कुत्ते की मौत
एक कुत्ता फुटपाथ पर मरा पड़ा था . उसका शरीर एकदम अकड़ा हुआ था मानो कोई कुत्ता भूसे का
भरा हुआ हो और उसे किसी ने खिड़की से नीचे फेंक दिया हो . शायद मुनिसिपल वालों ने ज़हर दिया हो और वह मर गया होगा . किसी गाड़ी से कुचला हुआ नहीं लगता था क्योंकि कोई अंग ज़ख़्मी नहीं लगता था . लगता था अभी मरा हुआ होगा क्योंकि वहां न तो मक्खियाँ भिंन-भिना रहीं थीं और न वहाँ कौओं की कांव -कांव थी .
उसके आस -पास से कई लोग आ जा रहे थे . लेकिन रुक कर कोई नहीं देख रहा था कि वह वहां क्यों पड़ा था . यह तो मुम्बई वालों का नियम है कि किसी के पास इतना समय ही नहीं कि वह दूसरों की तरफ देखें . अगर देखें तो शायद पुलिस वाले उसे ही जेल में डाल दें . यह सोच कर कि उसी ने उसकी ह्त्या की होगी . खैर जाने दो .
उस कुत्ते की लाश से थोड़ी दूरी पर एक दूसरा कुत्ता ,कुतिया और दो पिल्लै वहां बैठ कर उदासीन आँखों से उसकी और देख रहे थे . जैसे कि कोई अपने सगे --सम्बन्धियों की चिता की तरफ देखता है . उसके सगे सम्बन्धी ही होंगे , क्योंकि वहां किसी दूसरे कुत्ते के भोंकने की आवाज़ भी नहीं थी . जैसा कि कुछ घटित होता है तो आस -पास के कुत्ते भोंकने लगते हैं . शायद वे सोच रहें हों कि अब उस कुत्ते का क्या होगा . कौन उसे से ले जाएगा या वहां वहीँ पर लोगों के . पांवों के नीचे आकर मसला जाएगा शायद वे उसकी रखवाली कर रहे थे और इस प्रतीक्षा में थे कि उसे मान सम्मान के साथ विदा कर सकें . या फिर इस आशा में थे कि वह फिर जीवित हो उठे और वे यह सोचने पर मजबूर न हों कि यही अंत उनका भी हो सकता है . में वहां रुक गयी और देखने लगी कि अब इसका क्या होगा. लेकिन थोड़ी देर बाद एक कमेटी की गाड़ी आई और उसे उठा ले गयी क्यों कि कहीं बदबू न फैल जाए .
यही है इस जीवन का अंत . कौन अपना और कौन पराया .........
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