“जी, हाँ, नहीं"
“जी”, “हाँ” सकारत्मक और “नहीं” नकारात्मक
शब्दों से जुड़ा नाटक “ जी,हाँ,नहीं “
(इस नाटक में बार-बार
परदा बदलने की आवश्यकता नहीं।प्रकाश (लाइट)
से दृश्य का स्थान बदला जा सकता है। परदा खुलता
है)
दृश्य 1
पात्र: केवल और आदेश
(नेपथ्य से)
स्थान:
(केवल के घर का कमरा।
एक कुर्सी और मेज़ पऱ कुछ कागज़ रखे हैं
| केवल का मोबाईल पर बात
करते हुए
प्रवेश)
केवल-जी,हाँ,बोल रहा
हूँ। जी,आप कौन बोल रहें हैं ?
आदेश-(नेपथ्य से)जी,
मैं, आदेश ।
केवल-जी, क्या काम
है
?
आदेश-(नेपथ्य से) जी,
आप से मिलना चाहता हूँ।
केवल-जी,क्यों ?
आदेश-(नेपथ्य से) जी,
सोसाईटी के बारे में
आपसे बात करनी
थी। अभी आ
सकता हूँ
?
केवल-जी, नहीं,
अभी नहीं।
आदेश-(नेपथ्य से) जी,
क्यों ?
केवल-जी,मैं
ऑफिस जा रहा
हूँ।
आदेश-(नेपथ्य) जी,
शाम को आऊँ ?
केवल-जी, नहीं।
आदेश-(नेपथ्य से) जी,
कल सुबह
?
केवल-जी, नहीं।
आदेश-(नेपथ्य से) जी,
फिर कब ?
केवल-जी, मैं फोन
कर
दूँगा।
आदेश-(नेपथ्य से) जी,ठीक है ।
केवल-जी, कोई ज़रूरी
काम है ?
आदेश-(नेपथ्य से)जी,
वह बारिश का
मौसम आने वाला है। बिल्डिंग में
छतों से पानी टपक रहा है । म्युनिसिपल कमेटी
चैक करने के
लिए आने वाली
है।अच्छा हो अगर
हम कुछ पहले
सोच लें। कुछ विशेष
बातों पर भी विचार विमर्श करना था।
केवल-जी,ठीक है
आप बोलते जाईए । मैं सब लिख लेता हूँ(कुर्सी
पर बैठकर लिखता है) । जी,
हाँ मैं लिख रहा हूँ। बोलते जाईए । जी
। हाँ, ठीक है । जी ,नहीं ,ऐसा नहीं हो सकता । जी ,नहीं। सब कुछ
चैक करके जो कार्य करेंगे सम्पूर्ण रूप से पूरा कर देगे (फोन बन्द कर देता है)
आदेश-(नेपथ्य से)जी,ठीक है ।
प्रकाश धीमा
दृश्य परिवर्तन
दृश्य दूसरा
प्रकाश
स्थान:
(आदेश के घर का कमरा
।आदेश, भौमिक, सूरज, विपुल कुर्सियों पर बैठे हुए आपस में बातें
कर रहे हैं)
आदेश-जी, वह
कहते हैं आज
नहीं।
भौमिक-फिर कब ?
आदेश-कल भी नहीं।
वह फोन करेगें।
भौमिक-जी, हम
आपस में
ही कुछ फैसला
कर लेतें हैं।
आदेश-जी, नहीं।
सूरज-क्यों ?
आदेश-हम जो भी
फैसला करें उनका
हाँ कहना ज़रूरी
है।
सूरज-जी,तो
फिर उनका इन्तज़ार कर लेते
हैं।
विपुल-हाँ, अगर बिल्डिंग
का थोड़ हिस्सा भी गिर गया और कोई ज़ख्मी भी हो गया तो लेने के देने पड़ जाएँगे।
आदेश-जी, हाँ, वह कहते
हैं जो कार्य करेंगे सम्पूर्ण रूप से पूरा करेंगे ।
सूरज-आदेशजी ?
आदेश-जी, हाँ |
सूरज- आपने उन्हें
बिल्डिंग के बाहर सीसीटीवी कैमरा अथवा दोनो तरफ लाईट लगाने की बात की
?
आदेश-जी, हाँ,
वह कहते हैं इसकी क्या ज़रूरत है ?
विपुल- ज़रूरत तो नहीं है। लोग रात को अन्धेरे में घर से बाहर जाने
से डरते हैं ।
आदेश-जी, हाँ,
मैंने कहा कि लोग कहते हैं कि रात को भूत आते हैं वे कहते हैं यह सब बकवास
है।
सब-तो हम चलते
हैं। फिर मिलने पर सब बातें साफ कर देंगे ।
आदेश-जी, हाँ।
प्रकाश धीमा
दृश्य परिवर्तन
दृश्य तीसरा
प्रकाश
स्थान:
(केवल के घर का कमरा
। केवल
मेज़ पर कोई कागज़ ढूँढ रहा है)
केवल- नीलिमा,
मेरा रूमाल कहाँ
रखा है ?
