प्रिये लौट आओ
गया था किचन में खाना बनाने -हाथ जला बैठा ,
ब्रैड सेकता रहा -आमलेट जला बैठा ,
दाल गलती रही -रोटी सड़ा बैठा ,
माँ ने क्यों नहीं सिखाया –पत्नी बिन कैसे जिया जाए .
धोबी ले गया कपडे –तो कमीज़ गुमा बैठा ,
जूते के लेस का पता नहीं -जुराब का जोड़ा गुमा दिया ,
छींक आई क्या करूँ –रुमाल किसी ने दिया नहीं ,
बाल कैसे संवारूं -कंघी तो वे ले गयी ,
माँ ने क्यों नहीं सिखाया –पत्नी बिन कैसे जिया जाए .
तेरे बिन कैसे जियूं - एक बार लौट आओ ,
आ कर सिखा जाओ –अकेले कैसे जिया जाए ,
आफिस से जैसे लौटा -तो किसी ने खोला न द्वार ,
क्यों भूल गया -अब कोई नहीं करता है मेरा इंतज़ार ,
पत्थर का घर खाली होगा -कैसे वहां रहा जाए ,
माँ ने क्यों नहीं सिखाया –पत्नी बिन कैसे जिया जाए
जूते पहने ही सो गया बिस्तर पर ,
झट से पाँव नीछे किये -याद आई तुम्हारी फटकार ,
कि अभी चिल्लाओगी -धेले की अक्ल नहीं ,
माँ ने कुछ नहीं सिखाया - कर दिया घर गंदा अंदर -बाहर ,
आँख भीच कर सो गया -लगा तुमने पकड़ा हाथ ,
मैं बोल रहा था –प्रिये तुम लौट आई ,
मेरे जीवन में फिर से रोशनी आई ,
तुम रहो बस मेरे आस पास ,
बस अब जियेंगें –मरेंगें साथ -साथ ………
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