Friday, July 4, 2014

जीवित पुतले

बेरोज़गार नवयुवकों का मार्ग दर्शन करता नाटक
जीवित पुतले
पात्र परिचय
मनसुख-एक बीस वर्ष का नवयुवक,कुर्ता,पाजामा पहने हुए और उसकी बाईं बाँह पर उसका नाम लिखा हुआ है।
हिम्मतसिंह-मनसुख का मित्र,कुर्ता,चूड़ीदार पाजामा और सिर पर टोपी पहने हुए और उसकी दाँई बाँह पर उसका नाम लिखा हुआ है।
राहगीर न 1                              
बच्चा, बच्चे की माँ
बुढ़िया, राहगीर न 2
पुलिसमैन
पंडित
राहगीर न 3
डाकिया
युवती-राहगीर
चोर
नारायण-राहगीर
2 पुलिसमैन
शोभा-मनसुख की बहन
माँ-मनसुख की माँ
इन्सपैक्टर

(यह नाटक दो युवकों की कल्पना पर आधारित है जो बेरोज़गार हैं और कुछ करने की तमन्ना रखते हैं ।उनका खेल एक सच्चाई में बदल जाता है और वे अपने उद्देशय में सफल भी हो जाते हैं)
(पर्दा खुलता है।सड़क का दृश्य।सड़क के किनारे एक बोर्ड लगा हुआ है जिस पर सड़क का नाम ‘रामसिंह’ तथा ‘साइकिल,कार,स्कूटर आदि वाहनों की मनाही’ लिखा हुआ है ।कुछ लोग आ जा रहे हैं जैसे दो औरतों का आपस में बातें करते हुए जाना,मित्रों का एक दूसरे को हैलो करना,  बच्चों का स्कूल जाना,दूधवाले का दूध का कनस्तर लेते हुए गुज़रना,भाजीवाले का सिर पर भाजी की टोकरी लेकर जाना,बुढ़िया का धीरे-धीरे जाना,जल्दी-जल्दी जाने से किसी का टकराना आदि)।

(मनसुख का दाईं ओर से तथा हिम्मतसिंह का बाईं ओर से प्रवेश)
मनसुख-हिम्मत,स्टैचू ।(हिम्मतसिंह वहीं खड़ा हो जाता है ।मनसुख थोड़ी दूर जाकर फिर वापस लौट आता है।)ओवर।(दोनो खिलखिलाकर हँस पड़ते हैं।)तुम आजकल क्या कर रहे हो?
हिम्मतसिंह-माँ की टाँगें दबा रहा हूँ।और तुम आजकल क्या कर रहे हो?
मनसुख-कुछ नहीं।तुम कहाँ जा रहे थे?
हिम्मतसिंह-तुम्हारे घर।और तुम?
मनसुख-तुम्हारे घर।
हिम्मतसिंह-दिमाग में कोई नया आईडिया आया होगा।
मनसुख-वही तो एक काम करता हूँ।इसबार एक वंडरफुल आईडिया है।सुन,(उसके गले में बाँह डालकर एक तरफ ले जाता है।)अगर हम सड़क के बीच स्टैचू बनकर खड़े हो जाए और आने-जाने वालो पर एक नज़र रखें तो कितना मज़ा आएगा और हमारा जनरल नॉलेज भी बढ़ जाएगा।
हिम्मतसिंह-(सिर खुजलाते हुए)तू भी ऊट-पटाँग बातें सोचता है।हम कितनी देर तक खड़े रह सकते है।और लोगों को हम पर कुछ शक भी पड़ सकता है।यह खेल बड़ा भारी पड़ सकता है।
मनसुख-बारी-बारी से दो घण्टे खड़े रहेगें।क्योंकि खड़े-खड़े थक भी तो जाएँगे।
हिम्मतसिंह-ठीक है।अगर कुछ गड़बड़ हो गई तो उसका ज़िम्मेदार तू होगा। तेरा आईडिया है।पहले तू ही स्टैचू बन।सड़क के बीच नहीं।सड़क के एक किनारे पर।
मनसुख-ठीक है।किसी को बताना मत।नहीं तो खेल बिगड़ जाएगा।रैडी।माँ और बहन को भी मत बताना कि हम कहाँ पर हैं।
हिम्मतसिंह-नहीं बताऊँगा।अच्छा मैं जाता हूँ। अपना ख्याल रखना। तेरे पास मोबाइल है?-
मनसुख-नहीं।तेरे पास है?