नीलिमा-जी।
केवल-मुझे रूमाल दे दो।
नीलिमा-जी।
केवल-जल्दी
लाओ
देर हो रही
है।
नीलिम -जी।
जी, लाती हूँ।
(नीलिमा रूमाल लाकर देती
है)
केवल-किसी का फोन
आए तो कह
देना मैं देर
से आने वाला
हूँ।
नीलिमा-जी।
केवल-याद है आज
बिट्टू की ट्यूशन की फीस
भरनी है ?
नीलिमा –जी, हाँ।
केवल-यह लो चैकबुक।मैंने
साइन कर दिए
हैं जितनी भी
रकम हो भर
लेना।अच्छा बॉय।
नीलिमा -जी।
केवल-जी,जी
बोलती ही जा रही हो या सुन भी रही हो
?
नीलिमा-जी।
केवल-क्या ?
नीलिमा-जी, सब सुन
रहीं हूँ ।
केवल-सुन ही रही हो
या समझ भी रही हो ?
नीलिमा-जी, हाँ, आपने
जो कुछ कहा सब सुन भी लिया और समझ भी लिया ।
केवल- क्या ?
नीलिमा-किसी का फोन
आए तो कह दूँगी आप देर से आने वाले हैं और बिट्टू की फीस भरनी है। बस ठीक है जी ।
केवल-जी,हाँ ।
प्रकाश धीमा
दृश्य परिवर्तन
दृश्य चार
प्रकाश
स्थान:
(पुराना मकान जिसमें
अब कोई नहीं रहता। उसकी खिड़कियाँ और दरवाज़े
खुले हैं और दामोदर, गगन, चोखू, पार्थ,
मेहर, विराज, सोम, केशव, चमन और फारिस मकान के बाहर जमा हैं। कुछ हाथ हिलाते हुए इधर-उधर
की बातें कर रहे हैं। )
(कार्तिक का प्रवेश)
कार्तिक-अरे भाई क्या
हो गया ?
दामोदर-जी,कुछ नहीं।
कार्तिक-फिर तुम सब
यहां क्या कर रहे हो ?
गगन-जी, ऐसे ही।
कार्तिक-मकान की छत
गिर गई ?
गगन-जी, नहीं ।
कार्तिक-कोई मर गया?
गगन-जी, नहीं।
कार्तिक-कोई ज़ख्मी
हो गया?
गगन-जी, नहीं।
कार्तिक-फिर इतने लोग
जमा क्यों है ?
चोखू-जी, मकान खाली
है।कोई यहाँ आता जाता नहीं। लेकिन कुछ आवाज़े आ रहीं हैं।
कार्तिक-जी, कैसी आवाजे?
गगन-सुनो (खिड़कियों
के खड़कने और दरवाज़ों के हिलने की ही आवाज़ें), लगता है। कोई भूत आवाज़ कर रहा है।
पार्थ-कोई अन्दर नहीं
जाना चाहता।
कार्तिक-क्यों?
गगन-सब को डर लगता
है जी ।
मेहर-हाँ, एक आदमी
अन्दर गया था अभी तक बाहर नहीं आया।
कार्तिक-तुमने उसको
जाते हुए देखा था ?
मेहर- कुछ-कुछ ।
कार्तिक-चलो जाने दो
।
चोखू-हाँ,शायद किसी
भूत ने पकड़ लिया होगा ।
कार्तिक-खिड़की में
से भाग तो नहीं गया होगा।
गगन-जी, नहीं।
पार्थ-हाँ, वह देखो
उधर उसकी परछाईं।
मेहर-हाँ, लगता है
उसकी बाँहें हिल रहीं हैं।
विराज-नहीं देखो, वह
उधर आ गया है।
सोम-हाँ,देखो,उसके
बाल भी उड़ रहे हैं। (सब अपने बालों पर हाथ फेरने लगते हैं| कोई-कोई कंघी निकाल कर बाल ठीक करने लगता है।
कोई सिर पर रूमाल बाँध लेता है।|
फारिस-जी (भीड़ में
से निकल कर आगे जाता हैं)मुझे देखने दो।
पार्थ- अरे,भूत छू मन्तर हो गया ? नहीं, वह देखो अब
वह उधर चला गया।
केशव-हाँ, वह देखो,
उसकी कमीज़ भी हिल रही है।
सोम-भूत कपड़े पहनते
हैं ?
हैडी- जी, नहीं,
शायद ।
सोम- तुम्हें कैसे पता तुमने कभी भूत देखा है ?
हैडी–जी, नहीं।
सोम- फिर कैसे पता है ?
