हास्य--होली के रंग,शंभु के संग
फाल्गुन मास रंगो का उल्लास। होली के कुछ दिन पहले कुछ मित्र इकट्ठा होकर विचारने लगे कि इस बार होली कैसे मनाई जाए । एक ने कहा कि होली से पहले रात को भोज रखा जाए। दूसरा बोला वह तो बाद की बात है। किसी ने कहा कि होली के दिन रंगो के साथ मज़ा किया जाए। किसी ने कहा सूखे रंगों का ही प्रयोग किया जाए।पानी व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। पानी से नहीं।किसी ने कहा पानी तो रंग छुड़ाने के लिए ज़रूरी है । क्या हम हमेशा भूत जैसे ही बने रहेंगे।खैर यह निश्चित हुआ कि कुछ भी हो होली अवश्य खेली जाएगी। लेकिन शर्त रखी कि काला और गीला रंग कोई किसी के चेहरे पर नहीं लगाएगा। शम्भुनाथ ने कहा कि वह आफिस के काम से बाहर जा रहा है इसलिए वह होली नहीं खेल पाएगा। उसके मित्र उसकी चालाकी समझ गए। मित्रों ने उसकी हाँ में हाँ मिला दी।
वास्तव में होली खेलना उसे पसंद नहीं था। बचपन से वह पानी से डरता था। जब माँ उसे स्नान के लिए बुलाती थी वह कहीं न कहीं छिप जाता था। कई बार माँ से पिटाई भी हो चुकी थी।
शम्भुनाथ होली की सुबह चद्दर ओढ़ कर बुखार का बहाना बनाकर सोया रहा ।पत्नि जगाने आई तो बहाना बनाकर टाल दिया। बेटे को रंग देकर होली खेलने नीचे भेज दिया और उसे कह दिया कि कोई पूछे तो कह दे पिताजी घर में नहीं हैं।। सब खि़ड़किया और दरवाज़े बंद कर दिए । खिड़कियाँ परदों से ढक दी ताकि बाहर से उसके मित्र कोई झाँक कर देख न सके। उसके मित्र एक दूसरों पर गुलाल लगाते रंग बिरंगे भूतों की तरह चेहरे दिखाते झाँझ बजाते होली के गीत गाते शम्भु के घर के बाहर शम्भु को बाहर आने के लिए ललकारने लगे। लेकिन शम्भु तो मानो कानों में रुई डालकर सोया हुआ था। जब उसकी पत्नि ने भी कोई जवाब न दिया तो घर की घंटी बजाने लगे। और घर का दरवाज़ा ज़ोर-ज़ोर से पीटने लगे। और चेतावनी देने लगे कि बाहर आ जाओ नहीं तो वे दरवाज़ा तोड़कर अंदर घुस जाएँगे। उसका बेटा जो अपने मित्रों के संग होली खेल रहा था उनको बता दिया कि शम्भुनाथ घर पर ही है। और घर में ही छिपकर बैठा है। आखिर उसकी पत्नि ने दरवाज़ा खोल ही दिया।
अब शम्भु क्या करे
? जैसे तैसे वह मित्रों से छिपकर खिड़की से बाहर मकान की पिछली तरफ कूद गया। उसके मित्र उस तरफ जाते तो वह दूसरी तरफ कूद जाता।फिर छत पर लटकी हुई किसी की साड़ी के सहारे छत पर चला गया।और वॉचमैन से छत के दरवाज़े को बाहर से ताला लगवा दिया। मित्रों ने वॉचमैन को दरवाज़ा खोलने के लिए कहा । वॉचमैन ने कहा कि छत पर जाने की मनाही है। और ताले की चाबी चेयरमैन के पास है। वह उसके पास नही जा सकता ।शम्भु अपने आपको सुरक्षित समझने लगा। लेकिन उसके मित्र कहीं से रस्सी के सहारे छत पर चढ़ गए। शम्भु उस घर की एक खिड़की से दूसरी खिड़की पर बंदरों तरह कूदते हुए अपने आपको बचाने लगा।उसके मित्रों ने कहाकि उसे रंग लगाए बिना नहीं जाएँगे। मित्र भी अड़े रहे और शम्भु भी अपने आपको बचाता रहा । मित्र खूब ज़ोरसे झाँझ और ढोलक बजाते और चिल्लाते "शम्भु डरपोक बाहर आओ "। आधे घंटे तक यह खेल ऐसे ही चलता रहा।
सबलोग शम्भु की हँसाई उड़ाते रहे। कुछ बच्चे और लोग यह देखने के लिए इकट्ठा हो गए।सबने पानी से भरी पिचकारियाँ ले ली और दूर से ही शम्भु को रंगो से सराबोर कर दिया। जब एक पिचकारी छोड़ता वे झाँझ और ढोलक बजाते। शंभु ने हार मान ली।और नीचे आकर सबके साथ होली खेलने लगा और सबके साथ गले लगने लगा ।
सब गाने,
नाचने और झूमने लगे “रंग रगीली होली आई।शंभु के मन को भाई।``होली की
शुभकामनाएँ देने लगे।
प्रेषिका
संतोष गुलाटी,
७, आरोविल्ले,
जैन मन्दिर के सामने, जैन
देरासर मार्ग,
सान्ताक्रूज़(प),
मुम्बई-400054
Mobile No.982 028 102