इक्कीसवीं सदी में नारी का स्वरूप
बीत गई सदी बीसवीं,
इक्कीसवीं सदी में नारी अपना स्वरूप है बदल रही,
सर्वत्र अपनी धाक है जमा रही ॥1
बचपन से कुशाग्रबुद्धि और परिश्रमी,
सर्वत्र अपना अधिकार है जता रही,
सुशिक्षित ,सर्वेसर्वा नारी हो रही ॥ 2
अध्ययन में सर्वप्रथम है हो रही,
नौकरी पेशे में सर्वोत्तम सर्वोच्च पदों पर है विराज रही,
सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी अपना कौशल है दिखा रही ॥3
कार क्या वायुयान भी उड़ा रही,
सोना-चांदी नहीं उसका गहना,
असंभव को संभव है बना रही ॥ 4
लक्ष्मी, सरस्वती,दुर्गा जैसा रूप है उसका,
आत्मनिर्भरता का है जीवन उसका,
घर से लेकर देश की प्रेसीडेटं तक का कार्य है उसका॥ 5
जब नारी में है शक्ति सारी,
फिर क्यों वह बने बेचारी,
सर्वजयी,सर्वज्ञा,सर्वव्यापक हो रही नारी॥6
स्वयं पर है विश्वास उसका,
समाज को बदलने का है लक्ष्य उसका,
सर्वजनप्रिय, सहभागिनी हो रही नारी॥ 7
यह बदलता रूप उसे कहां ले जाएगा ?
भ्रूणहत्या,बलात्कार,दहेज की मांग ?
क्या इनको रोक पाएगा ? 8
उन्नति की बाधाओं को वह क्या रोक पाएगी ?
वात्सल्य की मूर्ति क्या करेगी ?
त्यागमयी नारी क्या करेगी ? 9
पुरूष समान अधिकारिणी हो पाएगी ?
सबला नारी का जीवन जी पाएगी ?
सर्वगुण संपन्न नारी आत्मरक्षा कर पाएगी ?॥10
सर्वत्र सम्मानित नारी क्या पुरूषों से होड़ ले पाएगी ?
उसके लक्ष्य का क्या होगा ?
अपनी कीर्ति खो कर घर में कैद तो नहीं हो जाएगी ?1
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