हैडी-जी, ऐसे ही कह दिया ।
(कुछ बच्चे लोम नमन,
राजीव विलोम, देव, बिट्टू, हनी,भागते हुए आते हैं)
बिट्टू-जी, य़हाँ भूत
है ? हम को भी देखना है।
फारिस- हाँ, इधर आओ,देखो
वह(उंगली से इशारा करते हुए) ।
नमन-जी, यहाँ तो कोई
नहीं। भाग गया।
राजीव-हमने पहले कभी
देखा नही न।इसलिए हमें समझ में नहीं आ रहा कि भूत किधर है।
विलोम-हाँ, अंकल।
अगर हमें दिखाई
दे तो हम
उसकी ऐसी की
तैसी कर देंगे ।
फारिस-जी, बिलकुल
ठीक कहा ।
देव-शायद थ्री डी वाला
चश्मा लाना पड़ेगा।
हनी- जी,हाँ।
बिट्टू-मेरे पास है।मैं
लेकर आता हूँ। मैं कैमरा भी लेता
आऊँगा ।
हनी- फ़ोटो खींचेंगे। बड़ा मज़ा आएगा।
विलोम-हाँ,
उसकी फोटो फ़ेसबुक में डालेंगे ।
देव-जी,हाँ ।
हनी- मैं बोलूँगा "भूत रैडी"तू जल्दी से
फ़ोटो खींच लेना ।
दामोदर-भागो भूत आ
रहा है| ज़रा बच कर कहीं वह किसी को पकड़ न ले (बच्चे थोड़ी देर लुक-छिप कर देखते हैं फिर चले जाते
हैं) ।
चमन-मुझे भी डर लग
रहा है। मैं तो जाता हूँ (चला जाता है। लकिन
वपिस लौट आता है) ।
मेहर-हाँ, भूत अन्दर
ही होगा।
दामोदर-इस मकान के
पीछे पीपल का पेड़ है। भूत पीपल के पेड़ पर ही रहते हैं।
मेहर- जी, हाँ, वही
रहते हैं।
गगन-रात को ही बाहर
आते हैं।
केशव-हाँ, अब बारिश
हो रही है इसलिए वह मकान में आ गया होगा।
चोखू-हाँ, ऐसा ही होगा।जब
सन्नाटा छा जाएगा तब वह बाहर आता होगा।
फारिस-हाँ।
कार्तिक-भूत की टाँगे
नहीं होती वह बाहर कैसे आता होगा?
चमन-हवा में उड़ कर।
पार्थ- जी ,आप भी भूतों
में विश्वास करते हैं ?
कार्तिक--हाँ।नहीं।
केशव-सुनो, मैंने बचपन
में पढ़ा था जादूगर भूत को पकड़ कर बोतल में बन्द कर देते हैं।
चमन-जी, हाँ,मैंने
भी पढ़ा था।
गगन-तो हम भी किसी
जादूकर को बुलाते है।
सोम- हाँ, वह भूत को अपने घर ले जाएगा और काली कोठरी में
बन्द कर देगा ।
विराज-जी, हाँ।
चमन-जादूगर
के घर में भूतों को रखने के लिए काली कोठरी
होती हैं ?
कार्तिक-नहीं,
यह बकवास है ।
केशव-जी, आप कहते हैं तो हम मान लेते हैं ।
विराज- जी , सुनो,कल
एक भूत हमारे पड़ोसी के घर आया और खाना खाया फिर कुछ कपड़े उठा कर खिड़की मे से भाग गया ।
चमन-किसी ने देखा था
?
गगन-जी, नहीं | भूत
तो दिखाई हीं देते न पर बाद में पता चला कि कपड़े गुम हैं। दरवाज़े तो बन्द थे ।
गगन- जी , कोई खिड़की
में से घुस आया होगा ।
फारिस-हाँ,
बन्दर आया होगा ।आजकल बन्दर भी घर में
घुस आता है और चुपके से गड़बड़ कर भाग जाता है ।
विराज- मैं घर जाता हूँ और दरवाज़े खिड़कियाँ बन्द कर
देता हूँ(चला जाता है) ।
दामोदर-चलो, अन्धेरा
होने वाला है। भूत अभी बाहर आनेवाला होगा।
मेहर-किसी ने कभी भूत
को देखा है ?
हैडी-नहीं। फिर सब
डरते क्यो हो ?
चमन--किसी ने भूत को
देखा ही नहीं तो फिर उसको पहचानेगें कैसे ?
दामोदर-हाँ, हो सकता
है आपका कोई मित्र ही शरारत कर
रहा हो । और सब को चकमा दे रहा हो।
कार्तिक-हाँ, ऐसा भी
हो सकता है।
(सब एक दूसरे को शक
की नज़रों से देखते हैं और धीरे-धीरे खिसकना शुरू करते हैं। कि अचानक एक बूढ़ा आदमी
मकान से बाहर आता है) ।
सब-पकड़ो, उसको।वह
भाग जाएगा। (दो आदमी उसको पकड़ लेते हैं)
हैडी- जी, अरे,यह तो
वह भिखारी है जो कोने पर बैठा रहता है ।
कार्तिक-तुम अंदर क्या
कर रहे थे ?
भिखारी-( डरते हुए)जी ,कुछ नहीं।
मेहर-फिर इतनी देर
तक अंदर क्यों थे ?
भिखारी-जी, मैं (अपने
बाँए हाथ की छोटी ऊँगली दिखाते हुए) इस लिए गया था (सब हँसने लगते हैं) ।
हैडी-हम समझ रहे थे
कोई भूत होगा ।
कार्तिक-लेकिन तुम
अदर गए क्यों थे ?
भिखारी- जी, बाहर ज़ोर की बारिश
हो रही है।
भीग कर मर
जाऊँगा।
कार्तिक- चलो हम चलते हैँ।इसको यहीं रहने दो।ए, तुम अपना
ख्याल रखना।पुलिस तुम्हे चोर समझ कर जेल में न अन्दर कर दे।
चमन-हाँ, वो आवाज़ कौन कर रहा था ?
