मैं अपने मन का राजा होता
जहां चाहता उड़कर चला जाता
कोई मुझे रोक न पाता
समुद्र को लाँघ विदेश पहुँच जाता
झटसे अपने घर लौट आता
न ज़रूरत हेलाकाप्टर की
न ज़रूरत किसी वीसा की
न कोई सड़क न कोई सीमा
न कोई नोट न कोई बीमा
बर्फ से ढका हिमालय मेरे नीचे
मैं ऊपर बाकी सब कुछ नीचे
जहाँ चाहूँ उड़ता फिरू मैं
सारी दुनिया की सैर करूँ मैं
Vaah bhai kya kavita likhi hai maza aa haya
ReplyDelete