हिम्मतसिंह-नहीं |
(मनसुख सड़क के किनारे खड़ा हो जाता हैऔर अपनी बाँह इस तरह रखता है कि लोग उसका नाम पढ़ सके।हिम्मतसिंह स्टेज से धीरे-धीरे बाहर निकल जाता है।लोगों का आना-जाना लगा रहता है।)
(मनसुख अपने मन में)कितना अच्छा लग रहा है।कोई आ रहा है।कोई जा रहा है।कितनी चहल-पहल है।लोग कितना काम कर रहे है।मेरी तो किसी को चिन्ता ही नहीं है।कोई नहीं पूछता कि मैं यहां क्यों खड़ा हूँ।
(राहगीर न1 का प्रवेश)
राहगीर-(मनसुख से टकराते हुए) अरे,यह कौन बीच में आ गया?ऎसे क्यों खड़े हो?(चला जाता है)
(एक बच्चे और उसकी माँ का मनसुख के पास आना)
बच्चा-मम्मी, यह यहाँ क्यों खड़ा है?
माँ-(बच्चे को खींचते हुए) खड़ा रहने दे।चल,स्कूल के लिए देर हो जाएगी(चले जाते हैं)।
(एक बुढ़िया का धीरे-धीरे चलते हुए पास आ कर मनसुख से टकराना)
बुढ़िया-बेटा, सम्भल कर चलो।गिर जाओगे।चोट लग जाएगी।जीते रहो।(चली जाती है)।
(राहगीर न 2 का प्रवेश)
राहगीर-((पास आ कर) एक रूपया उसके हाथ पर रखते हुए) यह लो।सूरदास लगते हो (चला जाता है)
मनसुख-यहाँ तो कमाई भी होने लगी।हिमम्तसिंह कब आएगा।मैं तो खड़ा-खड़ा थक गया हूँ।कहीं धोखा तो नहीं दे गया।मुझे ही भुगतना पड़ेगा।आईडिया भी तो मेरा ही था।
हिम्मतसिंह-(दूर से खड़ा देख रहा है। मनसुख के पास आ कर।धीरे से मनसुख के कान में) सुनाओ यार,कैसी कट रही है?
मनसुख-बहुत अच्छा।मज़ा आ रहा है।और कमाई भी।
हिम्मतसिंह-तुमको किसी ने पहचाना तो नहीं?
मनसुख-अभीतक तो नहीं।
हिम्मतसिंह-ठीक खड़े रहो। वह पुलिसवाला इधर ही आ रहा है।(मनसुख के हाथ से पैसे उठा लेता है)
पुलिस-(डंडा ठोकते हुए तथा मनसुख का नाम पढ़ते हुए) यह किसका पुतला है?यह मनसुख कौन है ? |
हिम्मतसिंह-यह किसी समाजसेवी का पुतला है।
पुलिस-मैंने यह नाम कभी सुना या पढ़ा नहीं।
हिम्मतसिंह-ठीक कहा। लोगों की बहुत सहायता करते थे।इनको पब्लिसिटी बिलकुल पसन्द नहीं थी।हाय!बड़े नेक दिल इन्सान थे।बेचारे मर गए।
पुलिस-कब मरे ?
हिम्मतसिंह- पता नहीं। मैं यहाँ से गुज़र रहा था।इनका पुतला देखा तो रुक गया। (रोने लगता है)|
पुलिस-मत रोओ,भाई।मुझे भी रोना जाएगा।
हिम्मतसिंह-तुम्हे क्यों रोना आएगा ?