भिखारी- खिड़किया, दरवाज़े खुले है न, हवा से उनके हिलने
से आवाज़े आ रहीं होगी।
चोखू- जी, वह कमी़ज़
किसकी दिखाई दे रही थी,क्योकि भूत तो कपड़े पहनते नहीं।
भिखारी- जी, वह मेरी
ही होगी ।
कार्तिक- चलो देखते हैं।
(सब अंदर जाने का नाटक
करते हैं और दांए-बांए, ऊपर-नीचे देखते हुए चलते हैं । पार्थ मेहर को छू जाता है तो
मेहर चिल्ला पड़ता है "भूत"और फिर धीरे-धीरे गर्दन घुमाकर पार्थ को देखकर
हँसने लगता है
मेहर-अरे, उधर चलो
मैं समझा भूत आया ।
केशव- अरे , उधर देखो, यह तो पीपल के पेड़ की परछाई है ।
दामोदर- हम भी कितने बेवकूफ हैं।
सोम-हम यूं ही डर रहे
थे ।
सब–हाँ और हँसने लगते हैं ।
दामोदर- चलो हम सबसे पहले इस मकान के बाहर एक बोर्ड लगाते
हैं कि यह मकान भूत बंगला नहीं है। किसी को डरने की आवश्यकता नहीं ।
चमन-हाँ, मैं एक बोर्ड बनवा कर लाता हूँ(बाहर जाता है
और हाथ में एक बोर्ड ले कर आता है।और सब मिलकर लगा देते हैं।
प्रकाश धीमा
दृश्य परिवर्तन
दृश्य
5
प्रकाश
स्थान:
(केवल के घर का कमरा
(एक मेज़ पर पानी का गिलास रखा है))
बिट्टू-(अन्दर आते
हुए) मम्मी,पापा आज हमने भूत देखा(पानी पीता है) ।
नीलिमा –हाँ
?
केवल-जी, कहाँ ?
बिट्टू- जी, उस गली के नुक्कड़ वाले मकान में ?
नीलिमा –हाँ, कैसा था ?,
केवल- काला या गोरा ?
बिट्टू- जी,
नहीं, उसका कोई रंग नहीं था ।
केवल- तुमने देखा ही नहीं ?
बिट्टू-हाँ ,
पापा ।
केवल- ऐसे ही झूठमूठ कह रहा था ।
बिट्टू-नहीं
,पापा | मेरे साथ ओर भी लड़के थे ।
नीलिमा- कितने लड़कों ने कितने भूत देखे ?
बिट्टू- जी, मैने एक भी नहीं देखा। किसी ने दो,किसी ने
चार,किसी ने छ: ।
केवल-जी,-हाँ,
चल झूठा कहीं का। बातें बनाता है। रामायण
काल में राक्षस होते थे।भूतवूत कोई नहीं होते। (बिट्टू भाग जाता है) ।
केवल- नीलिमा ।
नीलिमा-जी।
केवल-मैं सोसीइटी की
मीटिंग में जा रहा हूँ।
नीलिमा-जी कितनी देर बाद आएँगे ?
केवल- मालूम नहीं। जी, क्यों ?
नीलिमा –जी, मुझे भी किट्टी पार्टी में जाना है।
केवल-जी।मैं आकर तुम्हे
फोन कर दूँगा ।
नीलिमा -जी, खाना घर पर ही खाएँगे या सोसाईटी वाले खिला
रहें हैं ?
केवल– हाँ,
घर पर ही खाऊँगा।
नीलिमा –जी।
प्रकाश धीमा
दृश्य परिवर्तन
दृश्य
6
प्रकाश
स्थान:
(गायत्री के घर का
कमरा)
(एक कमरे में कानन,
श्री, नयना, गायत्री, नाज़, मोना, भावना, ज़बीन, नीलिमा और कमल आपस में हँसी मज़ाक
कर रहीं हैं)
नयना-गायत्रीजी
आज वह भूतनी आ रही है ?,
गायत्री- कौन भूतनी ?
नयना- वही”मालूम है” वाली भूतनी ।
कानन-नयना,
तुमने भूत देखा है?
नयना-भूत, जी ,नहीं
तो ।
कानन -तो भूतनी कहाँ से आ गई ?(सब हँसने लगती हैं)
(रमोला का अपने बालों
का ठीक करते हुए प्रवेश)
गायत्री-रमोला, आओ,
बैठो (रमोला अपने बालों को ठीक करती है और कुर्सी पर बैठ जाती है)
रमोला-फ्रैन्डस, हैलो (कोई जवाब नहीं देता)
कानन-श्री, आज तुम
रात को क्या पकाओगी ?
श्री-जी, हाँ,कुछ नहीं।यहाँ
जो खाना-पीना होगा तो फिर घर में क्यों पकाऊँ।
रमोला-मेरे हसबैन्ड
तो होटेल से ले आएँगे।
नयना-जी, सबसे बढ़िया।
गायत्री-श्री, आप तो
रात को कुछ नहीं खाएँगी ?
श्री-जी,नहीं।
मैं डाईटिंग कर रही हूँ ।
श्री–नीलिमा जी |
नीलिमा।- जी, हाँ |
श्री- और तुम ?
नीलिमा-मैं तो घर में
ही पकाऊँगी क्योंकि मेरे हसबैंड को घर का खाना ही अच्छा लगता है ।
नाज़-गायत्रीजी आज
कुछ खाना पकाने की नई विधि बताएँ।
गायत्री-जी, आज मैं
आम के आचार की नई विधि बताती हूँ जो मेरी मम्मी ने सिखाई थी।आप सबके पास नोटबुक है?
