भूख मिटाती रोटी गोल
बेटा- “अम्मा , “भूख लगी खाने को दो रोटी गोल ,
पेट में लगा रहे हैं चूहे दोड़ .
माँ- “बेटा, देखो आसमान में चंदा गोल ,
बेटा- “तो फिर ? "
माँ “-ऊपर चमके सूरज गोल, “
बेटा - “तो फिर ? “
माँ-“नीचे धरती घूमे गोल ".
बेटा- “तेरे हाथ में आट्टा गोल , और तू जल्दी बना रोटी गोल, "
बस मेरा पेट भर जाए दे मुझ को रोटी गोल, “……अम्मा
माँ- “अभी तो नहीं बनी रोटी गोल , तू देख घर में क्या-क्या है गोल .“
बेटा - “”तेरे पास थाली गोल , तेरे पास कटोरी गोल ,
मटर का दाना भी है गोल , लाल टमाटर होता गोल ,
दे दे मुझ को कुछ सिक्के गोल , लूंगा मौसंबी गोल ,
लाऊंगा हलवाई से लड्डू गोल ,कितने स्वादी गप्पे गोल ,
अम्मा ? कब बनेगी रोटी गोल ? कहाँ रखें मेरे मार्बल गोल ,
गणपती का पेट गोल , मोटे लाला जी की तोंद गोल ,
गान्धीबाबा का चश्मा गोल , मास्टर जी की छड़ी गोल .
अम्मा , स्कूल बस से जाऊंगा , उसका भी होता पहिया गोल ,
वहां खेलेंगे फुटबाल गोल , जीत गए अगर हो जाये गोल ,
कुछ अच्छा नहीं लगता अम्मा जब तक मिले न रोटी गोल " .
माँ - “बेटा ,कुछ पढ़ लो , नहीं तो आयेंगे नंबर गोल “
देखो गली में घूमे कुत्ता गोल , चोकीदार भी चक्कर लगाये गोल ,
खेत में बैल चले गोल -गोल , बच्चे भी खेलें गोल-गोल ,
गुड़िया नाचे गोल-गोल , सर्कस में जोकर घूमें गोल-गोल ,
तोते का पिंजरा गोल- गोल , तोता चक्कर लगाता रहता गोल-गोल ,
तू भी तो चलाता था चकरी गोल , कृष्ण की बांसुरी गोल ,
पहले आँखें धो ले उसकी पुतली है गोल , किसी का चेहरा होता गोल मटोल .
बेटा - "अम्मा , बातें मत कर पहले दे रोटी गोल ,
एक बन जाए सौ उसके आगे लग जाएँ दो गोल ,
“अम्मा , “शीशे में देख तेरी बिंदी गोल, तेरी खनक रही चूड़ी गोल ,
मेरा सिर घूम रहा गोल-गोल , मुझे किसी की परवाह नहीं ,
पहले खिला रोटी गोल , मुझे दिखे सारी दुनिया गोल ही गोल ,
भूखा जाने रोटी का मोल , माँ ,रोटी नहीं तो दे दे बिस्किट गोल ,
माँ -“ यह ले बेटा चिकनी-चुपड़ी रोटी गोल .
बेटा - “वह ,क्या गरमा -गरम रोटी गोल , घुमाता जाऊं रोटी गोल-गोल ,
कहाँ से करूँ शुरू नहीं दिखता इसका छोर,
अगर बीच से तोडूँ तो बन जाए सी डी गोल ,
किधर से भी शुरू करूँ , है तो आखिर रोटी गोल ,
खाता जाऊं बताता जाऊं , क्या-क्या दिखता है गोल ,
मुझे इतना पता है की स्वादिष्ट होती रोटी गोल ,
राजा हो भिखारी सब को अच्छी लगती है रोटी गोल ,
सब की भूख मिटाती रोटी गोल ……..
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