पुलिस-ऐसी हालत में इन्सान को सहानूभूति होनी चाहिए।मैं इनके लिए फूल लेकर आता हूँ।भगवान  इनकी  आत्मा को शान्ति दे।( नमस्कार कर चला जाता है)
हिम्मतसिंह-मनसुख,सुन अगर मैं यहाँ एक फूलों की दुकान खोल लूँ तो कुछ तो आमदनी हो जाएगी। यह धंधा भी अच्छा रहेगा।लोग पहले तेरे लिए फूल खरीदेंगे फिर किसी देवी देवता के लिए। फिर जब त्यौहार आएँगे तो खूब बिक्री होगी। तू देखना मैं एक दिन करोड़पति बन जाऊँगा।
मनसुख- डींग मत मार।ऐसा कुछ भी नहीं होगा। यार,तुम अच्छा नाटक कर लेते हो।अब मैं यहीं खड़ा रहूँ?फूलों का इंतज़ार करूँ?मैं अब और खड़ा नहीं रह सकता।मेरी तो इधर ही निकल जाएगी।चल,मैं यहाँ से हट जाता हूँ।तू पुतला बन कर मज़ा ले।(धीरे-धीरे वहाँ से बाहर निकल जाता है और हिम्मतसिंह सड़क के दूसरी तरफ खड़ा हो जाता है।अपनी बाहँ जहाँ उसका नाम खुदा हुआ है खुली रख देता है और अपनी आँखे आधी खुली रखता है।)
(राहगीर न.3 का प्रवेश)
राहगीर न.3 (अपने ध्यान में खोए हुए।हिम्मतसिंह के पास आ कर।आँखे मलते हुए) अरे,मैं कहाँ आ गया।मैं कितना भुलक्कड़ हूँ।दूसरी सड़क पर आ गया हूँ।(सोचते हुए नीचे बैठ जाता है)
हिम्मतसिंह- तुम भुलक्कड़ नहीं हो।ठीक रास्ते पर जा रहे हो।
राहगीर न.3 (उठ कर चलने लगता है।थोड़ी दूर जा कर वापिस लौट आता है)।मैं ठीक रास्ते पर जा रहा था।
हिम्मतसिंह- हाँ।
राहगीर न.3- कौन बोला?तुम तो अन्धे भिखारी लगते हो।तुम्हे कैसे मालूम?
हिम्मतसिंह- मैं अन्धा भिखारी नहीं हूँ। कबीरदास जी ने कहा है-माँगन मरण समान है मत कोई माँगै भीख, मागन ते मरना भला,यह सतगुरु की सीख।।
राहगीर न.3-फिर तुम कौन हो?
हिम्मतसिंह- मैं एक जीवित पुतला हूँ।
राहगीर न.3- पुतला तो बोलता नहीं,तुम तो बोल रहे हो।
हिम्मतसिंह- मैं इक्कसवीं सदी का पुतला हूँ।मैं आधुनिक तकनीक से बना हुआ हूँ।जो देख भी सकता है,सुन भी सकता है और बोल भी सकता है।
राहगीर .3-अरे भागो,यह तो खतरनाक पुतला है।अगर सब पुतले बोलने लगे तो नेहरू और गांधी तो घरों में जाएँगे।भगवान बचाएँ ऐसी तरक्की से।(जल्दी से निकल जाता है)
(मनसुख आकर थोड़ी दूरी पर खड़े हो कर देखता है)
पंडित-(हाथ में माला जपते हुए प्रवेश। पास आकर।नाम पढ़ते हुए)हिम्मतसिंह नारियलवाला।यह किसका पुतला है? मुझे इससे क्या।(उसके पास कुछ पैसे रखता है और उसकी परिक्रमा करने लगतहै)राम,राम,राम।
(मनसुख भी धीरे से आकर पंडित के साथ हिम्मतसिंह के चारों ओर घूमने लगता हैऔर उसको प्रणाम करता है।पंडित चला जाता है।)
मनसुख-(हिम्मतसिंह के कान में कहता है)यार सुनाओ कैसीबीत रही है ?कितना मान,सम्मान मिल रहा है
हिम्मतसिंह-(अपना हाथ ऐसे रख देता है मानो आशीर्वाद दे रहा है )
मनसुख-(चुप ठीक से खड़ा रह।अब कोई रहा है।(हिम्मतसिंह के पाँवो के पास बैठ जाता है)
(डाकिए का प्रवेश।पास आकर)
डाकिया-नमस्कार।यह कौनसे देवता हैं भाई ? पहली बार देख रहा हूँ।
मनसुख-यह पढ़ो हिम्मतसिंह नारियलवाला। इनके नाम कोई चिट्ठी है ?