अगर किसी के पास नहीं है तो मेरे से ले लो।
रमोला-जी,मुझे कोई
नोटबुक की ज़रूरत नहीं। मुझे सब विधियाँ मालूम हैं।
गायत्री-रमोला तेरा
तो जवाब नहीं ।अच्छा, मैं पहले सामग्री बताती हूँ। ठीक लिखिएगा। अगर कुछ भूल गईं तो
फिर मुझे शिकायत न करना l लिखिए।
कच्चे आम-1 किलो |
श्री-जी |
सरसों का तेल-200 ग्राम
|
नयना--जी, हाँ |
हींग-एक चुटकी चमच
|
नयना- जी।
नमक-100ग्राम |
मोना- जी।
हल्दी पाउडर-50 ग्राम
|
नाज़-जी, हाँ l
लाल मिरची पाउडर-1-2
टेबल स्पून |
कमल- जी।
सौंफ-50 ग्राम |
नीलिमा- जी, हाँ |
मेथी के दाने-50 ग्राम
|
भावना- जी।
पीली सरसों-50 ग्राम
|
श्री-जी, नहीं। थोड़ा
रुकिए l
गायत्री- फिर से बोलूँ ?
श्री-जी, नहीं, बस
लिख लिया l
रमोला-बस ओर कुछ नहीं
?
गायत्री-जी, नहीं
, पहले आम खरीदो l
रमोला-जी,मालूम है
उनके बिना आचार कैसे बनेगा।
गायत्री-फिर उनको अच्छी
तरह धो लो l
रमोला-जी ,मालूम है
l
नयना-जी l
गायत्री-फिर उनके छोटे-छोटे
टुकड़े कर लीजिए l
नाज़-रमोला,तुझे सब
मालूम है लेकिन हमें समझने दो l
रमोला-जी l
गायत्री- अब मसाला तैयार करो l
श्री- मैं तो मसाला बना बनाया ही खरीद लाती हूँ l
मोना- लेकिन घर का मसाला हम अपने स्वादनुसार बना लेते
हैं ।
रमोला-जी, मालूम है
l
कमल-जी l
गायत्री- अब नमक और
बाकी मसाले मिला लो l
रमोला-जी, हाँ, जी मालूम है l
गायत्री-फिर मसाले
और कटे हुए आम अच्छी तरह मिला लो
।
रमोला-जी, हाँ,जी, मालूम है l
गायत्री- अब उन्हें सूखे काँच के बर्तन में डाल दीजिए
और सरसों का तेल डाल दें ।
रमोला-जी, हाँ, यह
भी मालूम है l
नयना-जी, हाँ l
गायत्री- ऊपर से अच्छी तरह से ढक कर रख दीजिए ।
रमोला-जी ,हाँ, जी मालूम है l
भावना-नहीं तो कीड़े-मकोडे
घुस जाएँगे ।
गायत्री-जी, थोड़े
दिनों बाद खोलकर देखिए आम का आचार तैयार है।
रमोला-जी मुझे सब मालूम
है l
गायत्री- अब देखिए उसकी खुशबू सारे घर में फैल जाएगी l
ज़बीन-जी, बहुत मज़ा आएगा ।
सब-हाँ, गायत्रीजी,
धन्यवाद l
गायत्री-रमोला जी.
एक बात बताना भूल गयी ।
रमोला-जी, कौनसी ?
गायत्री हाँ, -फिर थोड़ा सा आचार एक प्लेट में रख कर
उसके ऊपर टेलकम पाउडर और इत्र छिड़क कर मेरे घर भिजवा दीजिए l
रमोला- जी हाँ,
मुझे अच्छी तरह मालूम है l
कानन-नहीं,
मुझे यह मालूम नहीं था l
नाज़-नहीं,गायत्रीजी
यह भी आपकी मम्मी ने बताई थी ?
गायत्री -जी, नहीं,
यह रमोलाजी कि “मालूम है” वाली रिसीपी है l
((सब के मुँह खुले
रह जाते हैं)
(रमोला जल्दी से उठकर
अपना मुँह बनाती हुई अपना पर्स वहीं छोड़कर चली जाती है)
(सभी औरतें हँसने लगती
हैं)
कानन- अब कुछ खाना-पीना
हो जाए ।पेट में चूहे दौड़ने लगे हैं ।
सब –जी, हाँ ।
प्रकाश धीमा
दृश्य परिवर्तन
दृश्य 7
प्रकाश
स्थान
(एक खुली जगह पर दो बैंच रखे हुए है।बैंच के पीछे पेड़ हैं। बारह वर्षीय तीन लड़के नीरद, प्रेम और सरस का प्रवेश)
नीरद -प्रेम, तू भूत
देखने गया था।
प्रेम -जी,
नहीं ।
नीरद – क्यों ?
प्रेम - पापा ने जाने नहीं दिया ।
नीरद –क्यों ?
प्रेम - पापा कहते थे अगर भूत मुझे पकड़ कर ले गया तो कौन बचाएगा ?
