कली खिली,
कली खिली
कली खिली,
कली खिली
कली खिली शोर हुआ बाग में
सब मनमोहक हुआ बाग में
कली खिलखिलाने
लगी बाग में
कली इतराने लगी बाग में
कली झूलने लगी बाग
में
माली सफल हुआ बाग में
भौंरों को खबर हुई बाग में
भौंरें गुनगुनाने लगे बाग में
भौरें घूमने लगे बाग में
कली पर मँडराने लगे बाग में
कली से रिश्ता जोड़ने लगे बाग में
कली को छूने लगे बाग में
कली डर कर सिमटने लगी
थोड़ा सब्र करो कहने लगी
मुझको फूल बनने दो कहने लगी
भौंरों को न इंतज़ार हुआ
किसी ने उसपर न विश्वास किया
भौंरों ने उस
पर वार किया
खिली कली को कुचल दिया
माली का संघर्ष व्र्यर्थ हुआ |
संतोष गुलाटी
मोबाईल: 982 028 1021
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