केदार के नाथ--भगवान शिव के नाम
हे केदार नाथ ! तूने यह क्या किया
अपना तीसरा नेत्र खोल दिया
गंगा ने रौद्र रूप धारण कर लिया
चारों धामों को गंगा में डुबो दिया |
रात हुई घना अंधेरा छा गया
क्षण में चारोंओर तूफान मचा दिया
कोई न समझा सैलाब कहाँ से आ गया
अपने भक्तों को भयभीत बना दिया |
इमारतें, घर , सड़कें ,पुल टूट गए
पथरीली चट्टानों के टुकड़े हो गए
चारों ओर हाहाकार मच गया
इन्सान हताश,असहाय हो गया |
सब कछ तहस-नहस हो गया
यह कैसा संकट आ गया
सब ढूँढ रहे सुरक्षित जगह
कोई सही स्थान न मिला |
तूने अपने भक्तों को बुलाया
फिर उन्हें आफत मे फंसाया
फिर उनको गुमराह किया
हज़ारों श्रध्दालुओं ने दम तोड़ दिया |
कितने पत्थरों के नीचे दब गए
कितने भूखे तड़पते गंगा मे समा गए
विवश माँ –बाप की ओर बच्चे देख रहे
बुजुर्ग अपने हाथों को जोड़ क्षमा मांग रहे |
मंदिर के अंदर लाशें ही लाशें
मंदिर के बाहर लाशें ही लाशें
तबाही को देख लोग सिहर उठे
विनाश से लोगों के दिल काँप उठे |
उपर से बादल बरस रहे थे
फिर भी लोग पानी के लिए तरस रहे थे
तन और मन से भीग रहे थे
त्रासदी से बचने का उपाय सोच रहे थे |
लेकिन सब मज़बूर थे
सलामती की दुआ मांग रहे थे
वह घड़ी कब आएगी
विष के बदले गंगा तेरे में समाएगी |
आए थे तेरा दर्शन करने
आए थे अपनी झोली भरने
सारे सपने चकना चूर हुए
तेरे भक्त क्यों बड़े बेबस हुए |
तेरे पिशाचों ने उत्पात मचाया
तू गंगा में बैठकर मुस्कराया
किसी ने न सुनी उनकी पुकार
किसी देवता ने न किया चमत्कार |
ज़िदंगी हो गयी सहमी-सहमी
तबाही भी थी बड़ी बेरहमी
भक्तों को बेसहारा बना दिया
केदार को वीरान कर दिया |
क्यों ऐसा हो रहा था
कोई समझ न पा रहा था
उनका क्या कसूर था
पता नहीं किसका शाप था |
इस स्वर्ग को नरक बना दिया
तीर्थस्थान को ध्वस्त कर दिया
लुटेरों ने भी लोगों को लूट लिया
लालची लोगों ने खूब व्यापार किया |
कितने बच्चे अनाथ हुए
कितनो की गोद खाली हुई
कितनो के सिन्दूर मिट गए
कितने अकेले रह गए |
क्या बिछुड़े कभी मिल पाएंगे
क्या वे कभी लौट आएंगे
आस्था की नींव हिल गई
घर लौटने की आशा छूट गई |
कौन लाएगा उनके खोए लाडले
कौन खोलेगा उनके बंद घरों के ताले
कौन बिछुड़ों को मिला पाएगा
उनकी वेदना कौन समझ पाएगा |
तुझसे अब कौन प्रश्न करे
कि ऐसा क्यों कर दिया
तेरे भक्तों ने क्या गुनाह किया
जो मदद करने आए उनको भी फंसा दिया |
लापता लोगों का इन्तजार रहेगा
कोई उन्हें आजीवन भुला न सकेगा
तुम कब आओगे की पुकार
होगी नहीं कभी समाप्त |
चारों धामों से लौटे लोगों के आँसू थमते नहीं
इतनी बड़ी आपदा उन्होंने कभी देखी थी नहीं
उनका भारी मन, निर्बल शरीर मानता नहीं
उनके अपनेअवश्य होंगे कहीं न कहीं |
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संतोष गुलाटी जुलाई 2013
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