Sunday, July 24, 2011

मैं देख लूंगा

मैं देख लूंगा 

 
कई   लोगों   की   आदत   होती  है   कि    कुछ   जाने   अनजाने   शब्द   बोल   देतें   हैं  .जैसे ”” आई   नो    ,  ओ   आई   सी  .   दैट्स   वैरी   गुड  , टेक   केयर    ,क्या    बात   है    आदि   . ऐसे  ही   थे   एक   मिस्टर  .क .उनकी   भी   कुछ   अजीब   आदत   थी  .. जब   भी   वह   किसी   से   मिलते    बातों ही  बातों   में  एक   बार   अवश्य   कह . देते  .”’ मैं        देख   लूंगा  .”’. कई   बार   वे   तो   मुसीबत      में   भी   पड़   जाते  . अथवा   कई   बार  उनके   मित्र    चकरा  जाते  .कि  उन्होंने  ऐसा क्या कह दिया कि उनको चैलेंज  कर चले गए. ,""में देख  लूंगा "".कभी-कभी तो कोई मुक्केबाज़ी पर तैयार हो  जाता. लेकिन मि. क  की समझ में न  आता कि  लोग उनसे नाराज़ क्यों हो जाते हैं  या इनके परिचित उनसे मिलने से क्यों कतराते हैं.  
 एक     बार  जब  वे  छोटे   थे  मित्रों  के   साथ  खेलते  हुए  कह  दिया  “ मैं   देख  लूंगा . “’
मित्रों  को  गुस्सा  आ  गया  कि  वे  बार -बार  “” में   देख     लूंगा  , में  देख     लूंगा ”” ,
कह  कर  किस  बात  की  चुनौती  दे  रहे  थे . लड़कों   ने  अपनी  कमीज़  की  बाहें  चड़ा  लीं  और  बरस  पड़े   “” बोल , तू  अपने  आप  को  क्या  समझता  है   “” और  अपनी  हाकीयाँ  उठा  ली ..मिस्टर  क . डर  गए . 
और  वहां  से  भागते  हुए  घर  आये  और  सोचने  लगे  कि  उसमे  उनकी  क्या  गलती  थी .मित्रों   ने  भी  चिल्ला  कर  कहा , “”तुम  फिर  खेलने  आये  तो  हम  भी  देख  लेंगे . ”” इस  के  बाद   वे  मित्रों  के  साथ  कभी  खेलने  नहीं  गए .
एक  बार  वे  बनिए  की  दुकान  पर  सामान  खरीदने  गए . बनिए  ने  सामान  बाँध  दिया .
और  कहा,” साहब  ,बिल  चैक    कर  लीजिये  “” उन्होंने  कहा  ,””मै देख  लूंगा  “”.बनिए  ने  कहा ,”घर  जा  कर  गलती  मत  निकालीयेगा  “. उन्होंने  फिर  कह दिया ,” मैं  देख  लूंगा ” . और  आधा  सामान  
लेकर  घर  आ  गए .थोड़ी  देर  बाद  ध्यान  आया  कि  सामान  तो  चैक   किया  ही  नहीं .सामान  और  बिल  चैक    किया  तो  बड़ी   गड़बड़ी  नज़र  आई . वापिस  सारा  सामान  लेकर  बनिए  की  दूकान  पर  गए .और  बनिए  की  लापरवाही  बता  कर गुस्सा  होने  लगे .  बनिया  गुस्सा  होने  की  बजाये  मुस्कराने  लगा  और  बोला ,”मैं  देख  लूंगा .” मिस्टर  क.  झेंपते  हुए  सारा  सामान  ले  कर  घर  लौट  आए .
                                     एक  दिन  अपने  मित्र की  शादी  में   गए .वर  वधू को  उपहार  देते हुए  शुभ्काम्न्नाएं  दीं  और  स्टेज  से  नीचे  उतरते हुए    कह  दिया ,”’मैं   देख  लूंगा वधू सोचने  लगी  कि  वे  क्या  देख  लेंगें  .पार्टी  के  बाद  पति  से  पूछा ,””आपके  मित्र  क्या  देख  लेंगे .”” आप  उसे  कब  से  जानते  हैं .
वह  पति  से  बहुत  से  प्रश्न  करने  लगी . वह  स्वयं   सोचने  लगा  कि  कुछ  गड़बड़  है . कहीं  वह उसकी  पत्नी  को  पहले  से  ही   तो  नहीं   जानता . दोनों  अपनी  ही  सोच  में  पड़े  हुए  थे .एक  दिन  उनकी  पत्नी  ने  कहा ,””आप  अपने  मित्र   को  घर  पर  बुलवा  कर  पूछिए   कि  वे  ऐसा  क्या  देख  लेंगें .पति  को  अपनी  पत्नी  पर   शक   बढ गया  कि  वह  किसी  बहाने  उसको  घर  में  बुला  रही  थी . पति  पहले  तो   इस  बात  को  टालता   रहा  पर  एक  दिन अपने  मित्र  को  घर  पर  बुलवा  ही  लिया .पत्नी  ने  चाय  नाश्ते  का  प्रबंध  किया . पति  शक  की  नज़रों  से पत्नी  की  तरफ  देखता  रहा . और  पत्नी  अपनी   ही  सोच  में  पडी  थी  कि  पता  नहीं  वह  क्या  कहेगा .. मिस्टर  क . आये . बहुत  देर  तक  बातें  चलती  रही . पति - पत्नी  एक  दूसरे  को  बार -बार  इशारा  करते   कि  वह  उस  बात  को  कहे   जिसके  लिए   उसे  घर  पर  बुलवाया  था . ताकि  वे  अपना  शक दूर  कर  सके .बातों  ही   बातों  में  मिस्टर  क . ने  फिर  कह  दिया ,””मैं  देख  लूंगा .””झट  से  पति -पत्नी  बोल  पड़े ,”” क्या  देख  लोगे  ?”” इस   पर  मिस्टर  क . बोले ,””कुछ  भी  नहीं ””.मिस्टर  क .घबरा  गए . उठकर  खड़े  हो   गए .और  जाने  लगे . पति  ने   
मिस्टर  क . से  पूछा  कि  वे  बार -बार   क्यों  बोलते   हैं  “”मैं  देख  लूंगा ””.  अब  मिस्टर  क . की  समझ  में  आने  लगा  कि   उनके  बात  करने  में  कुछ  गलती  है . उनके   मित्र  ने  पूछा  कि  क्यों  ऐसा  बोल  देते  हैं  जब    उसका  कुछ  मतलब  ही  नहीं . मिस्टर  क . ने  बताया कि  पता  नहीं  कब  से  ये  शब्द  बोलते  आ  रहे  हैं . यह  उनकी  पुरानी  आदत  है .वे  इससे   खुद  भी  परेशान  हैं . क्योंकि  इसके  कारण  वे  कई  बार  मुसीबत  में  पड़  चुके  हैं . पति -पत्नी  का   शक  दूर  हुआ  और   मिस्टर  क. से    बोले  कि  वे  भविष्य  में  बोलने  से  पहले  सोच  लिया  करें . मिस्टर  क . ने  धन्यवाद  कहा  और  बोले , “”मैं  देख  
लूंगा ””कहकर   चले  गए .
दोनों  पति -पत्नी    भी  हंसकर  कहने  लगे , “” हम  भी  देख  लेंगें .""
मिस्टर" क . अब  जब  भी  बोलने  लगते  हैं  अपने  मुंह  के आगे  रुमाल  रख  लेते  हैं  और  कोशिश  करते  हैं  कि  उनके  मुंह  से   निकले   हुए   शब्द  “”मैं  देख  लूंगा ””किसी  को  सुनाई  न  दे