डाकिया-इनका पता क्या है? नए लगते है।
मनसुख-हिम्मतसिंह नारियलवाला,रामसिंह सड़क के किनारे,निचली मंजिल।मुम्बई-022-12345678
डाकिया-बड़ा अजीब पता है। कभी आई तो दे जाऊँगा।
हिम्मतसिंह-धन्यवाद।
डाकिया-यह जिंदा है।
मनसुख-नहीं,नहीं यह तो एक जीवित पुतला है।
डाकिया-(अपनी ऐनक साफ करते हुए)फिर धन्यवाद कौन बोला ?
मनसुख-यह तो मैंने कहा।
डाकिया-(ऐनक पहनते हुए) बड़ी अजीब बात लग रही है।(धीरे-धीरे मुड़मुड़ कर देखते हुए चला जाता है।)
मनसुख-बच गए।मुझे लगा हमारी पोल खुल जाएगी।

(एक बुढ़िया का दाईं ओर से प्रवेश)
मनसुख-चुप खड़ा रह।यह बुढ़िया पहले बाई ओर से गई थी।
हिम्मतसिंह-मैं कितनी देर खड़ा रहूँगा?
मनसुख-अन्धेरा होने तक। जब सड़क पर लोगों का आना-जाना बंद हो जाएगा।
हिम्मतसिंह- लेकिन लोग तो आते-जाते रहेंगे।
मनसुख-लोगों को बेवकूफ बनाना कोई कठिन नहीं।बस थोड़ी सी बुद्धि चाहिए।
हिम्मतसिह-वह तो तुझ में है।नए आईडिया जो सोचते रहते हो।
मनसुख-ठीक खड़े रहो।बुढ़िया पास आ गई है।
बुढ़िया-श्रीराम,घनश्याम।यह क्या।जब मै, गई थी तो इसने कुर्ता पाजामा पहन रखा था।अब इसने कुर्ता,चूड़ीदार पाजामा और सिर पर टोपी पहन रखी है।तब वह उधर था अब इधर कैसे ?यह कोई दूसरा भिखारी होगा।जाने दो मुझे क्या।(बड़बड़ाती हुई चली जाती है।उधर से एक युवती का प्रवेश)
युवती-माँजी क्या बात है?
बुढ़िया-कुछ नहीं।भिखारी रास्ते में कहीं भी बैठ जाते है।
युवती-वह तो एक पुतला है।आजकल कहीं भी पुतला लगाने का फैशन हो गया है।पता नहीं किसका है।(दोनो आपस में बातें करती हुई चली जाती हैं)
हिम्मतसिंह-लोग मुझे पता नहीं क्या-क्या नाम दे रहे हैं।कोई देवता,कोई भिखारी,कोई दयालु।
मनसुख-बड़ा मज़ा आ रहा है न।
हिम्मतसिंह-अगर पकड़े गए तो ठग और बदमाश।
मनसुख-फूलों के बदले जूतों की माला।
हिम्मतसिंह-हाथों में हथकड़ी।
मनसुख-और ससुराल की रोटियाँ।
हिम्मतसिंह-चल भाग चलें।
मनसुख-इस समय नहीं।लोग देख लेंगे।हमारा भुर्ता बना देंगे।थोड़ी देर और मज़ा लेते हैं।कोई आ रहा है। अटैन्शन।
(मनसुख दूर जाकर खड़ा हो जाता है ।एक चोर गहने चुराकर लाता है और हिम्मतसिंह के पास आकर)
चोर-तुम एक भिखारी हो?
हिम्मतसिंह-नहीं।
चोर-तो तुम फिर क्या हो?
हिम्मतसिंह-आधुनिक तकनीकी से बना हुआ जीवित पुतला
चोर-तुम यहाँ कितनी देर खड़े रहोगे?
हिम्मतसिंह-जब तक तुम कहोगे।
चोर-ठीक है।मैं तुम्हारी जेब में कुछ गहने छुपा रहा हूँ।अन्धेरा होने पर ले जाऊँगा।(गहने उसकी जेब में रख देता है) ।
हिम्मतसिंह-ठीक है।
चोर-किसी को बताना मत।
हिम्मतसिंह-क्यों ?