सरस -मुझे पता ही नहीं चला, नहीं तो मैं अवश्य जाता।
नीरद –और
तू
उसको पकड़ कर लाता और हमें दिखाता (प्रेम और नीरद हँसने लगते हैं और सब एक बैंच पर बैठ जाते हैं ।
(ताहिर ,बिट्टू और देव का प्रवेश)
ताहिर -बिट्टू।
बिट्टू -हाँ।
ताहिर- कल तेरे पापा ने क्या कहा ?
बिट्टू -हाँ, बोले,रामायण काल में राक्षस होते थे।भूत वूत कुछ नहीं होते।
देव - मेरे एक मित्र ने बताया था कि जो मरने के बाद नरक में जाते हैं भगवान उनको भूत बनाकर पीपल के पेड़ पर उलटा लटका देता है और वे पुराने मकानों में घूमते रहते हैं।
ताहिर- हाँ, वे कितने सालों तक वहाँ रहते हैं ?
देव- जी, यह तो उसने नहीं बताया ।
(तीनों भी बैंच पर आकर बैठ जाते हैं)
ताहिर-नीरद हैलो,तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?
नीरद-बातें।
बिट्टू-हाँ।
नीरद-कल तुमने मज़ा किया ?
बिट्टू- नहीं ?
नीरद- क्यों ?
बिट्टू -
लोगों ने हमें डराकर वहाँ से भगा दिया ।
सरस- चलो हम बिट्टू को लीडर बनाते हैं ।
बिट्टू- किसलिए ?
सरस–जी, भूत ढँढने के लिए ।
बिट्टू- जब भूत ढूँढ होते ही नहीं तो
अपना समय बर्बाद क्यों करे ।(खड़ा हो जाता है)
नीरद -कहीं जा रहे हो ? सुनो, एक काम करते हैं ।
सरस–क्या ?
नीरद – हम एक ई-मेल भूत के नाम भेजते हैं ।
सरस-क्या ?
नीरद- अगर सच्ची भूत होते हैं तो वह हमें मिलने अवश्य आएगा ।
सरस- उसका आईडी मालूम है ।
नीरद- हाँ, बना लेते हैं ।
सरस-क्या ?
नीरद- भूत1@ पीपलकापेड़.काम।
सरस- क्या बात है । मैसेज क्या लिखोगे ?
नीरद-अगर तुम हमें मिलना चाहते हो तो दो क्षण में पार्क के इस पेड़ के नीचे
बैच के पास आ जाओ हम लड़के तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहें हैं ।
ताहिर-वह आएगा ?
नीरद-अगर भूत होते हैं तो यह मेल पढ़कर वह अवश्य आएगा ।
बिट्टू-अगर वह आ गया तो ?
देव-डर कर भाग मत जाना ।
नीरद-देखते हैं ।
देव-मेरे मोबाईल में इन्टरनैट है । कोशिश करो ।
नीरद-(मोबाईल लेकर मैसेज लिख कर मेल भेजता है ।) लो मेल गई ।
सरस-अब देखते हैं आगे क्या होता है ।
बिट्टू-मैं अभी आता
हूँ,मुझे कुछ काम याद आ गया(चला जाता है ।और जल्दी
ही अपने आपको भूत जैसा बना कर-ढीले कपड़े,बाल बिखरे हुए, चेहरे पर भूत का नकाब पहने
हुए नाचते हुए प्रवेश करता हे।इधर-उधर भूत का नृत्य करता है।नृत्य करते हुए हुआँ-हुआं
करते हुआ बच्चों को डराता है)।
सरस-हाय ! यह कौन आ गया ?
ताहिर-मुझे तो भूत ही लगता है।
बिट्टू-नीरद तुमने बुलाया
था लो आ गया । बताओ, क्या काम है ?
देव-मुझे तो कोई पागल लगता है।
नीरद- इसको कोई भी मत छूना।
सरस-चलो यहाँसे चलते हैं।
देव-चुप बैठो।
बिट्टू-(आवाज़ बदल
कर फिर बैंच पर बैठे मित्रों के पास आता है) जी,तुम कौन हो ?(नाचता रहता है ।
नीरद-जी, हम एक स्कूल
के लड़के हैं ।जी ।
बिट्टू-जी, तुम यहाँ
क्या कर रहे हो?(बच्चों और पेड़ों का चक्कर लगाता है)
सरस-नहीं, नहीं कुछ
नहीं जी ।
ताहिर- जी ,नहीं, हम अपनी कुछ प्राबलम हल कर रहें हैं ।
बिट्टू-(
बैच का चक्कर लगाता है)मुझे लगता है तुम स्कूल से भाग कर आए हो।होहोहोहो।
नीरद –जी, नहीं, नहीं ऐसा कुछ भी नहीं।
ताहिर- डरते हुए, मगर तुम हो कौन ?
बिट्टू- (ज़ोरसे हँसता है) मैं,मैं (हसँता है) एक भूत हूँ तुमने मुझे बुलाया और मैं आ गया । (सब डर से काँपने लगते हैं और एक दूसरे से चिपक जाते हैं)
नीरद-मुझे नहीं मालूम था कि सच्ची भूत होते हैं ।
देव- जी ,जी मारे गए । कोई बचाओ।
बिट्टू -शोर मत मचाओ ।नहीं तो तुम सब को पकड़ कर अपने साथ पीपल के पेड़ ले जाऊगा और उलटा लटका दूँगा।
देव-नहीं,नहींऐसा मत करना। मुझे मत पकड़ो ।(खड़ा हो जाता है)
बिट्टू- जी, बैठ जाओ। भागने की कोशिश न करना नहीं तो मैं सब को पकड़ कर ले जाऊँगा।तुम्हारे साथ एक ओऱ भी तुम्हारा मित्र है ।वह कहाँ है ?
