार माफ कर दीजिये|
आण्टी-मैं तुम्हारे माता-पिता को शिकायत करूँगी|
बच्चे-ऐसा मत करिए|हम आपकी सब खिड़कियों के काँच लगवा देंगे|
आण्टी-शैतान कहीं के|ठीक है|
जतिन–बस गेंद दे दीजिये|
आण्टी-यह लो|(वनिता गेंद पकड़ लेती है)|
जतिन-मुझे दो||
वनिता-मीना,शिवानी गेंद पकड़ो|(शिवानीकी तरफ फेंकती है)|
शिवानी-आण्टी,पकड़ो|
आण्टी-लो,फिर गेंद मेरे पास|लो कैच करो|(जतिन गेंद पकड़ लेता है)|जतिन,इसबार खिड़की पर नहीं|मेरे हाथ में|(गेंद पकड़ लेती है)
जतिन-बच्चो,कैच|(सब बच्चे अपने हाथों को गेंद पकड़ने की मुद्रा में)| आण्टी फेंको| और पकड़ो
                             समाप्त



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