चोर-यह चोरी का माल है।आधा-आधा कर लेंगे।मैं जल्दी में हूँ।पुलिस न देख ले। (चला जाता है)।
(मनसुख पास आकर)
मनसुख-खूब रही बच्चू। तुझे क्या दे गया है?
हिम्मतसि्ह-मेरी जेब में चोरी का माल छुपा गया है।कुछ गहने।
मनसुख-देखूँ।(हिम्मतसिंह की जेब से गहने निकाल कर अपनी जेब में डाल लेता है।) तुझे चोर बना गया है।
हिम्मतसि्ह-अन्धेरा होने पर ले जाएगा।
मनसुख-अगर उससे पहले पुलिस ने पकड़ लिया तो ?चल भाग चलें।
हिम्मतसि्ह-नहीं भाग सकते।
मनसुख-क्यों?लगता है तू भी चोर के साथ मिल गया है।
हिम्मतसिंह-वह देख।वह दूर खड़ा है।हम भागेंगे तो वह शोर मचाएगा और लोग हमें पकड़ लेंगे।हमें ही चोर बना देंगे।
मनसुख-चुप रह। कोई आ रहा है।
(एक अधेड़ आयु वाले व्यक्ति-नारायण का प्रवेश)
नारायण-(मनसुख से)भाई साहब,एक पहेली है।
मनसुख-आपने मुझे कुछ कहा।
नारायण-हाँ।हमारी बात सुनने वाला दूसरा तो यहाँ कोई नहीं।
मनसुख-(डरते हुए) कहिए।
नारायण-यह जो खड़ा है कौन है?
मनसुख-आधुनिक तकनीक से बना एक जीवित पुतला
नारायण-ठीक है।आपकी बात मान लेता हूँ।सुबह जब मैं यहाँ से गया था तो एक पुतला उधर था और अब मैं वापिस आया हूँ तो देखता हूँ तो वह पुतला गायब और इधर एक नया पुतला। और उनके कपड़े भी बदले हुए है।समझ में नही आता कि मामला क्या है?
मनसुख-सुनिए, आजकल पुतले आधुनिक तकनीक से बनाए जाते हैं जो शायद चल भी सकते हैं।आपने रोबोट शब्द के बारे में सुना है ?
नारायण-सुना है।
मनसुख-तो यह इसका दूसरा रूप है।यह अपने आप चलकर दूसरी जगह भी पहुँच जाता है।वन वे की तरह है। यह कुछ भी कर सकता है।
नारायण-मुझे तो दाल में कुछ काला दिखाई देता है।
मनसुख-दाल बिलकुल साफ है।इसमें घबराने जैसी कोई बात नहीं।आप निश्चिन्त होकर घर जाईए।
नारायण-चलो,पुलिस को सूचित करते हैं।
मनसुख-पुलिस को मत तंग करिए।कहीं आप ही फँस जाएँगे।
नारायण-आप मत जाईए मैं जा रहा हूँ पुलिस को बताने(चला जाता है)
नारायण-अब क्या होगा?
मनसुख-कुछ नहीं होगा।वह पुलिस के पास नहीं जाएगा।चल अब मैं खड़ा होता हूँ।जरा होशियारी से।(जगह बदल लेते हैं,कुछ लोग देखते हैं पर अनदेखा कर चले जाते हैं।)
हिम्मतसिंह-उस चोरी के माल का क्या होगा?
मनसुख-वह मेरी जेब में।
हिम्मतसिंह-ठीक है।अब तू ही सम्भाल।मेरा तो दिमाग चकरा रहा है।वह सुबह वाला आदमी फिर आरहा है।
(राहगीर न. 1 का प्रवेश)
राहगीर न.1-यह अभी तक यहीं खड़ा है।(पास आकर)यह पुतला इधर कैसे आ गया ?
मनसुख-कम्प्यूटर का ज़माना है।
राहगीर न.1-देखो इसके होंठ हिल रहे हैं।
मनसुख-आपने कभी भूत देखा है?
राहगीर न.1-नहीं। मुझे भूतों से डर लगता है।यह कौनसा भूत है?
मनसुख--मतलब ?
