28-02-2012
सुहाग की बिंदी ( सत्य घटना ) { संतोष गुलाटी } NADAAN PARINDEY
हमारे पड़ोस में बहुत वर्षों से पार्वती नाम की एक औरत घर का काम करने आ रही है . माथे पर एक बहुत बड़ी लाल रंग की सुहाग की बिंदी लगाती है . यही उसकी पहचान है .लोग उसे बिंदी वाली बाई के नाम से जानते हैं . असली नाम तो कोई -कोई ही जानता होगा .
एक दिन मेरा परिचय उस से हो गया . मेरे पूछने पर कि वह इतनी बड़ी बिंदी क्यों लगाती है . अपनी सारे बीते हुए दिनों की कथा सुनाई . अभी वह बहुत खुश है लेकिन उसका बीता समय बड़ा शुष्क और परिश्रम भरा था . उसका पति कहीं खो गया था . लेकिन उसने सुहाग की बिंदी लगाना नहीं छोड़ा.
वह शीशे के सामने खडी हो कर माथे पर लाल बिंदी ज़रूर लगाती थी . वह पिछले कई वर्षों से लगाती आ रही थी . सोचती थी कि एक दिन उसका पति पीछे से आ कर खड़ा हो जाए और उसे बाहों में भर ले और कहे कि “अब वह उसे कभी जाने के लिए नहीं कहेगी और वह उसे कभी छोड़ कर नहीं जाएगा .” वह बड़ी मनहूस घड़ी थी . सुबह काम पर जाते हुए उसके पति ने अपनी बाहों में भर कर कहा था , पार्वती , “ मैं जाऊं ? “पार्वती ने कहा था ” जाना तो पडेगा ही . बिना काम पर जाए पैसे कहाँ से आएँगे ? " उस दिन वह ऐसे गया कि कितने वर्षों तक वह लौट कर नहीं आया . काश ! वह ऐसे शब्द अपने मुंह से न निकालती . जब वह गया तो वह गर्भवती थी . बेटा पैदा हुआ . वह कैसे खुशीआं मनाती. बेटे ने होश सम्भाला तो पूछने लगा कि उसका पिता कहाँ है वह क्या उत्तर देती . उसे स्वयं नहीं पता कि वह कहाँ गया है .घर में माँ -बाप ,भाई-बहन किसी को भी तो नहीं बताकर गया कि वह कहाँ जा रहा था .
उस रात उसकी प्रतीक्षा करते -करते बिना खाना खाए ही सो गयी
थी . सुबह उठी तो उसका बिस्तर खाली पडा था . कभी-कभी वह
देर से लौटता था . वह एक चाय की दुकान पर नौकर का काम
करता था . घर के सभी लोगों ने यहाँ -वहां पूछा . कई जगहों
पर छानबीन की. लेकिन कोई भी उसका अता-पता न बता पाया .
दिन बीतते गए. पार्वती को जीवन बोझिल लगने लगा. रोने-धोने से क्या फायदा . किसी ने कहा दूसरी शादी कर ले. किसी ने कहा कि मायके चली जाए . किसी ने कुछ सलाह दी तो किसी ने कुछ . सास -ससुर ने हौंसला बंधाया . अपने पास रखना चाहा क्योंकि उसके पास खानदान का वारिस था . वह पढ़ी लिखी न थी . नहीं तो किसी जगह नौकरी कर लेती. वह सास-ससुर पर बोझ बनना भी नहीं चाहती थी . उसने लोगों के घर में झाड़ू -बर्तन-कपड़े धोने का काम शुरू किया जिससे वह अपना और अपने बच्चे को पाल सके.
कई बार सोचा कि मायके चली जाए. लेकिन वहां भी तो उसकी सहाएता करने वाला कोई न था . दो भाई थे जिनकी किसी दुर्घटना में मौत हो चुकी थी . एक भाभी थी जिसने दूसरी शादी कर ली थी और अपना बेटा सास-ससुर के पास छोड़ गयी थी . माँ थी जो कई सालों से बिस्तर पर पड़ी थी जिसका मलमूत्र भी बेचारा उसका पोता ही साफ़ करता था और उसकी मदद करता था . अब तो उसके ससुर भी गुज़र गयी थे सास है जो कैंसर की मरीज़ थी . माँ और सास दोनों ही अब उस पर निर्भर थीं. कभी -कभी वह सोचती थी कि उसका जन्म क्या दूसरों के लिया हुआ है ? दिन-रात बस काम ही काम और रात को बिस्तर पर निढाल हो कर सो जाना . क्यों उसने शादी की ?
उसके पास उसके पति का कोई फोटो भी नहीं था . शादी का एक फोटो था जो बारिश में पानी से गीला हो कर खराब हो गया था नहीं तो वह फोटो अखबारों में छपवा देती या टी .वी में निकलवा देती . अब तो एक बात सोचती थी क्यों न वह अपनी फोटो छपवा दे और लिखवा दे कि इस औरत का पति जो कई साल पहले खो गया था , जहाँ -कहीं भी हो घर लौट आये . लेकिन इतने सालों बाद उसका चेहरा भी तो बदल गया होगा . वह उसे कैसे पहचानेगा ?
कुछ दिनों से उसने शीशा भी साफ़ करना छोड़ दिया था . उस पर कितनी धूल जम गयी थी . लेकिन वह उसी तरह बिंदी लगाती रही और बेटे से कहती थी -बेटा , “ तेरा पिता इसी धूल में खो गया है . ढूंढ कर ला सको तो ढूंढ कर ला दो .
