रेखाचित्र(सत्य वर्णन)—मुन्नीलाल-- संतोष गुलाटी,
मुन्नीलाल एक दुकानदार है। उसकी दुकान सारे इलाके में मशहूर है। एक गोदाम की तरह बहुत सी वस्तुएं रखी हुई
हैं। वह मानो एक जादू का पिटारा हो। आप उसे कबाड़ी की दुकान भी कह सकते हैं। और एक अजायबघर की तरह है। लेकिन उसे अपनी दुकान पर बड़ा
गर्व है। जो वस्तु किसी ओर दुकान पर नहीं मिलती वहाँ मिल जाती हैं। वह सुबह सवेरे ही
वहाँ आ जाता है और देर तक वहाँ ग्राहक की प्रतीक्षा में बैठा रहता है। जैसेः
वह कमीज़, पाजामा और चप्पल पहन आँखो पर चश्मा लगाए कंधे पर एक थैला लटकाए दुकान पर आया। सबसे पहले हाथ जोड़े, दरवाज़े के ताले को छूकर भगवान से
प्रार्थना की, ज़ेब से एक चाबी निकाली, ताले में चाबी घुमाई, ताला खोला, ताले को कड़ी से निकाला, कड़ी खोली, दरवाज़ा खोल एक तरफ़ कर दिया। ज़मीन
को हाथों से छुआ, ताला एक ऊँची जगह पर रख दिया,( घर के दरवाज़े अंदर की तरफ, दुकानों के दरवाज़े बाहर की तरफ खुलते हैं)। सारे सामान पर नज़र डाली, क्या-क्या रखा है चैक करने लगा। एक कपड़ा लिया और सामान को कपड़े से धूल झाड़ने
लगा। फिर दुकान के पिछले हिस्से में गया, एक चक्कर लगाया और प्रवेश द्वार
लौट आया।
एक ग्राहक आया, उसने एक विशेष प्रकार की नोटबुक माँगी, मुन्नीलाल अंदर गया, वस्तुएँ ऊपर नीचे करने लगा। ग्राहक बेचारा खड़ा रहा,
मुन्नीलाल को आवाज़ लगाता,
थोड़ी देर बाद आखिरकार नोटबुक लेकर बाहर आया,
ग्राहक को दी, ग्राहक ने मुन्नीलाल को पैसे
दिए, मुन्नीलाल ने तिजौरी
खोली और पैसे उसमें रखे और तिजौरी बंद कर दी।
मुन्नीलाल अंदर गया । दूसरा ग्राहक आया, मुन्नीलाल को आवाज़ दी, मुन्नीलाल खाली हाथ बाहर लौट आया,ग्राहक को रोक कर फिर अंदर गया, और ग्राहक ने फिर आवाज़ लगाई, मुन्नीलाल बाहर आया और पूछा उसे क्या खरीदना है, ग्राहक ने एक बोतल का ढक्क्न माँगा, मुन्नीलाल ने जल्दी से लाकर दे
दिया। ग्राहक ने पैसे दिए और चला गया। मुन्नीलाल ने फिर तिजौरी खोली और पैसे रखे और
तिजोरी बंद कर दी।
एक चाय वाला वहाँ आया और मुन्नीलाल ने एक कप चाय ली और एक घूँट भरा। चाय बहुत गरम
थी इसलिए कप मेज़ पर रख दिया।
एक लड़का दुकान पर आया और मुन्नीलाल को पंतग के लिए बोला । मुन्नीलाल अंदर गया
और पंतगे ढूँढने लगा। लड़का इंतजार करता रहा। लड़के ने पुकारा-मुन्नीलाल,पंतग मिली ?
मैं जा रहा हूँ। मुन्नीलाल
जल्दी से पतंग लेकर आ गया और पंतग लड़के को दिखाते हुए बोला-माफ़ करना,बहुत सामान है न समय लग गया। आने-जाने और ढूँढने में ज़रा समय
लग लग जाता है । लड़के ने पंतग ली और पैसे देते हुए कहा
कि उसे एक ओर आदमी रखना चाहिए। ग्राहक का कितना समय बरबाद होता है। मुन्नीलाल ने कहा जगह कम है दो आदमी चल नहीं
सकते । लड़के के जाने के बाद मुन्नीलाल ने चाय का कप उठाया और ठड़ी चाय की चुस्की भरी और तिजोरी से पैसे निकाल कर चायवाले को दिए। चायवाला पैसे और चाय का कप ले कर चला गया।
मु्न्नीलाल ने दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ़
देखा। जो बंद पड़ी थी और बेचने के लिए रखी थी। जो दो बजे का समय दिखा रही थी। मु्न्नीलाल ने ज़मीन पर चटाई
बिछाई, चटाई पर बैठ गया। थैली से खाने का डिब्बा और पानी की बोतल निकाली, बोतल का ढकक्न खोला,पानी गिलास में डाला,फिर भगवान से प्रार्थना की, डिब्बा खोला,
खाना खाया,पानी पिया,डिब्बा बंद किया,फिर खाने का डिब्बा और पानी की बोतल का ढक्कन बंदकर थैली में रख दिए। घड़ी की तरफ देखा और चटाई पर
लेट गया।
इतने में एक ग्राहक आया। मुन्नीलाल को आवाज़ दी। मुन्नीलाल
ने जवाब दिया। अब आराम करने का समय है एक घंटे बाद आना। ग्राहक जानेवाला था कि मुन्नीलाल
उठ पड़ा क्योंकि यह सोचकर एकबार लौटाया ग्राहक लौट कर नहीं आता । ग्राहक
ने कहा कि वह कल जो सामान ले गया था वह लौटाने आया है क्योंकि वह उसकी जगह फिट नहीं
होता। मुन्नीलाल ने उसे कहा वहाँ सब पुराना माल ही बिकता है। बेचा हुआ माल वापस नहीं लिया जाता।ग्राहक
मुँह लटका कर चला गया। मुन्नीलाल ने चटाई उठाई, लपेटी,और एक कोने में रख दी। जब कोई ग्राहक न होता तो मुन्नीलाल कपड़ा लेकर सामान झाड़ने लगता।सामान झाड़ते-झाड़ते
कुछ नीचे गिरा, मुन्नीलाल ने उठाकर कहीं भी रख
दिया। अब अंधेरा होने लगा। मुन्नीलाल ने रोशनी के लिए बिजली
का बटन दबाया। कमरे में रोशनी हो गई। मुन्नीलाल सारा सामान दूसरे दिन के लिए ठीक करने लगा।
दो लड़के दुकान पर आए और एक गिफ्ट बाँधने के लिए रिबन माँगा। मुन्नीलाल ने कुछ
पुराने रिबन दिखाए, लड़कों ने कम दाम पर पुराना
रिबन खरीदा। मुन्नीलाल ने पैसे स्वीकार
किए क्योंकि अब दुकान बंद करने का समय था। एक घंटे बाद उसने तिजौरी खोली,पैसे रखे और सारे पैसे गिने, जेब में से पर्स निकाला, पैसे पर्स में रखे, पर्स को बंद कर कमीज़ की जेब में रखा।
लाइट बंद की,ताला उठाया, बाहर आया,दरवाज़ा बंद किया,कड़ी लगाई,कड़ी में ताला डाला,चाबी से ताला बंद किया,चाबी अपनी जेब में डाली, हाथ जोड़े और घर की ओर चल दिया।
प्रेषिका
संतोष गुलाटी,
७, आरोविल्ले,
जैन मन्दिर के सामने,
जैन देरासर मार्ग,
सान्ताक्रूज़(प),
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