Tuesday, February 12, 2013

मोटूराम और पतलूराम

मोटूराम और पतलूराम
यह कहानी दो लड़कों की,मोटू और पतलूराम की ,
स्कूल में उनका साथ था,घर भी उनका पास था ,
वे बेचारे भोले-भाले, चुप  रहते जब भी कोई बोले,
दोनों ही थे शिकायत के शिकार, रोते पड़ती जब डंडों से मार,
माता -पिता थे बड़े परेशान,क्योंकि वे थे बड़े नादान ,
है कहानी नयी पुरानीमोटू और पतलूराम की

रोज़रोज़की बात है,पर यह एक दिन की बात है,
स्कूल से निकले घर को भागे, लड़के पीछे और ये थे आगे,
उन्होंने बजाई सीटी और ताली,दोनों डरे आई मुंह पे लाली ,
मोटू मुड़ा पतलू खड़ा,मोटू गुर्राया पतलू  थर्राया ,
लड़कों ने चिढ़ाया,दोनों को लड़ाया ,मोटू गिर पड़ा पतलू भिड़ पड़ा ,
मोटू नीचे पतलू ऊपर,मोटू ऊपर पतलू नीचे ,मोटू और पतलू ,पतलू और मोटू ,
मोटू ने  बांह पकड़ी,पतलू ने  टांग खींची ,मोटू ने थप्पड़ मारा ,पतलू ने  घूंसा मारा ,
मोटू ने कान पकड़ी,पतलू ने नाक पकड़ी ,मोटू ने मारा  मुक्का ,पतलू ने  दिया धक्का ,
मोटूराम गिर गए, पतलूराम घबरा गए,मोटूराम उठ गए पतलूराम भाग गए |

मोटू ने पतलू को पकड़ लिया, दोनो हाथों से जकड़ लिया,
पतलू को पकड़ा एक ने,मोटू को पकड़ा पाँच ने,
दोनो छुड़ाए गए घर को चलाए गए,
                                                                 दोनो लड़ते जाते पर आगॆ बड़ते जाते,
घर अभी दूर था मोटू चकना चूर था,
इतने में ऐसा हुआ चूहा गिरा मरा हुआ,
दोनो घबरा गए,पर गुस्से  में  गए,
मोटू लगा सोचने पतलू लगा भागने,मोटू ने पत्थर उठाए पतलू ने कदम बढ़ाए |

दे मारा पतलू की पीठ पर, और एक उड़ती चिड़िया पर,
जैसे ओर पत्थर उठाया, कि एक भालू  सामने आया,
मोटू भागा आगे-आगे,भालू भागा पीछे-पीछे,
मोटू चढ़ा पेड़ के ऊपर,भालू अड़ा पेड़ के नीचे,
मोटू बैठा टहनीपर,भालू बैठा ज़मीन पर,
मोटू बोला,” मेरे यार,शीघ्र जाओ यहां से यार,
हे भगवान दयालु, इसको खिलाओ आलू,
मिस्टर भालू,तू हो जा दयालु, तू है छोटा पर मैं हू़ँ मोटा,
ले यह छड़ी और हो जा लमलेटा,
दिखा,दिखा अपना नाच,शाबाश,शाबाश खूब नाच,
मैं भी आऊँ ? नहीं,नहीं,मैं भी नाचूं ?,नहीं,नहीं,
मैं नीचे नहीं आता,मुझे कुछ नहीं आता,
नाच प्यारे नाच,मैं हूँ जाता |

हे भगवान, दयानिधान,रख ले तू मेरी आन,फूल चढाऊँ तुझको, घर पहुँचा बस मुझको,
पतलू खड़ा था दूर पेड़ के पीछे, मन में बोल रहा था अपनी आँखें मीचे,
भालू, क्यों डरते हो? क्यों नहीं मोटू को पकड़ते हो?
ज़रा उछल और पकड़ ले टाँग, डरपोक, मत छोड़ अपना दाँव,
मोटू जल्दी-जल्दी जा रहा था,पतलू धीरे-धीरे चल रहा था,
मन में माँ से डर रहा था,
मैले कपड़े फटा कुर्ता ,माँ बनाएगी मार से भुर्ता |

कुछ करूं ऐसा जो माँ समझे अपने आप, अपने बाल बिखेरे उसने अपने आप,
कदम बढ़ाए धीर-धीरे,जैसे चले नदी के  तीरे,
मुँह फुलाया बस्ता सरकाया,माँ को बताया मोटू का नाम लगाया,
उल्टा-सीधा बतलाया,माँ को भरमाया,
माँ ने तमाचा लगाया ज़ोर से, और कान मरोड़े तो़ड़ के,
ले गई मोटू को पिटवाने, देखूँ  कैसे हाथ लगाता मनमाने,
(पर वहाँ) मोटू की माँ गरज रही थी,मोटू पर बरस रही थी,
पतलू की माँ घबराई,वापस घरको आई,
पतलू को धमकाया,फिर गले से लगाया,
यह कहानी दो लड़कों मोटू-पतलूराम की,
नयी पर लगती पुरानी, कहानी मोटू-पतलूराम की ||
फेब्रुअरी 1980

No comments:

Post a Comment