सरस-बस उधर गया है।आता ही होगा।
प्रेम-नहीं, तुम उसको पकड़ कर ले जाना हमें नहीं।
बिट्टू-क्यों वह तुम्हारा मित्र नहीं ?
प्रेम –जी ,हाँ,बिलकुल हमारा मित्र है।
बिट्टू -फिर उसे ही
क्यों पकड़ूँ ?
सरस –(धीरे से )क्योंकि,क्योंकि
।
बिट्टू–-म्याऊँ--मय़ाऊँ
क्या करते हो ? ज़ोरसे बोलो क्योंकि मतलब ?
ताहिर-क्योकि वह सबसें
अच्छा लड़का है ।
नीरद -जी, पकड़ कर
फिर क्या करोगे ?
बिट्टू –
जी,तुम सब अभी छोटे हो न इसलिए पकड़ूँगा
नहीं। सबके साथ गेम खेलूँगा।
ताहिर –हाँ, जी, यह
ठीक रहेगा।लो हम तैयार है।(सब को खड़े होने का इशारा करता है)।
(सब धीरे-धीर खड़े
हो जाते हैं)।
देव-तुम झूठ बोलते
हो ।अगर भूत हो तो खेल-खेल में हमारा गला दबा दोगे ।
बिट्टू –जी ,नहीं,माँ कसम। मैं झूठ नहीं बोलता। मेरी
मम्मी ने कहा था जो झूठ बोलता है उसकी नाक लम्बी हो जाती है।
(सब अपनी नाक पकड़ते
हैं। बिट्टू जैसे ही अपनी नाक पकड़ता है उसके चेहरे की नकाब गिर जाती है और सब उसे
पहचान लेते है)।
नीरद -अरे यह तो बिट्टू
है।तू भूत की एक्टिग कर रहा था ?
बिट्टू- जी ,हाँ ।
देव - जी ,
लेकिन क्यों ?
बिट्टू-कल किसी ने भूत नहीं देखा न और तुम देखना चाहते थे ।,मैं आज तुम सब को डराने का नाटक कर रहा था
प्रेम-तुम ने तो हमारी जान ही निकाल दी थी । चल अब बैठकर कुछ ओर बातें करते हैं।
नीरद-बिट्टू, एक बात
बताओ ।
बिट्टू-क्या ?
नीरद-मैंने जो मेल
भेजी थी उसका क्या हुआ ?
बिट्टू-तुमने बाद में ठीक तरह से चैक ही नहीं किया ।
नीरद- क्या ?
बिट्टू- मैने देख लिया था कि वह वैब साइट है ही नहीं तो मेल गयी ही नहीं ।
नीरद- तुमने हमें बताया ही नहीं
बिट्टू- मुझे आईडिया आया कि आपको भूत देखना है तो मैं ही क्यों न एक नाटक कर लूँ ।
नीरद- तुम्हारा आईडिया
ठीक था ।
देव-मेरा तो दिल अभी तक धक-धक कर रहा है ।
बिट्टू - जी ,सॉरी, (सब बैठ जाते हैं) प्रेम, अब कुछ काम की बातें करते हैं ।
प्रेम - मेरे
दादाजी कहते हैं ।
देव- क्या कहते हैं ?
प्रेम- -हमें ईगल पक्षी की तरह होना चाहिए । क्योकि वह ऊँची उड़ान भरता है। उसके साथ गौरया या दूसरे छोटे पक्षी नहीं होते हैं। कोई दूसरा पक्षी उसके साथ उड़ ही नहीं सकता। उसकी निगाहें बहुत तेज़ होती है। वह पाँच किलोमीटर तक की दूरी से भी अपने लक्ष्य पर दृष्टि को केंद्रित कर सकता है। अगर दृष्टि एक लक्ष्य पर उसे केन्द्रित कर दिया जाय, तो फिर बाधायें सफलता के आड़े नहीं आती हैं।
सरस- हमें भी उसकी तरह होना चाहिए
। जैसे महाभारत में अर्जुन की निगाँहे
घूमती हुई मछली पर थी बस वैसे ही |
नीरद –जी, और, क्या कहते हैं
?
प्रेम -जी ,
जो काम करता रहता है वही आगे बढ़ता है ।
सरस -जी,
तो अब हमें
क्या करना चाहिए
?
दूसरों को भी जीने की तमन्ना हो,
हमारे काम में दिखे हमारा नाम,
सदियाँ बीत जाएँ पर रहे हमारा नाम,
बने मार्ग दर्शक और मिले सम्मान,
भूले भटके राही को भी मिले जीवन का ज्ञान ।
प्रेम-दादाजी कहते हैं ।कोई साथ न चले तो अकेले ही चलो जैसे रविन्दरनाथ
टैगौर ने कहा था ।
ताहिर-जी और हमें कैसे रहना चाहिए ?