अब उसका बेटा प्रतिदिन शीशा साफ़ करता और पिता की छवि को याद करता . पार्वती भी अब कभी छोटी बिंदी लगाती कभी बड़ी और कभी न लगाती. पड़ोसी कहते बिंदी लगाना मत छोड़ो . देखना एक दिन वह अवश्य लौट आयेगा .जब वह बाहर जाती बिंदी लगा लेती और अपना चेहरा शीशे में देख लेती . अभी तक वह सुहागिन कहलाती थी .वह सुहागिन औरतो के कार्यक्रम में भाग लेती थी . अब उसका बेटा बड़ा हो गया था . पढाई के साथ कुछ कमाने लगा था .बेटे का नाम शैलेन्द्र रखा था. उसके पति का नाम शांताराम था . बेटे की शादी की उम्र हो गयी थी .कई लडकी वाले आ कर शादी की बात करते . वह कहती उसके पति को आने दो . पड़ोसी कहते शादी कर दो . अब उसका पति पता नहीं कब लौटेगा . लौटेगा तो भी बहुत बुड्डा हो गया होगा . गाँव के लोग ज़रा जल्दी बूड़े दिखने लगते है .
पति को वह भूल नहीं सकी . अभी भी शीशा साफ़ करती थी. और सुहाग की छोटी सी बिंदी लगाती थी . परन्तु पति शांताराम के लौटने की उम्मीद अभी भी थी . जब काम समाप्त हो जाता था उसकी आखें दरवाज़े की तरफ ही रहती थी कि वह अभी लौट आयेगा .
आखिर उसने बेटे शैलेन्द्र की शादी करना तय कर लिया . एक लडकी अच्छी लगी . थोड़ी पढी -लिखी थी . घर का काम –काज भी संभाल लेती थी . बातचीत का ढंग भी अच्छा लगा . शादी तय हो गयी .शादी के समय पिता वहां न होकर उसकी बहुत पुरानी फोटो से काम चला लिया . बहू घर में आ गयी .
वह भी एक बड़ी सी सुहाग की बिंदी लगाती थी . कुछ समय बाद बहू को एक लडकी पैदा हुई . घर में बहुत चहल -पहल होने लगी . बच्ची की किलकारियां सुनाई देने लगी . पार्वती को अपने बेटे का बचपन याद आने लगा .
एक दिन अचानक एक बूढ़ा आदमी दाढ़ी बड़ी हुई मैले कपड़ों में बाहर दरवाज़े पर आया और रोटी मांगने लगा . पार्वती उसको रोटी देने गयी तो उस बूढ़े की आखों में देखने लगी तो उसने पहचान लिया वह कोई भिखारी न था बल्कि वह उसका अपना पति था .
उसकी आँखों से झर-झर आंसू बहने लगे . लगा कि कहीं वह सपना तो नहीं देख रही .बड़े जोर से चिल्लाई , " शैलेन्द्र , देखो कौन आया है . उसकी आवाज़ बंद हो गयी . थोड़ी देर बाद फिर बोली . तुम्हारे बापू .“सब लोग बाहर आ गए . बेटा बोला ,”माँ तुम्हे धोखा हुआ है.अन्दर चलो और आराम करो ." पर पार्वती ने कहा .वह धोखा नहीं है .तुम्हारे बापू हैं . उनके पाँव छुओ . पार्वती उनको अंदर ले गयी . और पूछने लगी की इतने साल वह कहाँ था .
उसने बताया की उसने प्रण किया था की जब तक वह खूब कमाई नहीं कर लेगा वह घर नहीं लौटेगा . उसने कई जगह नौकरी की पर वह कुछ पैसे जमा नहीं कर सका . अब ही उसने कुछ पैसे जमा किये है . वह पास की ही कालोनी में रहता था . दूर से रोज़ वह देखता था परन्तु उसे घर लौटने की हिम्मत नहीं होती थी की बिना कुछ कमाए घर लौट आये . आज उसका मन हुआ कि वह अपने बेटे और उसके घर-संसार को देखे . उससे न रहा गया और वह चला आया . अब जब उसने बच्चे की किलकारियां सुनी तो वह बेचैन हो गया और बच्ची को देखने आ गया . वह नहीं समझा सकता की उसने इतने साल कैसे बिताए. कई लोग तो उसे पागल समझने लगे थे . घर में पार्वती ने अंदर जा कर बड़ी सी बिंदी लगाई और मांग में सिन्दूर डाला .पड़ोसी इकट्ठे हो गए . सब ने उसको पहचान लिया . बच्ची का नाम करण किया गया . उसका नाम शैलजा रखा . घर में एक महोत्सव सा हो गया.उस बच्ची को भी एक छोटी सी बिंदी लगादी और पार्वती ने भी आज पहले से भी बड़ी सुहाग की बिंदी लगाई और बच्ची को आशीर्वाद दिया की उसकी भी बिंदी सदा कायम रहे .आस -पास के लोगों में खबर फ़ैल गयी की आज पार्वती की बिंदी बड़ी चमक रही है . उस दिन के बाद पार्वती वही बड़ी सुहाग की बिंदी लगा रही है . यही थी उसकी बिंदी की कहानी .ooooooooooooooooooooooooooooooo
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