Friday, August 22, 2014

बेटी का हरण

रचनाकार की रचना रंग लाई
कानों में आवाज़ आई
एक ओर बेटी घर में आई
(पर) चारों ओर उदासी छाई

भगवान का आशीर्वाद माना
मेरी खुशी का न था ठिकाना
नौ महीने कोख संभाला
हो न जाय कोई हल्ला

चोरी-छिपे कांड हो गया
मेरी बेटी का हरण हो गया
कौन ले गया कहाँ ले गया
किसी ने न बताया क्यों ले गया

एक बार उसका चुंबन न लिया
एक बार उसका चेहरा न देखा
कोई बतादे उसका पता ठिकाना
दिन-रात देखूँ मैं सपना डरावना

कूड़ेदान में न फेंका हो
खूँखार कुत्तों ने न चीरा हो
जल्लादों ने न काटा हो
पहाड़ से न फेंका हो

दिख जाए अगर वह कहीं दूर से
कर लूँगी आलिगन उसका दूर से
ममता मेरी खींच लाएगी उसको दूर से
पहचान लूँगी उसको दूर से

किसी ओर की गोद में खेले मंज़ूर है
किसी ओर को माँ पुकारे मंज़ूर है
कहीं ओर चहके मुझे मंज़ूर है
उसका अस्तित्व रहे बस यही अरमान है ।
------------------------------------------------------------
 संतोष गुलाटी
मोबाईल: 982 028 1021


No comments:

Post a Comment