प्रेम-कोई भी स्थिर नहीं हैं ।पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती रहती है । सूर्य
भी समग्र सौरमण्डल को लेकर आगे बढ़ता रहता है । हमें भी ऐसे कार्यरत रहना चाहिए ।
देव -जी,ठीक कहते हैं ।जो प्रयत्न नहीं करते वे जानवर के समान हैं । जो मिलता हैं खा लेते हैं ।
बिट्टू-हाँ।मतलब हमेंअपना समय बेकार की बातों में नहीं लगाना चाहिए ।
देव-जी,हाँ,लेकिन मैं अगर एक वक्ता बना तो मुझे तो हमेशा कुछ न कुछ तो बोलते
ही रहना पड़ेगा ।
बिट्टू-अगर मैं लीडर बना तो फिर मेरा क्या होगा ?
प्रेम-जी,तुम चलते ही रहना ।लीडर का काम होता है एक गाँव से दूसरे गाँव चलते
ही रहना ।जो चलते नहीं वे दूसरों के लिए बाधा बन जाते हैं ।दिमाग में आईस फैक्टरी और
ज़बान पर शूगर फैक्टरी होनी चाहिए ।
बिट्टू -नहीं मैं ऐसा लीडर नहीं बन सकता ।
देव –क्यों ?
नीरद –जी,
हाँ,नहीं, तुझे कुछ नहीं करना होगा । बस कोई बात पूछे तो जवाब देना "सत्यमेव जयते " और तुम्हारा नारा होगा "जी,हाँ,नहीं "।तभी तू सफलता के शिखर पर पहुँच सकेगा ।
बिट्टू- जी , ठीक है । लेकिन तुम सब क्या करोगे ?
सरस - हम तुम्हारा साथ देंगे क्योकि तुम एक अच्छा लीडर बनोगे तो अपने साथियों को सही दिशा पर ले जाओगे
बिट्टू - जी , आपका मतलब है कि एक अच्छा लीडर बनूँगा ।
ताहिर- क्यों ? नहीं
?
नीरद -और तेरा नारा होगा।
बिट्टू- क्या?
नीरद-“जी “हाँ नहीं”, “जी, हाँ
नहीं “।
ताहिर-“जी हाँ नहीं, “जी, हाँ
नहीं “।
देव “जी हाँ नहीं, ” जी, हाँ नहीं” ।
बिट्टू-नीरद ।
नीरद-जी ।
बिट्टू- क्यों न एक रिहर्सल करली जाए ?
नीरद-हाँ, मज़ा आएगा । रैडी ।
बिट्टू- एक “जी,हाँ ,नहीं”
का झंडा बनवा ले कऱ उसे हाथ में लेकर चलें ।
ताहिर- मैं झंडा लेकर आता हूँ (बाहर जाता है और जल्दी झंडा लेकर आता है ।
(सरस और प्रेम झंडा पकड़ कर आगे चलते हैं ।
उनके पीछे बिट्टू और बिट्टू के पीछे नीरद
चलता है) वे स्टेज पर एक कोने से स्टेज के दूसरे कोने तक सत्यमेव जयते बोलते हुए चलते
रहते हैं )।
बिट्टू-हम कहाँ जा
रहे हैं ?
नीरद- एक गाँव से दूसरे गाँव ।
(ताहिर और देव गाँव के लोगों की तरह हाथों में लाठियाँ पकड़े हुए स्टेज के दूसरी
तरफ से आते हैं)
बिट्टू-नीरद, ये लोग लाठियाँ पकड़े
हुए क्यों आ रहे हैं ?
नीरद-जी,वे डर गए होंगे कि हम उनके गाँव में बिना बात के नारे बाज़ी क्यों कर
रहे हैं ।
ताहिर-(देव से)जी ,यह क्या हो रहा है ?
देव- आप लोग जूलूस क्यों निकाल रहे हैं ? जी ?
नीरद-हम एक गाँव से दूसरे गाँव लोगों की परेशानियों का पता लगा रहे हैं ।
ताहिर-जी, यह झंडे के ऊपर सत्यमेव जयते क्यों लिखा है ?
नीरद-(बिट्टू की तरफ इशारा करते हुए) यह हमारा लीडर है ।वे समझा रहे हैं कि
जैसा कृष्ण ने गीता में कहा था सत्य की हमेशा जीत होती है वैसे ही काम हम भी करेंगे
।
देव-जी हाँ ठीक कहते हैं।
बिट्टू-जी हाँ,
आप जैसा कहेंगे
हम वैसे ही काम करेंगे ।जी,हाँ,बुरा या गलत काम कभी नहीं करेंगे ।
ताहिर और देव-जी हाँ, तो
हम आपके साथ चल सकते हैं ?।
बिट्टू- जी हाँ ।( ताहिर और देव सरस और प्रेम के पीछे चलते हैं) |
नीरद- जी हाँ बिट्टू, बस इसी तरह तुम्हें चलते रहना होगा ।
प्रेम - जी हाँ,तो हो जाँए हमारे लीडर बिट्टू के लिए तालियाँ ।
(सब तालियाँ बजाते हैं)
बिट्टू (सबको हाथ हिलाकर
धन्यवाद देता है)
(परदा गिरता है)
संपर्क-
संतोष गुलाटी, मोबाइल न.
9820281021.
Email ID toshigulati@rediffmail.com/
Email ID toshigulati@gmail.com
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