राहगीर न.1-जैसे लँगड़ा भूत,काला भूत,दिन का अथवा रात का।
मनसुख-आपने इनमें से किसी को देखा है।
राहगीर न.1-देखा तो नहीं पर सुना है।
मनसुख-भूतों के बारे में आपने क्या सुना है?
राहगीर न.1-दिन के भूत अकेले जा रहे व्यक्ति को पकड़ लेते हैं।इन्होंने अभी तक किसी व्यक्ति को पकड़ा है?
मनसुख-नहीं……।हाँ।तो यह दिन का भूत है।मुझे बहुत देर से पकड़ रखा है।
राहगीर न.1-मैं आपको खींच कर बहुत दूर तक ले जाता हूँ।
मनसुख-आप मुझे हाथ मत लगाइए।कहीं आपको भी पकड़ लिया तो आपके घर वाले बेकार चिन्ता करेंगे।आप जल्दी यहाँ से चले जाइए वरना........
राहगीर न.1-अच्छा किया आपने मुझे मुसीबत से बचा लिया।।धन्वाद।(भाग जाता है)
मनसुख-अब तुम पुलिस को जाकर ले आओ।जब वह चोर आएगा हम उसे पुलिस के हवाले कर देंगे।
हिम्मतसिंह-यह तो उसके साथ बेइमानी कर रहे हो।
मनसुख-इसीलिए तो हम पुतले बने थे।अब हमारा उद्देश्य पूरा हो जाएगा।हो सकता है पुलिस हमें कछ इनाम भी दे दे ।है न मजे़ की बात।
हिम्मतसिंह-अगर उसके पास छुरा या बन्दूक हुई तो।सबसे पहले मैं ही मारा जाऊँगा।
मनसुख-तुम पुलिस से डरते हो।अच्छा तुम खड़े हो जाओ मैं पुलिस को बुलाकर लाता हूँ।
(वे धीरे-धीरे अपनी जगह बदल लेते हैं। जैसे जाने लगता है चोर वहाँ आ जाता है)
चोर-(इधर-उधर देख कर हिम्मतसिंह की जेब में हाथ डालता है)
मनसुख-वहाँ क्या ढूँढ रहे हो ?तुम्हारा माल इधर है।
चोर-तुम मेरी तरह चोर लगते हो।
मनसुख-यह तुमने कैसे सोच लिया?
चोर-पुलिस हो?
मनसुख-नहीं।
चोर-तो किसी गैंग के आदमी हो ?
मनसुख-(अपने बाल ठीक करते हुए) मेरी शक्ल गुडों जैसी है?
चोर-(डरते हुए)फिर भूत हो ?
मनसुख-मुझे छूकर देखो मैं एक जिन्दा पुतला हूँ।
चोर-मुझे तो तुम दोनो खुफिया पुलिस के आदमी लगते हो।
मनसुख-शायद,(दोनो चोर को पकड़ लेते हैं और चिल्लाते हैं) चोर,चोर,चोर पकड़ो।
(कुछ लोग इकट्ठा हो जाते हैं और उसको मारनें लगते हैं)
मनसुख-इसको मत मारो।पुलिस के हवाले करते हैं।
(दो सिपाहियों का प्रवेश)
सिपाही-हटो।क्या मामला है?इस बेचारे को क्यों मार रहे हो ?
मनसुख-पहले इसे पकड़ो।फर हम सारी बात समझाते हैं।
सिपाही-(चोर को पकड़ते हुए)तुम दोनो कौन हो?यहाँ क्या कर रहे हो?तुम दोनो तो सुबह वाले लड़के हो।हमें बेवकूफ बनाने की कोशिश मत करो। सब पुलिस स्टेशन चलो।वहीं पर सब मामला साफ हो जाएगा।
हिम्मतसिंह-फंस गए न अपने जाल में।अब तू ही बचाना।इनाम के बदले हवालात में रहना पड़ेगा।
मनसुख-(सिपाही के कान में धीरे-धीरे कुछ कहता हैं)
(मनसुख की बहन शोभा और माँ का आपस में बातें करते हुए प्रवेश)
माँ-मैं तो मनसुख का इन्तजार करते परेशान हो गई।कहा था बताकर जाया कर।सुबह से निकला है।
शोभा-माँ क्यों चिन्ता करती हो? यह तो उसकी आदत है। यह लोगों की भीड़ क्या है?