---संतोष गुलाटी ----.

Wednesday, July 20, 2011

aचाचा नेहरु की कहानी , सब को लगाती बड़ी सुहानी, इसको कहते नाना-नानी,दुनिया थी इनकी दीवानी.
   बचपन बीता खेल में, जवानी बीती  जेल में , जीवन बदला गाँधी ने , देश की  दासता थी मिटानी....
   जहाँ -जहाँ वे कदम बढ़ाते ,नए सपने लेकर जाते ,जयहिंद का नारा लगते ,देश की ताकत थी बढानी......
   राष्ट्र एक बगीचा हो ,खिलते हुए गुलाब हों ,बच्चों की मुस्कान हो, उनके मन ने थी ठानी.........
   सब में भाई चारा हो, देश बने न्यारा हो, बाल-दिवस सब को प्यारा हो, उनकी बातें  नहीं भुलानी. .....
  शान्तीवन की समाधी कह रही,अमन का सन्देश दे रही,आओ सुमन अर्पित करें,उनकी कुर्बानी नहीं भुलानी ..
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वीर जवाहर का जन्म दिवस है बालदिवस, इतिहास बताता है,
    खिला -खिला गुलाब खुशबू फैलाता है.....
    एकता की ताकत से ,मंजिल उन्होंनें पायी थी, भारत हुआ आज़ाद ,गूँज उठी शेहनाई थी..
    जहां-जहां वे चले ,सब ने उनका साथ दिया,छोड़ भेद भाव सारे,देश को संवार दिया....
    जिन  राहों पर जवाहर चले, उन राहों पर चलना है, विश्व शांती बनी रहे ,यह उनका कहना है...
     जब तक सूरज चाँद रहेंगे ,बच्चे उनको याद करेंगे ,देश का ऊँचा नाम करेंगे,नया इतिहास रचेंगे....
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  लो चौदाह  नवम्बर आ गया ,चाचा नेहरु की याद दिला गया,
     बच्चों का मनभावन ,बालदिवस फिर आ गया,
     सिर पर टोपी ,अचकन में गुलाब समा गया,
     मोती का वह लाडला ,लोगों को लुभा गया,
    गांधीजी की आवाज़ ने,देश भक्त बना दिया,
    अपना सब कुछ भूल कर ,वतन पर लुटा दिया,
    देश को आज़ाद करा दिया ,जनता ने नेता बना दिया,
    लाल किले पर झंडा लहरा दिया, जयहिंद का नारा लगा दिया,
    भारत हो शिखर पर ,ऐसा मंत्र बना दिया ,
    अमन की सब भाषा बोंलें ,वैसा पाठ पड़ा दिया,
    आसमान में तारा देखो ,कैसा टिमटिमा रहा,
    सदीयों तक ना भूलेगी,उनकी यह दास्ताँ......
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  चाचा नेहरु ला जवाब ,खिलता हो जैसे गुलाब
  मिति की आँखों का तारा,था जन-जन का प्यारा
  सीधे सादे दिल के सच्चे ,बच्चे उनको लगते अच्छे
  बच्चे उनको करते उनको याद ,चाचा नेहरु ला जवाब
  आज़ादी की लड़ी लड़ाई ,अंग्रेजो को यह बात ना भाई
  सज़ा पायी विपदा झेली ,भारत की फिर डोर संभाली
  गाँधी के पथ को अपनाया, शांतिदूत नाम पाया
भारत के निर्माता नेहरु ,भारत की शान नेहरु
चाचा नेहरु ला जवाब ,खिलता हो जैसे गुलाब
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लोकमान्य  तिलक 
पहली अगस्त का दिन है आज ,तिलक को करें हम याद,,
उनके गुण गान करें ,शत- शत प्रणाम करें ,
महाराष्ट्र में पैदा हुए ,लन्दन में वकील हुए
आज़ादी की लड़ी लड़ाई ,अंग्रेजो को आवाज़ लगाई ,
""आज़ादी अधिकार हमारा ,छोड़ दो हिंदुस्तान हमारा, "
नारे पे नारा लगाया ,जीवन जेल में बिताया ,
केसरी, मराठा छपवाया, गणेश उत्सव मनाया,
सोये हुए लोगों को जगाया,आज़ादी का मतलब समझाया,
ऐसे देश प्रेमी को कोटी-कोटी नमन करें ,
लोकमान्य तिलक को श्रद्धा फूल अर्पण करें.  
  माँ  बेटी  का सपना

