जीवन एक किताबजीवन एक किताब है. किसी की किताब के पन्ने कम तो किसी की किताब के पन्ने अधिक . किसी की किताब हास्य से भरपूर तो किसी की किताब सुखद तथा दुखद घटनाओं से परिपूर्ण अथवा मिलने बिछुड़ने की परिस्थतियों से जुडी हुई या फिर उथल-पुथल घटनायों से भरी हुई .
नदी का उद्गम स्थान एक तरफ है तो अंतिम पड़ाव कहीं बहुत दूर दूसरी ओर. इस बीच वह रस्ते में कितने जंगल, शहर ,गावों से गुज़रती हुई तथा अपने साथ कितने कीमती कंकर,पत्थरों को एकत्रित करती हुई , कितने मीलों का सफ़र तय करती हुई अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँच पाती है. नदी का इस तरह बहना उसका स्वभाव है . जब वह अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँचती है , तो उसकी किताब पूरी हो जाती है . एक बार अंतिम पड़ाव पर पहुँच जाए तो फिर पीछे लौटना असंभव है. परन्तु उसके अन्दर इकठ्ठा किये हुए रत्नों का उपयोग भी आवश्यक है , नहीं तो वे रत्न केवल पत्थर सामान वहीँ पड़े रहते हैं. अगर किस्सी जौहरी की दृष्टि उन पर पड़ जाए तो समझिये वह भाग्यय्वन ओर उसकी किताब के पन्ने भी सुनहरे हो गए
प्रत्येक व्यक्ति की किताब भिन्न है . उसका नाम ,काम , ज्ञान, दिनचर्या ,स्वभाव तथा कार्यक्षेत्र भिन्न है . कुछ लोग उसके नियमों को बहुत पसंद करते हैं और उसको भी कुछ लोग बहुत अच्छे लगते हैं. काम करते–करते उसका थक जाना स्वाभाविक है और उसे आराम करने की आवश्यकता महसूस होने लगती है और वह अपने जीवन के अंतिम पड़ाव की ओर जाने लगता है . कभी किस्से किताब का आख़िरी पन्ना जब हम पढ़कर उसे बंद कर देते हैं तो उसे फिर से पढने का मन नहीं होता या पढने की ज़रुरत महसूस नहीं होती या फिर से पढने का समय ही नहीं होता . लेकिन उपसंहार पढ़ना भी आवश्यक होता है .
एक नौकरी पेशा वाले की किताब भी वैसी ही है . जब वह अपने पेशे से निवृती पाकर उस कार्यक्षेत्र से बाहर आता है तब उसे पता लगता है की उसकी किताब का आख़िरी अध्याय पूरा हो चुका है और अब पीछे मुड़कर देखना असंभव है . अब वह नदी की भांति अपने पड़ाव की ओर पहुँचने वाला है . उसे ध्यान ही नहीं आता की उसकी किताब में कितने अध्याय लिखे जा चुके हैं और वह इतना लम्बा सफ़र तय कर चुका है क़ि अब उसे आराम की आवश्यकता है . लेकिन अभी उसका उपसंहार शेष है जिसमें वह ढूंढ़ता है जीवन के उन मोतियों को जो उसकी किताब में होंगे . इन मोतियों से अगर उसने एक सुंदर सी माला बना ली तो उसकी किताब बनेगी अति मन मोहक तथा दूसरों के पढने योग्य अथवा यह मोती ऐसे ही बिखरे रहेंगे और शायद उस किताब को कोई छूना भी पसंद न करे. और उपसंहार के बिना उसकी किताब अधूरी ही रह जाए .और उसके पन्ने उड़ते-उड़ते इधर-उधर बिखर कर रह जायेंगे और कोई उन्हें पैरों तले रौंद देगा या कहीं कोने में ही सड़ जायेंगे… ..........
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