माँ-चल पहले से ही देर होगई है।
शोभा-माँ भाई तो यहाँ है और साथ में उसका मित्र हिम्मतसिंह भी है।लगता है कि किसी चक्कर में फंस गए हैं।पुलिस भी है। भैय्या,तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?और हिम्मतसिंह तुम ?
(दोनो मुहँ छिपाने की कोशिश करते हैं) ।
माँ-मुँह क्यों छिपा रहे हो? हम ने देख लिया है ।बताओ क्या बात है?
(सिपाही-मैं बताता हूँ।यह कहते हैं इन्होंने चोर को पकड़ा है।
माँ-ठीक कहते होंगे।
पुलिस-हम इस तरह विश्वास नहीं करते।यह आदमी कहता है (चोर की तरफ इशारा करते हुए)इसने कोई चोरी नहीं की।अब हमें क्या पता कि असल में मामला क्या है।इन्हे पुलिस स्टेश्न चलना पड़ेगा।वहीं सब मामला साफ हो जाएगा।
हिम्मतसिंह-हम पुलिस स्टेश्न नहीं चलेंगे।
पुलिस-तुम कहते हो कि यह आदमी चोर है।तुमने अपनी बुद्धि से पकड़ा है।
मनसुख-बिलकुल सही है जी।
माँ-वह जो कह रहा है आप उसे मान क्यों नहीं लेते।
पुलिस-पहले इसकी रपट लिखी जाएगी बाद में इसका फैसला होगा जी।मैं बड़े साहब को इधर ही बुलाता हूँ(जेब से मोबाइल निकालता है और नम्बर लगाता है) हैलो, साहब, ऱामसिंह सड़क पर लफड़ा हो गया है। आपको इधर आना पड़ेगा।लोगो ने एक चोर को पकड़ कर रखा है।वे उधर नहीं आना चाहते।ठीक है।( मोबाइल जेब में रख देता है) साहब इधर ही आ रहे हैं।(लोगो से)चोर को मत छोड़ना। वह कहीं भाग न जाए।
(इन्सपैक्टर का डंडा घुमाते हुए प्रवेश)
इन्सपैक्टर-चलो हटो।भीड़ क्यों जमा हो गई है?
पुलिस-(इन्सपैक्टर को बात बताता है।लोग आपस में काना फूसी करते हैं)
इन्सपैक्टर-मैं सब समझ गया। मुझे खुशी है कि हमारे देश के नवजवान पुलिस का काम अपने आप कितनी बखूबी से कर सकते हैं। (सिपाही से) तुम इसको जीप में बैठा कर पुलिस स्टेश्न ले चलो।(पुलिसमैन चोर को लेकर जाता है )मैं सरकार से सिफारिश करूँगा कि इन नवजवानो को जासूस विभाग में भर्ती कर ले।तुम भी जीप में बैठो।तुम अपना काम बड़ी बुद्धिमता से करने की क्षमता रखते हो।पहले पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट लिखवाओ और अपने बारे में सारा विवरण भी लिखवाओ।
माँ-साहब,मेरे बेटे को कुछ नहीं होगा न ?
इन्सपैक्टर-आपको तो मिठाई बाँटनी चाहिए।इनको तो नौकरी मिल जाएगी।इन्होंने तो खेल-खेल में खुफिया पुलिस का काम कर दिखाया है।
माँ-धन्यवाद। ये तो कब से धूल छान रहे थे।अब इनका जीवन चैन से कटेगा। सांई उतना दीजिए जामें कुटुम्ब समाए,हम भी भूखे न रहें कोई न भूखा जाए।। बेटे,तुम भी इनका धन्यवाद करो।
मनसुख तथा हिम्मतसिंह-(डरते हुए) धन्यवाद।
इन्सपैक्टर-चलो,पहले रिपोर्ट लिखवाओ।(सब की तरफ इशारा करते हुए)स्टैचू,स्टैचू
(सब पुतलों की तरह खड़े हो जाते है।। (थोड़ी देर बाद) ओवर और फिर हँसने लगते हैं)
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