बेटी माँ, कह एक कहानी ,जिस में हो एक राजा और एक रानी ,
 मैं उनकी राजकुमारी सोने का पलना हो,पंखा झुलाएं नौकर र्चाकर सोने की सवारी हो”.
माँ –बेटी कुछ याद नहीं आती ऐसी कोई कहानी ,
घर में न दाल है न पानी,  झांकते हैं बर्तन, आग नहीं है चूल्हे में ,
दादा हैं खांसते रहते, दादी पड़ी है बिस्तर में,
सब्जी वाली डलिया है खाली पड़ी, जेबें हो गयी खाली महगाई है इतनी बड़ी ,
कैसे सुनाऊं ऐसी कहानी , जिसमे हो एक राजा एक हो रानी,
नहीं दी है फीस तेरी, स्कूल से तेरा नाम कटा है,
फैक्ट्री में लगा है ताला, तेरे बापू को काम भी नहीं मिला है,
तू बनती है राजकुमारी , तेरी मां की साड़ी फटी है,
हाथों में पड़े है छाले पैरों में जूतियाँ फटी हैं, रोटियां हैं सपनो में, थाली खाली पड़ी है,
 दूध मलाई  की बात कहां , बिन पैसों के मिलता पानी भी नहीं है,
बेटी, कैसे सोचूँ ऐसी कोई कहानी ,  जिस में हो एक राजा और एक रानी”.
  बेटी - अच्छा मां ,कह वही कहानी ,जिसमें परी देती है रोटी और पानी,
बच्चों को ले जाती है अपने देश में, सजाती है उनको अलग -अलग वेश में ,
कितना  सुंदर उसका उड़न खटोला, दिखा दे सारी दुनिया इक्के वाला,    
बाग़- बगीचे खिलोनों की दुनिया ,खेल तमाशे ,चाँद सितारों की दुनिया,
खिलाती है भर पेट खाना, सुनाती है लोरियों का गाना,
बच्चे भूल जातें हैं, उस लाइन को, मिलता है जहां राशन और पानी,
यहाँ न कोई राजा है न कोई रानी,
मां, बस वही सुना कहानी , जिसमें परी देती है रोटी और पानी.

 मां -हाँ  बेटी याद आई एक कहानी ,एक था राजा एक थी रानी,
 राजा की नानी थी बड़ी सयानी, कहती थी हर रोज एक कहानी.
लेकिन मर गई रक दिन राजा की रानी,  पर ख़तम नहीं हुई यह कहानी,
तब वहां आई रानी की नानी, डिब्बों में भर कर लाई राशन और पानी,
दूध, मलाई , मक्खन ,मिश्री ,चटनी और आचार .
रानी की नानी थी बड़ी थी दानी, बाँट दिया सब कुछ बच्चों में, देखते रहे राजा और रानी.
नहीं ख़तम नहीं हुई यह कहानी ,बस इसी तरह चलती रही कहानी,
रात को परी आती है, राशन- पानी दे जाती है,
जैसे सूरज निकलता है,सब कुछ गायब हो जाता है” .
बस यही है मां- बेटी के सपनों की कहानी ,एक था राजा एक थी रानी , नानी कहती थी एक कहानी.
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